इक उदास हर्फ़ मैं बाक़ी हसीन कहानी वो
इक क़िताब हुआ मैं उसमें, मेरी ज़ुबानी वो।
दिल बदला फ़िर उस बरसात की रात क्यों
शह्र से जो मैं भागा हो गयी बड़ी वीरानी वो।
अब्र ख़ामोश देखता रहा ज़ुल्म सारी रात यूं
जैसे तस्वीर में मैं क़ैद लगी रिहा पुरानी वो।
अफ़सोस बारहां हुआ उनको देखकर मुझे
इक आवारा मैं, और मुझमें दबी हैरानी वो।
मुहब्बत मुद्दतों आज़माती रही मुझे ऐ वर्मा
ज़माने की बख़्शीश मैं ख़ुदा मेहरबानी वो।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
इक क़िताब हुआ मैं उसमें, मेरी ज़ुबानी वो।
दिल बदला फ़िर उस बरसात की रात क्यों
शह्र से जो मैं भागा हो गयी बड़ी वीरानी वो।
अब्र ख़ामोश देखता रहा ज़ुल्म सारी रात यूं
जैसे तस्वीर में मैं क़ैद लगी रिहा पुरानी वो।
अफ़सोस बारहां हुआ उनको देखकर मुझे
इक आवारा मैं, और मुझमें दबी हैरानी वो।
मुहब्बत मुद्दतों आज़माती रही मुझे ऐ वर्मा
ज़माने की बख़्शीश मैं ख़ुदा मेहरबानी वो।
नितेश वर्मा
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