वो हुस्न-ए-बा-ऐब वो पर्दागरी हमसे ना पूछिये
ये तो ख़ुदा ने की है कारीगरी हमसे ना पूछिये।
सर्द रात ये ख़याल चाँद पर ढ़लने लगा है मेरा
स्याह ज़ुल्फ़ो तले वो दोपहरी हमसे ना पूछिये।
ये कैसा हुआ है हाल उनकी सोहबत में आके
ज़ुबाँ अखरोट, दिल गिलहरी हमसे ना पूछिये।
ज़ब्त कई मानी में हुए किरदार कहानी के यूं
प्रागैतिहासिक युग, जादूगरी हमसे ना पूछिये।
एक शख़्स छिपा है दरम्यान यूं दोनों के वर्मा
वो कोई आवाज़ थी सुनहरी हमसे ना पूछिये।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
ये तो ख़ुदा ने की है कारीगरी हमसे ना पूछिये।
सर्द रात ये ख़याल चाँद पर ढ़लने लगा है मेरा
स्याह ज़ुल्फ़ो तले वो दोपहरी हमसे ना पूछिये।
ये कैसा हुआ है हाल उनकी सोहबत में आके
ज़ुबाँ अखरोट, दिल गिलहरी हमसे ना पूछिये।
ज़ब्त कई मानी में हुए किरदार कहानी के यूं
प्रागैतिहासिक युग, जादूगरी हमसे ना पूछिये।
एक शख़्स छिपा है दरम्यान यूं दोनों के वर्मा
वो कोई आवाज़ थी सुनहरी हमसे ना पूछिये।
नितेश वर्मा
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