Tuesday, 29 April 2014

..बातें वो अक्सर बनाया करता था..

..बातें वो अक्सर बनाया करता था..
..दिलों पे हमारें हक जताया करता था..

..किसी अपनों की तालाश में..
..वो भटका करता था..
..मुहब्बत में हमसे..
..वो ये जताया करता था..

..वो दोस्त था हमनवा था हमारा..
..किया था जो मुक्करर मुहब्बत..
..वो किताब था हमारा..

..वो आँखों में हमारें बसा करता था..
..ज़िद में हमारें बसा करता था..

..वो ज़िन्दगी थीं हमारी..
..हमारें लबों पे वो बसा करता था..

..बातें वो अक्सर बनाया करता था..
..दिलों पे हमारें हक जताया करता था..!


Monday, 28 April 2014

..आँखों में मेरे वो एक सपना छोड आया हैं..

..आँखों में मेरे वो एक सपना छोड आया हैं..
..ढूढाँ करता था ज़िसे..
..वो राज़ मुझमें छोड आया हैं..

..वो रहगुज़र बनना चाहता था मेरा..
..रगों में मेरे वो अपना खून छोड आया हैं..

..किसी दिन बदलेगा वक्त..
..तो चलेगा सिक्का उसका..
..ज़ज्बातों को मेरे घर वो छोड आया हैं..

..वो अब ज़मानें में बसना चाहता हैं..
..दिलों पे मेरे वो राज कर आया हैं..

..अब बस तमन्ना हैं ये एक उसकी..
..पाना हैं तुझे..
..आखिर ज़िन्दगी को वो मेरे मौत से जोड आया हैं..!


Sunday, 27 April 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..तमाम शायर बदल गए देश के..
..अए दोस्त..!
..तेरा ये यार ना बदला..
..मुहब्बत के सारें मायनें बदल गए..
..मगर वफ़ाओं से मेरा ये नाम ना बदला..!

[2] ..तुम ही सुनातें थे सारें किस्सें पुरानें..
..बेवफ़ा जो तुम्हें बताया तो नाराज़ हो गए..!

[3] ..अब कौन सँभालेगा मेरे रिश्तें की बागडोर को..
..देखो वर्मा..
..वक्त धीमा पड गया..
..अब कौन सँभालेगा सियासत की डोर को..!


Saturday, 26 April 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..अब क्या लगाओगे दावं पे वर्मा..
..महफ़िल में जो महबूब लूटा आऐं हो तुम..

..शर्म तुमको मगर नहीं आती..
..ज़िन्दगी किसी और की दावं पे आऐं हो तुम..!

[2] हमनें किया हैं प्रण अब आपसे कोई फ़रेब ना होगा
आपका राज़ अब "आप" से होगा!

[3] ..मुक्करर सारी कहानी तेरी दीवानी हो गई..
..तूनें होठों से जो होंठ मिलाया..
..दर्द सारी मेरी ज़ुबानी हो गई..!

..नितेश वर्मा..

..वो आँधियों में मेरे कंबंल बनता हैं..

..वो मुझे बदलनें के ख़ातिर बदलता हैं..
..मेरे ज़िस्म से होके मेरे रूह में उतरता हैं..

..हाथों में स्याहं जेहन में उत्साह..
..ख़ातिर मेरे वो ज़मानें में निकलता हैं..

..वो एक शख़्स हैं जो मेरे इरादों में बसता हैं..
..उम्मीदों में मेरे वो खडा उतरता हैं..

..सब धूल की तरह हैं बातें मेरे दिल की..
..वो आँधियों में मेरे कंबंल बनता हैं..

..एक शख़्स हैं जो मुझसें ज़्यादा मेरे हिस्सों में बसता हैं..
..किया हैं उसने जो वादा वो मेरे दिल में उतरता हैं..!



..ज़िन्दगी से मेरे परेशान हूँ मैं..

..ज़िन्दगी से मेरे परेशान हूँ मैं..
..अए खुदा तेरे हरकतों से हैरान हूँ मैं..

..कोई उदासी मिलती नहीं बतानें को..
..तेरे सज़दें में होके हैंरान हूँ मैं..

..मेरी ख़्वाहिश थीं मैं भी कुछ करूं..
..मगर ज़िन्दगी की बोझं से परेशान हूँ मैं..

..कोई और क्या चाहता हैं अए खुदा अपनें सज़दें में..
..मैं मुश्किल में रहूँ सुन ये परेशान हूँ मैं..

..ज़िन्दगी से मेरे परेशान हूँ मैं.
..अए खुदा तेरे हरकतों से हैरान हूँ मैं..!


Friday, 25 April 2014

..हवाऐं बेरुख होकर जानें लगी..

..हवाऐं बेरुख होकर जानें लगी..
..तुमनें साथ छोडा..
..और ये बहक जानें लगी..

..मैं मदमस्त रहता था तेरे नैंनों के सहारें..
..तुमनें अपनी ज़ुल्फ़ें झुकाईं..
..और सितम मुझपे ढानें लगी..

..सहारें तेरे मैं इस भीड में था खडा..
..तुमनें साथ जो झुकायां..
..कदम बहक जानें लगी..

..अब किसी मंज़िल की तरफ़ मेरा रूख नहीं होगा..
..दिलों में जो दर्द अब घर कर जानें लगी..

..हवाऐं बेरुख होकर जानें लगी..
..तुमनें साथ छोडा..
..और ये बहक जानें लगी..!


..मैं मेरे रस्तें आ गया..

..मैं मेरे रस्तें आ गया..
..खुद से हारा तो मैं तेरे रस्तें आ गया..

..बदल जाती हैं हर बार..
..मेरी मंज़िल की तस्वीर..
..अए खुदा..!
..मैं तेरी कारीगरी से रस्तें पे आ गया..

..बदल गया हैं हर शख़्स मेरे ज़हन का..
..मैं ज़िद से अपने रस्तें पे आ गया..

..हैं गम बहोत बतानें को..
..मैं इसे जतानें से रस्तें पे आ गया..

..अब बंद कर दी हैं मैंनें सारी ख़िदमतें..
..मैं तेरे सज़दें से रस्तें पे आ गया..

..मैं मेरे रस्तें आ गया..
..खुद से हारा तो मैं तेरे रस्तें आ गया..!


Thursday, 24 April 2014

..हालत अब देश की वर्मा मुझे समझाओं मत..

..खामोशी मुझे सताती हैं..
..बात जो मैं करू..
..कानून ये गुनाह बताती हैं..

..हक के ख़ातिर लडना अपराध हैं..
..जितना मिला हैं उतनें में सब्र करना सीखाती हैं..

..कोई मुश्किल गलें ना लगाओं तुम..
..कोई भारी-भरकम बातें ना बनाओ तुम..
..तुम ख़ुद में जीओ या खुद से मरों..
..परवाह नहीं..
..हैंरत भरी निगाहों में मुझे ये समझाओं मत..

..सारी बातें या वादें कह लो तुम..
..झूठ की जुबान हैं..
..कानून को ये समझाओं मत..

..अपनी सारी व्यथाओं को रख देते हैं खोल के सामनें मेरे..
..कहते हैं अब ये सत्यमेव जयते मुझे समझाओं मत..

..सब मज़बूर हैं कहीं ना कहीं..
..हालत अब देश की वर्मा मुझे समझाओं मत..!


..चलो हम समुन्दर से किनारें आ गए..

..चलो हम समुन्दर से किनारें आ गए..
..तुमनें इशारा कराया और हम किनारें आ गए..
..हाथों में हाथ डाल जो हम चले थे इक सफ़र को..
..तुम दूर हुए तो बेसहारा हो गए..
..शाम की बहती हवाओं ने अपना रुख क्या मोडा..
..तुम चेहरें से मेरे बेरूख हो गए..
..अब हो गई मेरी मौत मुअय्यन..
..तुमनें साथ छोडा और हम किनारें आ गए..!


Wednesday, 23 April 2014

..दिल से फ़िर हम तुम्हें मिलानें आ गए..

..दिल से फ़िर हम तुम्हें मिलानें आ गए..
..तुमनें हमपें नज़र उठाया..
..और हम गले लगानें आ गए..
..लो ख़िदमत में तेरे..
..हम तेरे सिराहनें आ गए..
..जुल्फ़ें बिखेरें और तुममें समानें आ गए..
..सारें गीलें-शिकवें हम भूलानें पे आ गए..
..तुमनें सीनें से जो लगाया..
..हम तुम्हारें में आ गए..
..हो गए सारें गीत मुहब्बत के मुझमें फ़ना..
..तुमनें आँखें चार की..
..और हम समझानें आ गए..
..चूमं के तेरे हम गालों को..
..चालों से हम तेरे बातों में आ गए..
..अब खुशियों को हम..
..ज़िन्दगी से मिलानें आ गए..
..सब हर्श गवां हम अब वारदातों पे आ गए..
..लो सुर्खियाँ उठाई और ज़ज्बातों पे आ गए..
..हो गई सारी चाहतें मेरी पूरी..
..तुमनें नज़र से गिराया..
..और हम ज़मानें में आ गए..
..दिल से फ़िर हम तुम्हें मिलानें आ गए..
..तुमनें हमपें नज़र उठाया..
..और हम गले लगानें आ गए..!


Tuesday, 22 April 2014

..उम्र मेरी छोटी पड गई..

..उम्र मेरी छोटी पड गई..
..नज़र जो मेरी तेरी तस्वीर पे पडी..
..हसरत ये छोटी पड गई..
..घनी रात के दरमयां..
..जो फ़सी थी बाहों में मेरे तुम..
..बात रात की सुहानी पड गई..
..हल्कें से दबे पावं..
..तुम आएं थें करीब मेरे..
..सीनें से लगे तो साँसें धीमी पड गई..
..नज़र जो तेरी नज़र से मिली..
..तो कयामत पड गई..
..बहती हवाओं बारिशों के बीच..
..नाम ये शबनमीं पड गई..
..लबों पे खामोशी पड के रह गई..
..तुमसे हुएं जो रु-ब-रु..
..ज़िन्दगी ये दीवानी हो के रह गई..
..काश और सुनातें..
..मगर दीदार-ए-हुश्न के खातिर..
..हम आँखें खोल के रह गए..
..उम्र मेरी छोटी पड गई..
..नज़र जो मेरी तेरी तस्वीर पे पडी..
..हसरत ये छोटी पड गई..!

..सारें गुनाह मेरे धूल गए सीनें से जो मेरे तुम लग गए..

..सारें गुनाह मेरे धूल गए सीनें से जो मेरे तुम लग गए..
..शोर शहर से कम हो गए सीनें से जो मेरे तुम लग गए..
..अपराध अब इस रात से कम हो गए..
..नज़रें खामोश से हो गए..
..चल दिए हम किसी और गली..
..सीनें से जो मेरे तुम लग गए..
..बेवज़ह मैं जुडा चला था..
..बेमतलब मैं ज़मानें का हो चला था..
..काश! अक्ल आ जाती उस वक्त..
..जिस समय मैं हालातों पे रो पडा था..
..हो गई मेरी सारी ज़िन्दगी ख़राब..
..अब मैं मौत का हो चला था..
..अए! मौत तुझसे अब मिलकर..
..सारें गुनाह मेरे धूल गए सीनें से जो मेरे तुम लग गए..
..शोर शहर से कम हो गए सीनें से जो मेरे तुम लग गए..!


Monday, 21 April 2014

..लो हो गई सारी बुरी आदतें बंद..

..लो हो गई सारी बुरी आदतें बंद..
..अब मैं कुछ सरीफ़ सा हो गया..
..छोड सारी अपराधों को..
..अब मैं साधू सा हो गया.
..जिस कदर मैं नाराज़ था रहा खुदसे..
..छोड नाराज़गी मैं परेशां सा हो गया..
..लो कर ली अब मैंने तुमसे यारी..
..मैं तुम्हारें हक का साथी हो गया..
..हो गई सारी रूकावटें दूर..
..ज़िन्दगी में मेरे तू धडकन हो गया..
..लो हो गई सारी बुरी आदतें बंद..
..अब मैं कुछ सरीफ़ सा हो गया..!


Sunday, 20 April 2014

..भरें शहर की उदासी लेके चला था..

..भरें शहर की उदासी लेके चला था..
..ज़हन में अपने..
..शहर भर के गम लेके चला था..
..कोई उदास ना हो अब इस शहर..
..सोच के मैं उस ज़मानें को निकला था..
..दर्द की सारी तस्वीर को..
..मैली चादर पे समेटे निकला था..
..मैं था मज़बूर..
..जो अंधेरों में किनारें से निकला था..
..दस्तूर मैं क्या बताऊँ अपनी..
..मैं शहर की आबादी से निकला था..
..मज़बूर गरीब की आहं देख..
..दिल भर के चला था..
..मैं अपने से परेशां..
..मैं अपने शहर से निकला था..
..भरें शहर की उदासी लेके चला था..
..ज़हन में अपने..
..शहर भर के गम लेके चला था..!


Saturday, 19 April 2014

..गुज़र के गया जो वक्त..

..गुज़र के गया जो वक्त..
..अब फ़िर ना आऐगा..
..दिल से मेरे जो निकल गया..
..वो महबूब फ़िर ना आऐगा..
..हाथों से मेरे हो गया जो अपराध..
..ज़ुर्म वो दिखानें वक्त फ़िर ना आऐगा..
..हो गया हैं सबकुछ मेरे हक से बाहर..
..दिल ये बतानें फ़िर ना जगाने ना आऐगा..
..मेरे खूबसूरत पल..
..फ़िर से मुझे रिझांनें ना आऐगा..
..हो गया मैं वक्त पें मेहरबां..
..वक्त फ़िर से मुझे सताने ना आऐगा..
..गुज़र के गया जो वक्त..
..अब फ़िर ना आऐगा..
..दिल से मेरे जो निकल गया..
..वो महबूब फ़िर ना आऐगा..!


Friday, 18 April 2014

..मैंनें शहर बदल दिया पेट में आग अभ्भी बाकी हैं..

..मैंनें शहर बदल दिया पेट में आग अभ्भी बाकी हैं..
..जिस शहर मैं गया सुना धांधली अभ्भी बाकी हैं..
..लोग शहर के सारें ज़ुल्म के सताएं हुएं हैं..
..रातों में अपराध इस शहर अभ्भी बाकी हैं..
..मैं नहीं कहता मैं हूँ दूध का धुला..
..लेकिन दिल में इंसानियत और होंठों पे नाम..
..हे राम तुम्हारा अभ्भी बाकी हैं..
..सितम शहर के सारें मेरे हिस्सें वालें अभ्भी बाकी हैं..
..इंतज़ार नहीं अब हर शाम की..
..नौकरी की तलाश इस शहर अभ्भी बाकी हैं..
..क्या हैं बात सरकारी तो दूर..
..स्वयंचालित संस्था भी हाथ से अभ्भी बाकी हैं..
..किस्मत हैं या यें राज़नीति का छलावा..
..जो युवा देश रोज़गार से अभ्भी बाकी हैं..
..सारें शहर में ये किस्सें ज़ारी हैं..
..बेमतलब में लिख रहा एक शख़्स अभ्भी बाकी हैं..
..मैंनें शहर बदल दिया पेट में आग अभ्भी बाकी हैं..
..जिस शहर मैं गया सुना धांधली अभ्भी बाकी हैं..!


..वर्ना औंधें मुँह गिरना..

..सबक ले सको तो ठीक..
..वर्ना औंधें मुँह गिरना..
..कोई बडी बात नहीं..
..सारी सियासत लूट गयी..
..अब घर पे हैं छाप..
..यें बकवास कोई बडी बात नहीं..!


Thursday, 17 April 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..सब अपनें छोड पराया कौन हैं..
..तू हैं साथी तो फ़िर हराया कौन हैं..
..मैं समझता नहीं क्या बातें सबकी..
..वर्मा जो देख सुनानें कहानी आया कौन हैं..!

[2] ..मेरे पीछें करता हैं वो बातें रूख़सरी..
..सामनें मेरे मेरा दीदार करता हैं..!

[3] ..कैसे करता हैं वो ऐसे कारनामें..
..तौबा वर्मा यें शातिर भी हैंरान रहता हैं..!

[4] ..किसी दिन वो कर आऐगा मेरे वज़ूद का सौदा..
..इश्तेहार जो मोहब्बत का मैंनें हाथ में दे रक्खा हैं..!

[5] ..सोचा था इज़हार करूं मैं भी अपने दर्द का..
..खामोश पन्नों को देख खामोश रह गया..!

[6] ..फ़ितरत मेरी यें बदलती नहीं..
..रात भर जो सोऊँ ना तुझमें..
..दिन मेरी गुजरती नहीं..!

[7] ..अब फ़िर बेचेंगें तुम्हें अपनी शायरी में डाल..
..मुहब्बत डायरी की वर्मा अब भारी हो चली हैं..!


Wednesday, 16 April 2014

..एक तुम्हारें रोकनें से क्या होगा वर्मा..

..बेमतलब बेमकसद बेपरवाह की बात किएं जा रहे हैं..
..फ़िर भी सियासत में हम राज़ किएं जा रहे हैं..
..उलट-पुलट के हम बातों को पेश किएं जा रहें हैं..
..फ़िर भी दिलों में सबके घर किएं जा रहें हैं..
..ज़नता जनार्धन अब की ना रही वर्मा..
..फ़रेब गहरी किएं फ़िर भी जीते जा रहें हैं..
..दुश्मनी खुलेआम किएं जा रहें हैं..
..फ़िर भी डंके के चोट पे जीतेंगें हमी कहें जा रहें हैं..
..और किस तरह से हम लूटें तुम्हें सोच के हँसे जा रहें हैं..
..वोट करवा आएं हैं हम जागीर अपने बाप की..
..बेमतलब में तुमसे हम लुका-छिप्पी का खेल किएं जा रहें हैं..
..दिखा तुमसे मुहब्बत हम तेरा दिल लिएं जा रहें हैं..
..राष्ट्रनीति को हम राज़नीति से ज़ोड..
..मज़हब के नाम खूनी खेल किएं जा रहें हैं..
..एक तुम्हारें रोकनें से क्या होगा वर्मा..
..जब देश में हम कानूनी किएं जा रहे हैं..
..बेमतलब बेमकसद बेपरवाह की बात किएं जा रहे हैं..
..फ़िर भी सियासत में हम राज़ किएं जा रहे हैं..!


..वो चेहरा शायद पराया हैं..

..वो चेहरा शायद पराया हैं..
..जो पिछ्लें रात ख़्वाब में मेरे आया हैं..
..वो चेहरा शायद सताया हैं..
..जो दर्द में मेरे साथ आया हैं..
..वो अंज़ान मेरे इरादों से..
..वो मेरे हक में आया हैं..
..दिल में रक्खें बदनेकी..
..मैंनें चेहरें को उसके छू आया हैं..
..कितना मासूम हैं वो..
..मेरे फ़रेब को उसने मुहब्बत से जोड आया हैं..
..मैं नाकारा निकल गया..
..जो किसी की गहरी साज़िश..
..किसी और पे खेल आया हैं..
..अब वो मेरे हाथ से झूठ गया हैं..
..दर्द में एक और दर्द दे गया हैं..
..अब मैं रोता क्यूं हूँ..
..जो प्यार में राजनीति खेल आया हैं..
..सब दर्द एक साथ गहरी रात समेट आया हैं..
..वो चेहरा शायद पराया हैं..
..जो पिछ्लें रात ख़्वाब में मेरे आया हैं..!


Tuesday, 15 April 2014

..दिल की बात ज़ुबां पे आने लगी..

..दिल की बात ज़ुबां पे आने लगी..
..हक की बात मेरे भी दिल में समानें लगी..
..मेरा हैं क्या मन में मेरे घर कर जानें लगी..
..बहोत कर दिया हक में सबकें..
..मेरा हैं क्या मुझे ये समझ आने लगी..
..ज़िन्दगी की राज़ मौत की गहरी बात..
..सब हैं यें किसकी गहरी साज़िश..
..खुद को हारा हुआ देख समझ आनें लगी..
..दर्द,सितम,धोखा सारें मेरे हिस्सें आने लगी..
..किया था शायद क्या कुछ ऐसा..
..जो मेरे हिस्सें सारें गम आने लगी..
..सबक हैं ये मुझे मेरे रब ने मुझे बताया हैं..
..कौन हैं अपना ये फ़र्क करना सीखाया हैं..
..सब उलझ के रह गया यहां..
..किस्मत पे पहरा ज़ो तेरी नज़रों ने लगाया हैं..
..सब अपराध ये मेरे धुल के रह गए..
..गंगा जो मैं नहा के आया..
..मेरे सब्र की इम्तिहां अब पूरी हूई..
..गज़ल जो पन्नों पे अब सज़ोंनें लगी हैं..
..दिल की बात ज़ुबां पे आने लगी..
..हक की बात मेरे भी दिल में समानें लगी..!


Nitesh Verma Poetry

[1] ..समझ मेरे मन की बात तु चुप रह जा..
..दुनियाँ सुनती है तो तमाशा बना देती हैं..!

[2] ..अब चलो ज़िन्दगी को दरकिनारें किएं चलता हूँ..
..दिल देखों..
..मौत की रात मैं आशिकी किएं चलता हूँ..!

[3] ..हूनर हैं ये मेरा मैं जो ज़मानें में चमकता हूँ..
..तुमनें तो मुझे कंगाल ही समझा था..!

[4] ..शायद तुम ही थें मेरे दोस्त जो शायर बने फ़िरतें थें..
..भरी महफ़िल उसनें तुम्हें अपना महबूब बता दिया..!


Monday, 14 April 2014

..दिल मेरा दिल मेरी सुनता नहीं..

..दिल मेरा दिल मेरी सुनता नहीं..
..दिल मेरा दिल मुझमें रहता नहीं..
..ये तुझसें ही जुडनें को चाहें..
..ये करता हैं बस तेरी बाते..
..क्या तुम हो वहीं..
..मेरी ज़ाँ मुझमें बसी हो जो..
..दिल मेरा दिल मेरी सुनता नहीं..
..दिल मेरा दिल मुझमें रहता नहीं..
..तेरे ज़ुल्फ़ों के नीचें ये सो जाता हैं..
..चाहा बुलाऊँ जितना पास आता नहीं..
..यें आँखों में तेरे बस जाता हैं..
..तेरे पैंरों के पीछे ये लग जाता हैं..
..दिल मेरा दिल मेरी सुनता नहीं..
..दिल मेरा दिल मुझमें रहता नहीं..
..इस कदर ये तेरा हो जाता हैं..
..रख्खू जहां फ़िर वहां मिलता नहीं..
..तेरे चेहरें पे ये मर जाता हैं..
..तेरे होंठों पे बस ये रूक जाता हैं..
..मेरे बातों में ये तुझे ढूंढें फ़िरें..
..तेरे सीनें से ये लग जाता हैं..
..दिल मेरा दिल मेरी सुनता नहीं..
..दिल मेरा दिल मुझमें रहता नहीं..!


Sunday, 13 April 2014

..आया था जहाँ से फ़िर वही बाज़ार चला..!

..यें तेरा याद लिएं मैं किधर चला..
..आया था जहाँ से फ़िर वही बाज़ार चला..
..कौडियों के दाम बिका करता था मैं..
..ज़ज़्बात फ़िर वहीं पुरानी..
..सुहानी करने चला..
..रोता था मैं..
..मुस्कुराहट पे मेरा नाम ना था..
..तेरे हिस्सें की बात फ़िर सुनानें चला..
..भरी रात मैं ज़मानें को जगानें चला..
..मुहब्बत में क्या हैं हर्श ये बताने चला..
..हुआ था सरेआम बदनाम ज़मानें में..
..उफ़ तेरे चेहरें की झलक..
..फ़िर से दिल को रिझांनें चला..
..यें तेरा याद लिएं मैं किधर चला..
..आया था जहाँ से फ़िर वही बाज़ार चला..!




..भरें शाम मैं खुद से परेशां..

..भरें शाम मैं खुद से परेशां..
..भरें आँख मैं तुझसे परेशां..
..याद में तु मेरे बसे..
..मेरे बातों से मैं खुद परेशां..
..हैंरत भरी निगाहों को समेटे..
..उल्झन भरी गुनाहों को समेटे..
..मेरे यादों में तु बसे..
..मैं अपनी साँसों से परेशां..
..तेरे चेहरें को सज़ाएँ..
..तेरे ज़ुल्फ़ों को सँवारें..
..तेरे होठों से मेरे होंठ लगाएँ..
..ऐसी प्यारी बातों से दिल परेशां..
..भरें शाम मैं खुद से परेशां..
..भरें आँख मैं तुझसे परेशां..!


..वो आँखों से शरारत कर गयी..

..वो आँखों से शरारत कर गयी..
..भरी महफ़िल वो मुझकों शराबी कर गयी..
..चाहता था इज़हार करू मैं अपनी मुहब्बत का..
..वो चेहरें से अपने मुझे दीवाना कर गयी..
..सामनें जब थी खडी वो मेरे..
..होंठों से मुझकों बेइमानी कर गयी..
..इस कदर मैं परेशां सा हुआ..
..सीनें से लगा था सर उनका..
..और मैं बेहिसाबी शर्मसार हुआ..
..क्या हुआ जो दिल में ना बसा..
..आँखों में सजाँ तो क्यूं शर्मिन्दा हुआ..
..वो आँखों से शरारत कर गयी..
..भरी महफ़िल वो मुझकों शराबी कर गयी..!


Saturday, 12 April 2014

..ज़ब दर्द का तूफ़ान मेरे हिस्सें आया..

..ज़ब दर्द का तूफ़ान मेरे हिस्सें आया..
..कम आया लेकिन घेरे आया..
..कुछ इस कदर बर्बाद किया उसने मुझे..
..आँखों से मेरे आँसू कम खून ज़्यादा भर आया..
..किस कदर मैं उससें जुडा..
..साँसें कम थीं मगर दिल से जुडा..
..मैं बता ना पाया मेरें दर्द की दास्तां..
..सब्र इतना था कब्र पे खामोश आया..
..होंठों पे मैं तेरा पैगाम भरें आया..
..खामोशी भूल तेरी गुलामी भर आया..
.. हर चेहरें को भूला तेरा चेहरा पढ आया..
..किस्मत से भाग तेरे पहलूं में घर कर आया..
..ज़ब दर्द का तूफ़ान मेरे हिस्सें आया..
..कम आया लेकिन घेरे आया..!


Friday, 11 April 2014

..सीनें से निकल तेरे आँखों में बस जाऊँ..

..यादों से निकल तेरे दिल में बस जाऊँ..
..सीनें से निकल तेरे आँखों में बस जाऊँ..
..हो जाऊँ कुछ इस कदर मैं तेरा..
..किताबों से निकल तेरी आँखों में बस जाऊँ..
..कुछ ऐसा सा हो जाऊँ..
..जो नाम से तेरे मैं जुड जाऊँ..
..उतर ख्वाबों से तेरे लबों पे बस जाऊँ..
..रातों में बसेरा कर तुझमें सबेरा कर जाऊँ..
..यादों से निकल तेरे दिल में बस जाऊँ..
..सीनें से निकल तेरे आँखों में बस जाऊँ..!


..हम दिल से सताएं हुएं हैं..

..हम दिल से सताएं हुएं हैं..
..हम दिल के सताएं हुएं हैं..
..मुहब्बत में भरी रात..
..हम खुद से निगाहें छुपाएं हुएं हैं..
..जगाएं हुएं हैं यादों में तेरी अक्सर..
..भूलाएं जो हुएं हैं लबों से तेरी अक्सर..
..गुनाह जो किएं हुएं हैं मैंनें..
..सरेआम भरें बाज़ार उतारें गए हुएं हैं..
..कैसे सँभालें ये दर्द की दास्तां..
..टूटे दिल से ज़िन्दगी निभाएं हुएं हैं..
..हम दिल से सताएं हुएं हैं..
..हम दिल के सताएं हुएं हैं..!


..किस कदर चाहूँ तुझे तु ही बता मेरे यारा..

..किस कदर चाहूँ तुझे तु ही बता मेरे यारा..
..दिन में याद करूं या दिल से याद करूं तुझे..
..किस्मत के सहारें रहूं..
..या तेरे चेहरें के सहारें जीऊँ..
..कैसे कहूँ या बिन कहें रहूं..
..तुझसे हैं मुहब्बत मैं कैसे जीऊँ..
..लम्हा-लम्हा तेरे सीनें में बसा..
..होंठों पे तेरे पल-पल सज़ाँ..
..ये चाहत हैं मेरी कैसी..
..सपनों में तेरी मेरी रातें कटी..
..चाहां तुझे हरदम रातें तेरे ख़्वाबों में कटे..
..किस कदर चाहूँ तुझे तु ही बता मेरे यारा..
..दिन में याद करूं या दिल से याद करूं तुझे..!


Thursday, 10 April 2014

Nitesh Verma Poetry

..किसी के सताएं ज़िन्दगी ये मेरी..
..मौत के तलबगार हो रख्खी हैं..
..रोना चाहता था ख़ूब मगर..
..आँखों में तेरी तस्वीर जो बसाएं रख्खी हैं..!


..हर बात पे समझाना मुझे ना आया वर्मा..
..वर्ना सबक भी आता था मुझे ख़ूब सीख़ाना..!


..चुप ही रहना अच्छा लगा..

..चुप ही रहना अच्छा लगा..
..भरी भीड तो हँसना ही अच्छा लगा..
..दबाएँ दबती नहीं अब बातें मेरी..
..पर खामोश रहना ही मुझे अच्छा लगा..
..सियासत की बातों पे लिखना जरूरी लगा..
..मगर लगी जान तो परवाह करना मुझे अच्छा लगा..
..सारी रात जगना और दुनियादारी समझना..
..लोगों के मुँह से खातिर अपने गाली सुनना..
..भरी आँख जो इस बात तो..
..भरी रात सोना अच्छा लगा..
..चुप ही रहना अच्छा लगा..
..भरी भीड तो हँसना ही अच्छा लगा..!


..एक समुन्दर सी बात दूजी ये खामोश भरी रात..

..एक समुन्दर सी बात दूजी ये खामोश भरी रात..
..खुद में घुट-घुट के जीता रहा..
..बतानें को जो थी मुझे मेरी सौगात..
..आहिस्ता-आहिस्ता मंज़िल के तरफ़ चला भी था..
..चोर नज़रों से तुझे देखा भी करता था..
..हाथ पकड ये गुलाब जो देना चाहता था..
..इसलिए खातिर तेरे चौराहें पे खडा था..
..भूल ना समझना मेरी मुहब्बत को..
..तेरे लिए मैंनें ये ज़िन्दगी बर्बाद कर रखा था..
..मेरे ख़्वाबों में एक तुम थे बसे..
..बात मैं ये सरेआम करना चाहता था..
..मगर करूँ क्या..
..एक समुन्दर सी बात दूजी ये खामोश भरी रात..!


Wednesday, 9 April 2014

..लेकिन गज़ल ये पुरानी हैं..

..मैं आधुनिक हूँ..
..लेकिन गज़ल ये पुरानी हैं..
..मैं तुम्हारा हूँ..
..लेकिन समझ ये नादानी हैं..
..हिस्सा मेरा मेरे वक्त से भी जुदा हैं..
..तुम मेरी हो इसमें मेरी क्या ख़ता हैं..
..मैं जुडा ज़मानें से हूँ..
..बेपरवाह, बेखबर तेरी कहानी से हूँ..
..ज़ले किस्मत के सहारें बैठा हूँ..
..मंज़िल से बेरूख जो किनारें बैठा हूँ..
..मैं सोया हूँ तुझमें..
..लेकिन ख़वाबें ये पुरानी हैं..
..ज़िद थी मेरी तुम हो सिर्फ़ मेरी..
..लेकिन बहस ये सिर्फ़ नादानी हैं..
..मैं आधुनिक हूँ..
..लेकिन गज़ल ये पुरानी हैं..
..मैं तुम्हारा हूँ..
..लेकिन समझ ये नादानी हैं..!


..मैं उदास हुएं बैठा हूँ..

..मैं उदास हुएं बैठा हूँ..
..कहानी जो थीं मेरी..
..आँखों में लिए बैठा हूँ..
..आँसुओं से जुदा ना हो तस्वीर तेरी..
..इसलिए खाली रात लिए हुएं बैठा हूँ..
..मैं दुआओं में जो तुम्हें माँग बैठा हूँ..
..बस वहीं जज़्बात लिए हुएं बैठा हूँ..
..तेरी तस्सवूर में जो कर बैठा हूँ..
..वही मुकम्मल मुहब्बत की किताब लिए हुएं बैठा हूँ..
..मैं उदास हुएं बैठा हूँ..
..कहानी जो थीं मेरी..
..आँखों में लिए बैठा हूँ..
..तेरी ज़ुल्फ़ों के नीचें तेरी बाहों को भींचें..
..तेरी पहलूं में एक घनी छाँव लिए बैठा हूँ..
..तेरे होंठों की खुशबू तेरी साँसों की गर्मी..
..तेरी चाहत में आवारगी की एक वारदात लिए बैठा हूँ..
..बस आँखों में सपना तेरा ज़ुबाँ ये नाम तेरा..
..ज़ाँ आरज़ूं में तेरी मैं यें एक गुलाब लिए बैठा हूँ..
..मैं उदास हुएं बैठा हूँ..
..कहानी जो थीं मेरी..
..आँखों में लिए बैठा हूँ..!


..मैं नाराज़ हूँ मगर तुम्हारें पास हूँ..

..मैं नाराज़ हूँ मगर तुम्हारें पास हूँ..
..मैं राज़ हूँ मगर तुम्हारें साथ हूँ..
..ख़्वाब हूँ या सायां तेरा..
..मगर रूह से तेरे पास हूँ..
..मैं एक बात हूँ..
..मगर किताब में तुम्हारें साथ हूँ..
..मैं आशिक हूँ..
..मगर गुलामी में तेरा ख़ास हूँ..
..मैं जज़्बात हूँ..
..मगर खुद से उदास हूँ..
..मैं नाराज़ हूँ मगर तुम्हारें पास हूँ..
..मैं राज़ हूँ मगर तुम्हारें साथ हूँ..!


Tuesday, 8 April 2014

..इसलिए ख़ामोश हुए बैठा हूँ..!

..एक हुजूम लिए बैठा हूँ..
..फ़िर भी उदास हुएं बैठा हूँ..
..कोई समझता नहीं मेरी बातों को..
..इसलिए ख़ामोश हुए बैठा हूँ..
..इक साथी साथ लिए बैठा हूँ..
..फ़िर भी नाराज़ हुए बैठा हूँ..
..ज़िन्दगी के राह में जीत लिए बैठा हूँ..
..फ़िर भी मौत के करीब हुए बैठा हूँ..
..मैं उजालें के साथ हुए बैठा हूँ..
..फ़िर भी फ़रेब से जोग किए बैठा हूँ..
..किस्मत साथ लिए बैठा हूँ..
..फ़िर भी खुद को दरकिनार किए हुए बैठा हूँ..
..एक वक्त लिए बैठा हूँ..
..फ़िर भी गज़ल को सख़्त किए हुए बैठा हूँ..
..एक हुजूम लिए बैठा हूँ..
..फ़िर भी उदास हुएं बैठा हूँ..
..कोई समझता नहीं मेरी बातों को..
..इसलिए ख़ामोश हुए बैठा हूँ..!


Monday, 7 April 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..कौन करे कोई कानूनी वादें..
..कौन करे अब समाज़ी बकवासे..
..जब ज़र्रा-ज़र्रा तेरे दिल का दलाली हो..
..तो फ़िर कौन करे हक की बातें..!

[2] ..बात पे बात कौन करें..
..रात पे रात कौन जगे..
..जब तु समझनें को तैयार ही ना हो..
..तो फ़िर आँखें चार कौन करें..!


..ये हुनर हैं किस बात का..

..ये हुनर हैं किस बात का..
..जो वक्त पे ना काम आए..
..ये ज़ान हैं किस बात का..
..जो हिन्दुस्तान के काम ना आए..
..रग-रग में भरा है खून..
..आँखों में बसा हैं आक्रोश..
..किस्मत हैं किस बात..
..ज़ो मंज़िल को ना जाएं..
..सयाना किस काम का मैं..
..जो तुझसे फ़रेब ना कर पाऊँ..
..ये गज़ल हैं किस बात..
..जो तेरे ज़ुबाँ पे ना छाएं..
..ये शाम हैं किस बात..
..जो लम्हों को ना सज़ाँ पाएं..
..ये हुनर हैं किस बात का..
..जो वक्त पे ना काम आए..
..ये ज़ान हैं किस बात का..
..जो हिन्दुस्तान के काम ना आए..!


Sunday, 6 April 2014

..मैं आशियाँ बनाता रहा..

..शहर में अँधेरा रहा..
..घर मैं उजाला करता रहा..
..पंछियाँ घर को ना आई..
..मैं चैंन की साँस लेता रहा..
..बेखबर इस दुनियाँ के इरादों से..
..मैं आशियाँ बनाता रहा..
..लगी आग जो सीनें में तेरे..
..धूँ-धूँ करते..
..वर्मा ये नाम मेरा जलता रहा..!


..शायरी ये ज़िन्दगी सीखा देती हैं..!

..हर शायर मुहब्बत का मारा नहीं होता..
..कभी ज़िन्दगी भी कुछ फ़न सीखा देती हैं..
..हर मंज़िल का कोई किनारा नहीं होता..
..कभी तूफ़ां भी ये रुख बिगाड देती हैं..
..हर रिश्तों के पीछें कोई उद्देश्य नहीं होता..
..दुनियाँ ये कभी दिखा देती हैं..
..मैं तो था ही आवारा वर्मा..
..वर्ना सुना था..
..शायरी ये ज़िन्दगी सीखा देती हैं..!


Saturday, 5 April 2014

..छूना चाहता हूँ आसमां को..

..छूना चाहता हूँ आसमां को..
..पकड मेरी अभी ज़मी की हैं..
..करना चाहता हूँ इबादत रब से..
..क्यूंकि इश्क मेरी रकीब से हैं..!

# रक़ीब उसे कहा गया गया है; जो खुद भी उसी लैला की चाह रखता है, जिसके पहलू में मजनूं की दुनिया आबाद है।


..ईश्क जब अधूरा हो..

..ईश्क जब अधूरा हो..
..तब ये दुनियाँ भी अधूरी ही लगती हैं..
..ईश्क जब शराबी हो..
..तब ये दुनियाँ भी झूमती नज़र आती हैं..
..ईश्क में सवालें जब हो..
..तो दुनियाँ ये फ़रेबी लगती हैं..
..ईश्क चीज़ ही ऐसी हैं..
..जो होती हैं..
..तो ये दुनियाँ भी परेशां ही लगती हैं..!


Nitesh Verma Poetry

[1] ..कोई ख़्वाब सज़ाँ देखा तो तेरी याद आई..
..कोई रात सज़ाँ देखा तो तेरी याद आई..
..मुझमें सज़ाँ ये ज़हाँ देखा तो तेरी याद आई..
..ऐ मेरी मुहब्बत..
..ज़मानें में किसी को उदास देखा तो तेरी याद आई..!

[2] ..तुझमें जो डूबा था मैं तो दीवाना कहलाया..
..तुझसे बिछडा तो मैं सयाना कहलाया..
..क्या करोगी जान के इस ज़मानें के बारें में..
..मेरी की मुहब्बत जो यहां बेवफ़ा कहलाया..!


Friday, 4 April 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] .मैं उल्झनों से गुजरा तो तेरी याद आई..
..तेरी वो की बेवफ़ाई मेरे बहोत काम आई..!

[2] ..मुहब्बत के अलावा और भी दर्द हैं इस ज़मानें में..
..ज़िन्दगानी ये तुझे शायर बना देती हैं वर्मा..!

[3] ..अब रब भी मुझसे क्या छीनेंगा वर्मा..
..भरी बाज़ार जो मैं दिल उछाल आया हूँ..!

[4] ..अब कोई कारीगार नहीं जो मुझे फ़िर से दुबारा सज़ाएँ..
..ज़िन्दगानी को मैं अपने मौत से ज़ोड आया हूँ..!

[5] .. तेरी हर इक अदा पे मैं मरता रहा..
..ज़ालिम मेरी मौत पे भी तुझे हँसी आई..!

[6] ..सुनाया था मैंनें खिस्सा जो भरे बाज़ार अपना..
..सारी हूज़ूम सर पकड अपना बैठ गया..!


..मैं दीवाना था जो तेरी बातों में आ गया..

..मैं दीवाना था जो तेरी बातों में आ गया..
..मैं सयाना था जो तेरी आँखों पे छा गया..
..सपनों से उतर तेरे दिल में जा बसा..
..मैं कमीना था जो गिरी हरकतों पे आ गया..
..जबरन मैं तुझसे जुडनें लगा..
..मुहब्बत का भार तुझपे करने लगा..
..सयाना हुआ करता था भरी महफ़िल में मैं..
..दीवाना बना के तुमने अवारा कर दिया..
..मैं दीवाना था जो तेरी बातों में आ गया..
..मैं सयाना था जो तेरी आँखों पे छा गया..!


..जो मैं नाकारा हूँ..

..मुहब्बत में हैं किसने कमाया..
..जो मैं नाकारा हूँ..
..इश्क की बाज़ियों में खडा..
..क्यूं ये मैं बेसहारा हूँ..
..हराया गया हूँ ज़िस मुकाम से..
..ज़ीत का सफ़र अब आसान नहीं..
..इस मुहब्बत में मैंनें जो लुटायां हैं..
..मेरी मौत से वो आसान नहीं..
..क्यूं सताया गया हूँ इश्क के दर्द से..
..ज़िन्दगी जीना अब ये आसान नहीं..
..सयाना साथी मुहब्बत में मुझे अब गवाराँ नहीं..
..दर-बदर जो मैं सताया गया हूँ..
..मुहब्बत में हैं किसने कमाया..
..जो मैं नाकारा हूँ..
..इश्क की बाज़ियों में खडा..
..क्यूं ये मैं बेसहारा हूँ..!


Thursday, 3 April 2014

..दर्द दिलों से मेरे कम हो जाते..

..आँखों से तेरे सनम हम जुड जाते..
..मुहब्बत में शातिर सनम हम कर जाते..
..दर्द दिलों से मेरे कम हो जाते..
..गर सीनें में जो तुम मेरे बस जाते..
..सारें दिल के बैठे ये भ्रम टूट जाते..
..गर बातों में मेरे सनम तुम बस जाते..
..उल्फ़त में राहत तुम कर जाते..
..गर साँसों से तेरे हम बँध जाते..
..दर्द दिलों से मेरे कम हो जाते..
..गर सीनें में जो तुम मेरे बस जाते..!


Nitesh Verma Poetry

..क्या हुआ जो मैं नासमझ निकल गया..
..गर सयाना भी होता तो तेरा ही होता..!

..दिल खुश हो जाता हैं बस तेरे एक ज़िक्र से..
..गर तु पास होता तो क्या होता..!

..बेबकूफ़ बनाया गया हूँ या बना फ़िरता हूँ..
..आशिकी में तेरे ये मैं क्या किए फ़िरता हूँ..!

..अब नासमझ ही होना सही हैं..
..सयानों पे ज़ुर्म कुछ ज़्यादा ही हुआ करता हैं..!


..दिल भरें बाज़ार उतरें..

..सुना था दिल एक बाज़ार..
..सौदागर ये ज़माना है..
..अच्छी कीमत मिल ज़ाऐगी..
..मुझे मेरे तकदीर से..
..सोच मैं ये भरें बाज़ार उतरा..
..किश्तों में लूटा सबनें मुझे..
..तब आकर ये समझ आया..
..दिल भरें बाज़ार उतरें..
..तो टूट ही जाता हैं..!