Tuesday, 22 April 2014

..उम्र मेरी छोटी पड गई..

..उम्र मेरी छोटी पड गई..
..नज़र जो मेरी तेरी तस्वीर पे पडी..
..हसरत ये छोटी पड गई..
..घनी रात के दरमयां..
..जो फ़सी थी बाहों में मेरे तुम..
..बात रात की सुहानी पड गई..
..हल्कें से दबे पावं..
..तुम आएं थें करीब मेरे..
..सीनें से लगे तो साँसें धीमी पड गई..
..नज़र जो तेरी नज़र से मिली..
..तो कयामत पड गई..
..बहती हवाओं बारिशों के बीच..
..नाम ये शबनमीं पड गई..
..लबों पे खामोशी पड के रह गई..
..तुमसे हुएं जो रु-ब-रु..
..ज़िन्दगी ये दीवानी हो के रह गई..
..काश और सुनातें..
..मगर दीदार-ए-हुश्न के खातिर..
..हम आँखें खोल के रह गए..
..उम्र मेरी छोटी पड गई..
..नज़र जो मेरी तेरी तस्वीर पे पडी..
..हसरत ये छोटी पड गई..!

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