Thursday, 10 April 2014

..एक समुन्दर सी बात दूजी ये खामोश भरी रात..

..एक समुन्दर सी बात दूजी ये खामोश भरी रात..
..खुद में घुट-घुट के जीता रहा..
..बतानें को जो थी मुझे मेरी सौगात..
..आहिस्ता-आहिस्ता मंज़िल के तरफ़ चला भी था..
..चोर नज़रों से तुझे देखा भी करता था..
..हाथ पकड ये गुलाब जो देना चाहता था..
..इसलिए खातिर तेरे चौराहें पे खडा था..
..भूल ना समझना मेरी मुहब्बत को..
..तेरे लिए मैंनें ये ज़िन्दगी बर्बाद कर रखा था..
..मेरे ख़्वाबों में एक तुम थे बसे..
..बात मैं ये सरेआम करना चाहता था..
..मगर करूँ क्या..
..एक समुन्दर सी बात दूजी ये खामोश भरी रात..!


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