Tuesday, 15 April 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..समझ मेरे मन की बात तु चुप रह जा..
..दुनियाँ सुनती है तो तमाशा बना देती हैं..!

[2] ..अब चलो ज़िन्दगी को दरकिनारें किएं चलता हूँ..
..दिल देखों..
..मौत की रात मैं आशिकी किएं चलता हूँ..!

[3] ..हूनर हैं ये मेरा मैं जो ज़मानें में चमकता हूँ..
..तुमनें तो मुझे कंगाल ही समझा था..!

[4] ..शायद तुम ही थें मेरे दोस्त जो शायर बने फ़िरतें थें..
..भरी महफ़िल उसनें तुम्हें अपना महबूब बता दिया..!


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