Thursday, 10 April 2014

Nitesh Verma Poetry

..किसी के सताएं ज़िन्दगी ये मेरी..
..मौत के तलबगार हो रख्खी हैं..
..रोना चाहता था ख़ूब मगर..
..आँखों में तेरी तस्वीर जो बसाएं रख्खी हैं..!


..हर बात पे समझाना मुझे ना आया वर्मा..
..वर्ना सबक भी आता था मुझे ख़ूब सीख़ाना..!


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