Friday, 4 April 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] .मैं उल्झनों से गुजरा तो तेरी याद आई..
..तेरी वो की बेवफ़ाई मेरे बहोत काम आई..!

[2] ..मुहब्बत के अलावा और भी दर्द हैं इस ज़मानें में..
..ज़िन्दगानी ये तुझे शायर बना देती हैं वर्मा..!

[3] ..अब रब भी मुझसे क्या छीनेंगा वर्मा..
..भरी बाज़ार जो मैं दिल उछाल आया हूँ..!

[4] ..अब कोई कारीगार नहीं जो मुझे फ़िर से दुबारा सज़ाएँ..
..ज़िन्दगानी को मैं अपने मौत से ज़ोड आया हूँ..!

[5] .. तेरी हर इक अदा पे मैं मरता रहा..
..ज़ालिम मेरी मौत पे भी तुझे हँसी आई..!

[6] ..सुनाया था मैंनें खिस्सा जो भरे बाज़ार अपना..
..सारी हूज़ूम सर पकड अपना बैठ गया..!


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