Nitesh Verma Poetry
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Thursday, 3 April 2014
..दिल भरें बाज़ार उतरें..
..सुना था दिल एक बाज़ार..
..सौदागर ये ज़माना है..
..अच्छी कीमत मिल ज़ाऐगी..
..मुझे मेरे तकदीर से..
..सोच मैं ये भरें बाज़ार उतरा..
..किश्तों में लूटा सबनें मुझे..
..तब आकर ये समझ आया..
..दिल भरें बाज़ार उतरें..
..तो टूट ही जाता हैं..!
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