Wednesday, 2 April 2014

..राम और रहीम फ़र्क कर सहज़ हो गयी..

..पहल जो हुई थी अब हलचल हो गयी..
..नाम मज़हब की अब सरल हो गयी..
..कैसे लेना हैं मत अपने हक में..
..राम और रहीम फ़र्क कर सहज़ हो गयी..
..आक्रोश,आगोश और क्रांति..
..सारें ये चुनावी मतदान के पहलूं हो गए..
..हम बैठे रहें और नाम क्रांतिकारी हो गए..
..ज़ीतना हैं मुझे खुद को हरा..
..ये बात अब आम हो गयी..
..मैं हूँ तुम्हारें देश का स्वरूप..
...वादा करने वाले अनेक हो गए..
..चेहरें पहचानना अब मुश्किल हो गया..
..ख़ता ये कर दिया..
..जो ये सियासी बात समझ गया..
..लिखना था इंसाफ़ राज़ मिला देख..
..ये फ़रेब कर गया..
..हक में हैं क्या मेरे..
..मैं सोच ये खामोश हो गया..!


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