Monday, 7 April 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..कौन करे कोई कानूनी वादें..
..कौन करे अब समाज़ी बकवासे..
..जब ज़र्रा-ज़र्रा तेरे दिल का दलाली हो..
..तो फ़िर कौन करे हक की बातें..!

[2] ..बात पे बात कौन करें..
..रात पे रात कौन जगे..
..जब तु समझनें को तैयार ही ना हो..
..तो फ़िर आँखें चार कौन करें..!


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