Thursday, 17 April 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..सब अपनें छोड पराया कौन हैं..
..तू हैं साथी तो फ़िर हराया कौन हैं..
..मैं समझता नहीं क्या बातें सबकी..
..वर्मा जो देख सुनानें कहानी आया कौन हैं..!

[2] ..मेरे पीछें करता हैं वो बातें रूख़सरी..
..सामनें मेरे मेरा दीदार करता हैं..!

[3] ..कैसे करता हैं वो ऐसे कारनामें..
..तौबा वर्मा यें शातिर भी हैंरान रहता हैं..!

[4] ..किसी दिन वो कर आऐगा मेरे वज़ूद का सौदा..
..इश्तेहार जो मोहब्बत का मैंनें हाथ में दे रक्खा हैं..!

[5] ..सोचा था इज़हार करूं मैं भी अपने दर्द का..
..खामोश पन्नों को देख खामोश रह गया..!

[6] ..फ़ितरत मेरी यें बदलती नहीं..
..रात भर जो सोऊँ ना तुझमें..
..दिन मेरी गुजरती नहीं..!

[7] ..अब फ़िर बेचेंगें तुम्हें अपनी शायरी में डाल..
..मुहब्बत डायरी की वर्मा अब भारी हो चली हैं..!


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