Tuesday, 22 April 2014

..सारें गुनाह मेरे धूल गए सीनें से जो मेरे तुम लग गए..

..सारें गुनाह मेरे धूल गए सीनें से जो मेरे तुम लग गए..
..शोर शहर से कम हो गए सीनें से जो मेरे तुम लग गए..
..अपराध अब इस रात से कम हो गए..
..नज़रें खामोश से हो गए..
..चल दिए हम किसी और गली..
..सीनें से जो मेरे तुम लग गए..
..बेवज़ह मैं जुडा चला था..
..बेमतलब मैं ज़मानें का हो चला था..
..काश! अक्ल आ जाती उस वक्त..
..जिस समय मैं हालातों पे रो पडा था..
..हो गई मेरी सारी ज़िन्दगी ख़राब..
..अब मैं मौत का हो चला था..
..अए! मौत तुझसे अब मिलकर..
..सारें गुनाह मेरे धूल गए सीनें से जो मेरे तुम लग गए..
..शोर शहर से कम हो गए सीनें से जो मेरे तुम लग गए..!


No comments:

Post a Comment