[1] ..मैं सुनाता रहा तुम सुनते रहें..
..गज़ल को सम्मान इसी तरह मिलते रहे..
..और एक दिन तुम मुझसे बेरूख हो गए..
..मैं समझाता रह गया..
..और तुम उल्झतें रह गए..!
[2] ..सारी बातों को हमने किनारे कर दिया..
..तुम्हारा नाम उठाया और गुलामी कर दिया..
..इस तरह इज़हार कर रहा था मैं अपनी मुहब्बत..
..तुमने नज़र उठाया और हमे कातिल कर दिया..
[3] ..रोज़ सुनाता मैं अपनी नाराज़गी की दास्तां..
..तुमने गले लगाया और खामोश करा दिया..!
[4] ..अब हर्श की बात कौन करेगा वर्मा..
..मुहब्बत जो वो कर बैठा हैं..!
..गज़ल को सम्मान इसी तरह मिलते रहे..
..और एक दिन तुम मुझसे बेरूख हो गए..
..मैं समझाता रह गया..
..और तुम उल्झतें रह गए..!
[2] ..सारी बातों को हमने किनारे कर दिया..
..तुम्हारा नाम उठाया और गुलामी कर दिया..
..इस तरह इज़हार कर रहा था मैं अपनी मुहब्बत..
..तुमने नज़र उठाया और हमे कातिल कर दिया..
[3] ..रोज़ सुनाता मैं अपनी नाराज़गी की दास्तां..
..तुमने गले लगाया और खामोश करा दिया..!
[4] ..अब हर्श की बात कौन करेगा वर्मा..
..मुहब्बत जो वो कर बैठा हैं..!
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