Monday, 7 April 2014

..ये हुनर हैं किस बात का..

..ये हुनर हैं किस बात का..
..जो वक्त पे ना काम आए..
..ये ज़ान हैं किस बात का..
..जो हिन्दुस्तान के काम ना आए..
..रग-रग में भरा है खून..
..आँखों में बसा हैं आक्रोश..
..किस्मत हैं किस बात..
..ज़ो मंज़िल को ना जाएं..
..सयाना किस काम का मैं..
..जो तुझसे फ़रेब ना कर पाऊँ..
..ये गज़ल हैं किस बात..
..जो तेरे ज़ुबाँ पे ना छाएं..
..ये शाम हैं किस बात..
..जो लम्हों को ना सज़ाँ पाएं..
..ये हुनर हैं किस बात का..
..जो वक्त पे ना काम आए..
..ये ज़ान हैं किस बात का..
..जो हिन्दुस्तान के काम ना आए..!


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