Sunday, 20 April 2014

..भरें शहर की उदासी लेके चला था..

..भरें शहर की उदासी लेके चला था..
..ज़हन में अपने..
..शहर भर के गम लेके चला था..
..कोई उदास ना हो अब इस शहर..
..सोच के मैं उस ज़मानें को निकला था..
..दर्द की सारी तस्वीर को..
..मैली चादर पे समेटे निकला था..
..मैं था मज़बूर..
..जो अंधेरों में किनारें से निकला था..
..दस्तूर मैं क्या बताऊँ अपनी..
..मैं शहर की आबादी से निकला था..
..मज़बूर गरीब की आहं देख..
..दिल भर के चला था..
..मैं अपने से परेशां..
..मैं अपने शहर से निकला था..
..भरें शहर की उदासी लेके चला था..
..ज़हन में अपने..
..शहर भर के गम लेके चला था..!


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