Nitesh Verma Poetry
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Sunday, 6 April 2014
..मैं आशियाँ बनाता रहा..
..शहर में अँधेरा रहा..
..घर मैं उजाला करता रहा..
..पंछियाँ घर को ना आई..
..मैं चैंन की साँस लेता रहा..
..बेखबर इस दुनियाँ के इरादों से..
..मैं आशियाँ बनाता रहा..
..लगी आग जो सीनें में तेरे..
..धूँ-धूँ करते..
..वर्मा ये नाम मेरा जलता रहा..!
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