Wednesday, 16 April 2014

..एक तुम्हारें रोकनें से क्या होगा वर्मा..

..बेमतलब बेमकसद बेपरवाह की बात किएं जा रहे हैं..
..फ़िर भी सियासत में हम राज़ किएं जा रहे हैं..
..उलट-पुलट के हम बातों को पेश किएं जा रहें हैं..
..फ़िर भी दिलों में सबके घर किएं जा रहें हैं..
..ज़नता जनार्धन अब की ना रही वर्मा..
..फ़रेब गहरी किएं फ़िर भी जीते जा रहें हैं..
..दुश्मनी खुलेआम किएं जा रहें हैं..
..फ़िर भी डंके के चोट पे जीतेंगें हमी कहें जा रहें हैं..
..और किस तरह से हम लूटें तुम्हें सोच के हँसे जा रहें हैं..
..वोट करवा आएं हैं हम जागीर अपने बाप की..
..बेमतलब में तुमसे हम लुका-छिप्पी का खेल किएं जा रहें हैं..
..दिखा तुमसे मुहब्बत हम तेरा दिल लिएं जा रहें हैं..
..राष्ट्रनीति को हम राज़नीति से ज़ोड..
..मज़हब के नाम खूनी खेल किएं जा रहें हैं..
..एक तुम्हारें रोकनें से क्या होगा वर्मा..
..जब देश में हम कानूनी किएं जा रहे हैं..
..बेमतलब बेमकसद बेपरवाह की बात किएं जा रहे हैं..
..फ़िर भी सियासत में हम राज़ किएं जा रहे हैं..!


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