Tuesday, 15 July 2014

..मुक्तसर सी वो इश्क में मुलाकात थीं..

..मुक्तसर सी वो इश्क में मुलाकात थीं..
..ज़ुबां खामोश ही थें..
..आँखों की बात कायनात थीं..

..आलिंगन में होनें को जी चाहता था बडा..
..लब से लब मिलें यें दिल चाहता था बडा..

..भोली सूरत, खामोश निगाहें..
..चाह के भी नज़रें कैसे ना झुका पाता था..

..दीवार के ओट से जो वो देखती रहती थीं मुझे..
..दीवार ही थीं वो कैसी..
..जो हम दोनों के बीच लगी रहती थीं..

..मचल जाता था जीं बडा..
..करना चाहता था उसे खुद से रू-ब-रू ज़रा..

..उठा के अखबार वो चली जाती थीं..
..और जाते वक्त पता ना देख मुझे..
..क्यूं मुस्कुराँ जाती थीं..

..मैं रहता था हैंरान..
..मुझपें या मेरें इश्क पे हँस के..
..क्यूं वो चली जाती थीं..

..दीदार चेहरें की आज़ तलक बाकी हैं..
..ना जानें कैसी हैं मुक्द्दर..
..इक उम्र गुजर के भी..
..दिल में कहीं वो बाकी हैं..

..मुक्तसर सी वो इश्क में मुलाकात थीं..
..ज़ुबां खामोश ही थें..
..आँखों की बात कायनात थीं..!

..नितेश वर्मा..

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