..जल गया शहर पूरा..
..वो शक्स आज़ भी बाकी हैं..
..कितनी दुआओं को ले जी रहा हैं..
..इक उम्र आज़ भी बाकी हैं..
..सताता था कभी दिल मेरा जो..
..वो दिल-ए-शहर में आज़ भी बाकी हैं..
..मैं बनाता था हर मजहब के राही अलग..
..की थीं जो अपराध..
..पश्चताप आज़ भी बाकी हैं..
..अब कुछ कहना बनता नहीं वर्मा..
..ज़िन्दगी पे मौत की इख़्तियार आज़ भी बाकी हैं..!
..नितेश वर्मा..
..वो शक्स आज़ भी बाकी हैं..
..कितनी दुआओं को ले जी रहा हैं..
..इक उम्र आज़ भी बाकी हैं..
..सताता था कभी दिल मेरा जो..
..वो दिल-ए-शहर में आज़ भी बाकी हैं..
..मैं बनाता था हर मजहब के राही अलग..
..की थीं जो अपराध..
..पश्चताप आज़ भी बाकी हैं..
..अब कुछ कहना बनता नहीं वर्मा..
..ज़िन्दगी पे मौत की इख़्तियार आज़ भी बाकी हैं..!
..नितेश वर्मा..
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