..मिला जो मैं खाली अब भी था उसकी निगाहों में..
..शायद आसमान था कैसे पकड सकूं उसे बाहों में..
..परों को खोल के जो उडते रहें कुदरती बगानों में..
..लगी आग जो शाम परिंदे बंद हो गए दुकानों में..
..ख्याली-पुलाव बनातें रहें थें जो दिन के उजालों में..
..बढी पेट की जो आग लेके सपनें सो गए आँखों में..
..बतातें रहें थें ईमान मुझे जो लेके गिरेबान हाथ में..
..पूछा जो तख़ल्लुस मैनें शर्मंसार थें मेरे सम्मान में..
..लगे हैं सब यहाँ आलिशां घर बनानें की चक्कर में..
..परिशां थीं जो बच्ची मर गई रोटी चुन के खानें में..
..डर कही नहीं आती वर्मा अब हैं ही क्या ज़मानें में..
..देखना था जिसे बंद आँखें कर वो सोया हैं सतानें में..
..नितेश वर्मा..
..शायद आसमान था कैसे पकड सकूं उसे बाहों में..
..परों को खोल के जो उडते रहें कुदरती बगानों में..
..लगी आग जो शाम परिंदे बंद हो गए दुकानों में..
..ख्याली-पुलाव बनातें रहें थें जो दिन के उजालों में..
..बढी पेट की जो आग लेके सपनें सो गए आँखों में..
..बतातें रहें थें ईमान मुझे जो लेके गिरेबान हाथ में..
..पूछा जो तख़ल्लुस मैनें शर्मंसार थें मेरे सम्मान में..
..लगे हैं सब यहाँ आलिशां घर बनानें की चक्कर में..
..परिशां थीं जो बच्ची मर गई रोटी चुन के खानें में..
..डर कही नहीं आती वर्मा अब हैं ही क्या ज़मानें में..
..देखना था जिसे बंद आँखें कर वो सोया हैं सतानें में..
..नितेश वर्मा..
No comments:
Post a Comment