Friday, 4 July 2014

..माँ..

माँ शब्द जितना आसान और छोटा हैं उसकी गुणवत्ता, महत्तवता उतनी ही बडी और सरल। आप समझोंगें तो समझ पाओगें की मातृत्व क्या होता हैं। माँ के बारें में लिखना आसान होता हैं पर जब माँ को शब्दों में बाँधना हो तो यह उतना ही मुश्किल हो जाता हैं जैसे की राम के चरित्र को शब्दों में बाँधना। माँ वो स्वरूप होती हैं जिसमें बच्चा उनसे अपनें जन्म से पहलें जुडा होता हैं। यानी की माँ को भगवान का साथीं या उनका रूप भी कहा जा सकता हैं। माँ अमूल्यवान और ज़िन्दगी की अहम कडी होती हैं जो अपनें बच्चें के खातिर कुछ भी करनें को तैयार रहती हैं। सारी विषम परिस्थितियों को झेंलती हैं। माँ ममता की प्रतीक होती हैं। या यों कह ले जो आप ही कहतें हैं माँ तो बस माँ होती हैं।

..सुबह से राह तके बैठी हैं..
..घर के कोनें में..
..एक तस्वीर ले के बैठी हैं..

..नम हो गए हैं दामन उसके..
..आँचल के कोनें में..
..जो सितारें ले के बैठी हैं..
.
..माँगती हैं अपनें हर दुआ में..
..अपनें बच्चें की खैरियत..
..माँ वो इंतज़ार में..
..आज़ भी आँखें लिएं बैठी हैं..! 

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