Monday, 21 July 2014

..मुठ्ठी में थीं चंद किस्मत आसमानों में लूटा दिया..


..हमनें कमाया जो सब तुझपे लगा दिया..
..चाहां तुझे और खुदको समूचा लूटा दिया..

..रस्मों-रिवाजों को जिसनें आग लगा दिया..
..मिला जो मैं तो अपनी हस्तीं लूटा दिया..

..लगी आग को उसने जिस राख से बुझा दिया..
..जलता रहा शहर खुदको जो उसने लूटा दिया..

..मुझे मंदिरों में ले जा के उसने आराम दिया..
..हाथ में कटोरा और पूरा मंदिर लूटा दिया..

..सबनें आज जो देखा उसे वो दुतकार दिया..
..मुठ्ठी में थीं चंद किस्मत आसमानों में लूटा दिया..

..नई-नवेली दुल्हन की तरह अपनी बेटी को सजा दिया..
..मय्यत पे ना हो शोर उसने दावत पे खुदको लूटा दिया..

..नितेश वर्मा..


No comments:

Post a Comment