Saturday, 12 July 2014

..बताना अच्छा नहीं लगता..

..बताना अच्छा नहीं लगता..
..दर्द हैं बहोत..
..दिखाना अच्छा नहीं लगता..

..क्यूं भला कोई नाराज़ रहता हैं मुझसे..
..समझ आता हैं..
..पर समझाना अच्छा नहीं लगता..

..सरहदों पे खडे रहते हैं मेरे देश के जवां..
..मुश्किल में हैं जमाना तेरा..
..खुदा तुझे ये समझाना अच्छा नहीं लगता..

..खाली पेट सो जातें हैं बच्चें जिसकें..
..रोज़ा हैं क्या..?
..खुद को समझाना अच्छा नहीं लगता..

..बहोत सह ली जुल्म मैंनें..
..दर्द की कोई अब मरहम नहीं..
..सुनता नहीं वो जो हैं खुदा मेरा..
..सजदें में गिड-गिडाना अच्छा नहीं लग्ता..

..तकलीफ़ में हूँ तो कुछ कह देता हूँ..
..ऐ खुदा! दूजा कौन हैं मेरा..
..बतलाना अच्छा नहीं लगता..

..सब होतें हैं काम के यार..
..दोस्ती में भी रिश्तेदारी..
..ये अच्छा नहीं लगता..

..समझ जाता हैं मेरी हरकतों को जो..
..परेशां हो वो..
..तो जीना अच्छा नहीं लगता..

..मासूम हैं जमाना तो..
..क्यूं कोई चैंन से सोता नहीं..
..आँखों में महज़ कल के सपनें हो..
..देखना अच्छा नहीं लगता..

..नादान हैं वो..
..जो मेरें इश्क में आज़ भी जाँ देती हैं..
..कमबख्त प्यार हैं मुझे भी..
..पर इतराना अच्छा नहीं लगता..

..अब सुनाना अच्छा नहीं लगता..
..मर गया हैं जो वो..
..दास्तां कुछ कहना अच्छा नहीं लगता..

..सब सुनें ऐसी कोई बात नहीं..
..पर ज़माना ना सुनें..
..तो अच्छा नहीं लगता..

..बताना अच्छा नहीं लगता..
..दर्द हैं बहोत..
..दिखाना अच्छा नहीं लगता..!

..नितेश वर्मा..

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