..हर वक्त आती हैं तेरी याद कैसे..
..ना जानें खाली कमरें में..
..रह जाती तेरी याद कैसे..
..दिल बे-घर रहता हैं मेरा..
..ज़ज्बातों पे मेरे छा जाती हैं..
..ना जानें तेरी याद कैसे..
..आँखों में बसी रहती हैं..
..तेरी याद कैसे..
..रो-रो के गिराता हूँ..
..फ़िर चली आती हैं तेरी याद कैसे..
..तस्वीर को कमरें में सजाता हूँ..
..दिल में उतर जाती हैं..
..तेरी याद कैसे..
..बुरा-भला हर वक्त लिखता रहता हूँ..
..मिट जाएं दिल से मेरे..
..मरा लिखता रहता हूँ..
..बातों में हर वक्त..
..तुझे बाज़ार बना देता हूँ..
..खुद की आँखों में भी तुझे गिरा देता हूँ..
..हर वक्त तुझे भूलाता हूँ..
..सीनें में हैं ज़ख्म भरा..
..जमानें से ये राज़ छुपाता हूँ..
..हर-पल मैं खुद में जी लेता हूँ..
..पता ना रात में आ जाती हैं..
..ये तेरी याद कैसे..
..मैं जागता हूँ आँखें सो जाती हैं..
..हो जाता हूँ मैं खुद में मुक्कमल..
..आखिर कह जाती हैं मेरे अरमां..
..तेरी याद कैसे..
..हर वक्त आती हैं तेरी याद कैसे..
..ना जानें खाली कमरें में..
..रह जाती तेरी याद कैसे..!
..नितेश वर्मा..
..ना जानें खाली कमरें में..
..रह जाती तेरी याद कैसे..
..दिल बे-घर रहता हैं मेरा..
..ज़ज्बातों पे मेरे छा जाती हैं..
..ना जानें तेरी याद कैसे..
..आँखों में बसी रहती हैं..
..तेरी याद कैसे..
..रो-रो के गिराता हूँ..
..फ़िर चली आती हैं तेरी याद कैसे..
..तस्वीर को कमरें में सजाता हूँ..
..दिल में उतर जाती हैं..
..तेरी याद कैसे..
..बुरा-भला हर वक्त लिखता रहता हूँ..
..मिट जाएं दिल से मेरे..
..मरा लिखता रहता हूँ..
..बातों में हर वक्त..
..तुझे बाज़ार बना देता हूँ..
..खुद की आँखों में भी तुझे गिरा देता हूँ..
..हर वक्त तुझे भूलाता हूँ..
..सीनें में हैं ज़ख्म भरा..
..जमानें से ये राज़ छुपाता हूँ..
..हर-पल मैं खुद में जी लेता हूँ..
..पता ना रात में आ जाती हैं..
..ये तेरी याद कैसे..
..मैं जागता हूँ आँखें सो जाती हैं..
..हो जाता हूँ मैं खुद में मुक्कमल..
..आखिर कह जाती हैं मेरे अरमां..
..तेरी याद कैसे..
..हर वक्त आती हैं तेरी याद कैसे..
..ना जानें खाली कमरें में..
..रह जाती तेरी याद कैसे..!
..नितेश वर्मा..
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