Monday, 28 July 2014

..ये भींगी-भींगी सी शमां रहनें दो..

..ये भींगी-भींगी सी शमां रहनें दो..
..मुझे खुद से जुदा अब रहनें दो..
..मैं चाहता हूँ हो इक घर मेरा..
..मुझे दिल में उसके रहनें दो..

..ये बातें, ये रातें..
..ये शबनमीं शामें..
..उलझें हैं जिसके जुल्फ़ों में..
..अब हो जानें दे..
..कैद आँखों में उसे जरा..
..हो जानें दे आवारा मुझको जरा..
..ले चला हैं दिल जिस कदर..
..किस डगर..
..होंठों पे उसे मेरे अब रहनें दो..
..ये भींगी-भींगी सी शमां रहनें दो..
..मुझे खुद से जुदा अब रहनें दो..

..नाराजगीयाँ, बर्बादीयाँ..
..जिस्मों में लगी हैं शादियाँ..
..उल्फत हैं जैसे इक कसक..
..मेरें आँखों में हैं तेरी वादियाँ..
..आ भर ले तू बाहों में मुझको..
..हो इस कदर कुछ कम ये दूरियाँ..
..इस ख्बाब में मुझे रहनें दो..
..ये भींगी-भींगी सी शमां रहनें दो..
..मुझे खुद से जुदा अब रहनें दो..

..शीशें-सा हो जो चेहरा तेरा..
..बातों पे हूँ मैं ठहरा जरा..
..मुझे दिल की बातें करनें दो..
..हो जब ये मुक्कद्दर..
..तो दर्द ये सहनें दो..
..मेरे आँखों में उसे रहनें दो..
..ये भींगी-भींगी सी शमां रहनें दो..
..मुझे खुद से जुदा अब रहनें दो..!

..नितेश वर्मा..

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