Wednesday, 23 July 2014

..ठंडी कुहासों के बीच..

..ठंडी कुहासों के बीच..
..जब तुम गुजरती थीं..
..मेरे गर्म चाय की प्याली..
..जा के वहीं ठहरती थीं..

..मैं तुम्हारें चेहरें में खोता जाता था..
..तुम नजर छुपा के..
..खामोश आगे बढती थीं..

..तुम्हारें पैरों की आहट से..
..मैं घबरा-सा जाता था..
..सारा शर्म भूला..
..तुझमें समां जाता था..

..तुम बेवजह उनसे शर्माती थीं..
..कुहासें के कारण..
..तुम्हें कुछ समझ नहीं आती थीं..
..सारें के सारें मेरे हबीब ही थें..
..तुम बेवजह उनसे घबराती थीं..

..कोई शोर नहीं होती थीं..
..कुत्तें की अभिनय..
..कुत्तें दोस्तों की होती थीं..

..घबरा के पास तुम मेरे आ जाओगी..
..कहके तुम्हें वो सतातें थें..
..दोस्त भी सारें कितनें अच्छें थें..
..भाभी-भाभी कहके तुम्हें बुलातें थें..

..आज़ फिर से वहीं चौक किनारें बैठा हूँ..
..मिल जाऐंगी आज नज़र तुमसे..
..इस बात से भरी दोपहर बैठा हूँ..!

..नितेश वर्मा..

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