Tuesday, 15 July 2014

..बिखर जातें हैं टूट के आँखों से ख्वाब जैसे..

..बिखर जातें हैं टूट के आँखों से ख्वाब जैसे..
..दिल से लगे आस रह जातें हैं प्यासे वैसे..

..घोंसलें से निकल के परिंदे ढूँढतें हैं बसेरा जैसे..
..अपनों को छुडा आशिक निकलतें हैं ढूँढनें प्यार वैसे..

..ले आतें हैं वो मन्दिरों से अपनें पू्जे का हिसाब जैसे..
..यादें खेल के निकल जातें हैं उसके मेरे होंठों पे वैसे..

..सब माँगतें हैं हर-वक्त एक रात सुहानी जैसे..
..मेरें बाहों में भींगें वो हो हंसरती शामें वैसे..

..लिया था पूर्वजों ने आजादी के लिए अंग्रेजों से लोहा जैसे..
..सहमा-सहमा रहता हूँ कहीं फिर से करना ना पडे हो बातें वैसे..

..समुन्दर की बेबाक लहरें आती-जाती हैं जैसे..
..मेरें खुली जुल्फें बेखौफ़ आज़ लहराती हैं वैसे..

..नितेश वर्मा..

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