Friday, 4 July 2014

..हिसाब उसे आज़ करने दो..

[अग्नि-परीक्षा = जिसमें स्त्रियों को अपनी गुणवत्ता का प्रमाण धधकती अग्नि से गुजर के देना होता था। उनकें शुद्धता का प्रमाण अग्नि में प्रविष्ट होकर ही चल पाता था। रीति-रिवाज ऐसी ही थीं मैं उनका उल्लघंन नहीं कर सकता पर यह जरूर कह सकता हूँ के समाज़ में अभी तक जितनें बदलाव हुएं कोई भी स्त्रियों के पक्ष में नहीं हुएं अपितु नाम उनका ही होता लेकिन संशोधन वर्चस्व-प्रधान समाज करता हैं। पहलें जो स्थिति थीं आज़ भी वहीं हैं बस नाम और रूप बदल गए हैं, क्या करें जमाना टेक्निकल हो गया हैं ना।]

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..बातें बेमतलब की उसे आज़ करनें दो..
..बहोत दिनों बाद मिला हैं..
..गीलें-शिकवें उसे आज़ करनें दो..

..चले आएं थें जिस घर का चिराग बुझा हम..
..पकडे गए जो सरे-आम..
..हिसाब उसे आज़ करने दो..

..तेरे खातिर जिसने कांटें घोर-विरह हे राम!
..क्यूं थीं अग्नि-परीक्षा सीता की..
..थीं जो ये सवाल उसे आज़ करनें दो..

..इबादत में बैठें थे कई बार गालिब भी मौला तेरे..
..गुजरी क्यूं ज़िन्दगी तंग-ए-हाल..
..थीं जो ये मलाल उसे आज़ करनें दो..    [मलाल = मन में होनेवाला दुख]

..अमां बातों से भी पेट भरता हैं कभी किसी का..
..थीं जो नासूर-ए-ज़ख्म..
..बयां उसे आज़ करने दो..

..बेवफ़ा ही निकला वो तो क्या हर्ज़ हैं इसमें..
..थीं जो उसकी मुहब्बत..
..उसे आज करनें दो..

..अब रोकनें का भी तेरा कोई हक नहीं बनता वर्मा..
..हुई थीं जो रंज़िशें..
..पाक उसे आज करनें दो..     [पाक = पवित्र]

..बातें बेमतलब की उसे आज़ करनें दो..
..बहोत दिनों बाद मिला हैं..
..गीलें-शिकवें उसे आज़ करनें दो..!

..नितेश वर्मा..

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