..आँखों में जो छलक गएं दो बूंद पानी के..
..उसने बिना देखें ही आँसू को शराब कह दिया..
..देखती रही आँखें हर वक्त जिस नाम को..
..तमाम उम्र की आशिकी को उसने नादानी कह दिया..
..मैं उसकी याद में ना-जानें कहाँ बैठा था..
..पलक जो क्या झपकाया मैनें उसनें ख्वाब कह दिया..
..क्यूं मेरी मुहब्बत में वो नुक्स निकालती रहती थीं..
..पूछा जो मैनें सब एक-तरफा कह दिया..
..सुबह-शामें-रातें ना जानें मैनें कितने जागे थें..
..मेरी हरकतों को सरे-आम उसने इक शैतानी कह दिया..
..नितेश वर्मा..
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