कभी-कभी खुद को ये समझाना बहोत मुश्किल होता हैं आखिर क्यूं कुछ कहानियाँ अधूरी ही रह जाती हैं। क्या यहीं नियति में होता हैं या फिर हम नियति मान उसे स्वीकार लेते हैं। क्यूं अधूरें राह की तरह ये कहानियाँ होती हैं, बिना किसी मंज़िल के भटकती रहती हैं। मक्सद क्या होता हैं..? आखिर इन कहानियों को कौन सुनना पसंद करता हैं..? ऐसी कहानियों का क्या? क्या यें कहानियाँ दिल को सुकूं पहोचाती हैं..?
सवाल कई होतें हैं लेकिन कोई जवाब ऐसा नहीं होता जो इस दिल को सुकूं दे सके और उस अधूरें कहानी को भी कहीं ना कहीं पूरा कर दे।दिल बेचैंन रहता है। किसी की बातें बेचैंन कर देती है। हर-वक्त बस वहीं बात सीनें में चलती रहती हैं आखिर आगे क्या हुआ होगा उनके साथ। कैसे और ना जाने कब, जैसे कई सवाल।
हर वक्त नज़र के सामनें जैसे एक उल्झन हो जैसे वो कहानी मेरी हो खुद को देखूं तो परेशानी दिल की चेहरें पे साफ नज़र आ जाए। दिल कहीं लगता नहीं। इसी सोच में डूबा रहता हैं आखिर यें मेरे साथ होता तो कैसा होता उस दुखद अनुभव के बारें में सोच के ही दिल बैठा जाता हैं।
लेकिन तब-तक ये बात अनसुल्झी रहस्य या मिथ्या की तरह होती हैं जब-तक आप खुद-ब-खुद इससे रू-ब-रू नहीं होते। ऐसी कहानियों से मैं भी दूर रहता था।
देर से ही लेकिन एक दिन ऐसा आया जब मुझे समझ आया कुछ कहानियाँ अधूरी ही अच्छी लगती हैं। वो अधूरी हैं तभी सहीं है। उनका वो अधूरापन ही अच्छा लगता हैं वो अधूरें होके भी पूरा बनें रहतें हैं। जैसे किसी अंज़ान रास्तें पे आगें ना चलनें से वो मंज़िल की ओर ना ले जाती हो।
आईयें आपको बिल्कुल ऐसी कहानी सुनाता हूँ जो अधूरी हो के भी पूरी हैं। वो अपनी कहानी के जरिएं एक संवाद कह जाऐगी जो उस अधूरेपन को आपके दिल से मरहम की तरह जुड के उसकी चोट को निकाल देगा।
ये कहानी मेरें और मेरे प्यार की हैं.. पहली नज़र का प्यार हैं.. दिल कुछ सोचता नहीं.. मुहब्बत हो जाती हैं.. मुहब्बत अब इकरार होने को हैं.. पर वक्त वहीं आ के जैसे मेरे लिएं रूक जाती हैं.. एक अज़नबी शक्स का आगमन होता हैं जो मेरे प्यार का असल हिस्सा हैं, एक अहम पहलूं।
हालातें इतनी संगीन हैं.. वो उसके साथ जुडने को मजबूर या यों कहों.. तैयार हैं। शायद उसे मेरी मुहब्बत के इज़हार का इंतज़ार हो.. या मुझे लेकर वो ऐसा कुछ सोचती ही ना हो.. मैं ही शायद कहीं ना कहीं बेवकूफ़ हूँ जो एक ख्वाब ढोता चला जा रहा हूँ।
मैं उसके बारें क्या सोचता हूँ.. शायद उसनें कभी जाना ही नहीं.. कोई तो इशारा करती आज़.. एक बार तो कहती.. लेकिन अब क्या..? अब कुछ कहनें का फ़ायदा ही क्या..? दिल टूट चूका हैं.. हालतें मेरे समझ से बाहर की हैं।
सब बिगडा हुआ हैं, शायद ऐसा ही होता हैं.. सच कहतें हैं कुछ कहानियाँ अधूरी ही रह जाती हैं। लेकिन मेरा क्या..? मैं कोई कहानी नहीं..? मैं कोई देवदूत नहीं जो बस इक मकसद को पूरा करनें को आया हो..? नियति रचनें को आया हो.. आज़ तीन ज़िन्दगीयाँ एक अज़ीब से मोड पे हैं.. कुछ कहना अखबारी हो जाऐगा.. खामोशी.. इस हालत के पक्ष में हैं। अज़ीब दास्तां हैं आखिर क्यूं होता हैं ऐसा..? आईयें देखतें हैं हम..
# हमारी अधूरी कहानी #
..मिले जैसे-तैसे किसी मोड पे..
..करनें लगे बातें हम खुलके जोर से..
..शरम हमें अब किस बात का..
..जुडनें लगे जब हम दिल की डोर से..
..बातें ना बनाओं..
..आँखें ना दिखाओ..
..हैं जो ये कहानी तुम्हारी..
..तो कहके सुनाओ..
..कहनें को आएं जब कहानी हम..
..हिस्सों-हिस्सों में बाँट गएं कहानी हम..
..दिल के दरमयां इक बात बची हैं..
..अधूरें हम और रह गई अधूरी ये ज़ुबानी..
..कहनें को आएं जब हम..
..हमारी अधूरी कहानी..!
..नितेश वर्मा..
सवाल कई होतें हैं लेकिन कोई जवाब ऐसा नहीं होता जो इस दिल को सुकूं दे सके और उस अधूरें कहानी को भी कहीं ना कहीं पूरा कर दे।दिल बेचैंन रहता है। किसी की बातें बेचैंन कर देती है। हर-वक्त बस वहीं बात सीनें में चलती रहती हैं आखिर आगे क्या हुआ होगा उनके साथ। कैसे और ना जाने कब, जैसे कई सवाल।
हर वक्त नज़र के सामनें जैसे एक उल्झन हो जैसे वो कहानी मेरी हो खुद को देखूं तो परेशानी दिल की चेहरें पे साफ नज़र आ जाए। दिल कहीं लगता नहीं। इसी सोच में डूबा रहता हैं आखिर यें मेरे साथ होता तो कैसा होता उस दुखद अनुभव के बारें में सोच के ही दिल बैठा जाता हैं।
लेकिन तब-तक ये बात अनसुल्झी रहस्य या मिथ्या की तरह होती हैं जब-तक आप खुद-ब-खुद इससे रू-ब-रू नहीं होते। ऐसी कहानियों से मैं भी दूर रहता था।
देर से ही लेकिन एक दिन ऐसा आया जब मुझे समझ आया कुछ कहानियाँ अधूरी ही अच्छी लगती हैं। वो अधूरी हैं तभी सहीं है। उनका वो अधूरापन ही अच्छा लगता हैं वो अधूरें होके भी पूरा बनें रहतें हैं। जैसे किसी अंज़ान रास्तें पे आगें ना चलनें से वो मंज़िल की ओर ना ले जाती हो।
आईयें आपको बिल्कुल ऐसी कहानी सुनाता हूँ जो अधूरी हो के भी पूरी हैं। वो अपनी कहानी के जरिएं एक संवाद कह जाऐगी जो उस अधूरेपन को आपके दिल से मरहम की तरह जुड के उसकी चोट को निकाल देगा।
ये कहानी मेरें और मेरे प्यार की हैं.. पहली नज़र का प्यार हैं.. दिल कुछ सोचता नहीं.. मुहब्बत हो जाती हैं.. मुहब्बत अब इकरार होने को हैं.. पर वक्त वहीं आ के जैसे मेरे लिएं रूक जाती हैं.. एक अज़नबी शक्स का आगमन होता हैं जो मेरे प्यार का असल हिस्सा हैं, एक अहम पहलूं।
हालातें इतनी संगीन हैं.. वो उसके साथ जुडने को मजबूर या यों कहों.. तैयार हैं। शायद उसे मेरी मुहब्बत के इज़हार का इंतज़ार हो.. या मुझे लेकर वो ऐसा कुछ सोचती ही ना हो.. मैं ही शायद कहीं ना कहीं बेवकूफ़ हूँ जो एक ख्वाब ढोता चला जा रहा हूँ।
मैं उसके बारें क्या सोचता हूँ.. शायद उसनें कभी जाना ही नहीं.. कोई तो इशारा करती आज़.. एक बार तो कहती.. लेकिन अब क्या..? अब कुछ कहनें का फ़ायदा ही क्या..? दिल टूट चूका हैं.. हालतें मेरे समझ से बाहर की हैं।
सब बिगडा हुआ हैं, शायद ऐसा ही होता हैं.. सच कहतें हैं कुछ कहानियाँ अधूरी ही रह जाती हैं। लेकिन मेरा क्या..? मैं कोई कहानी नहीं..? मैं कोई देवदूत नहीं जो बस इक मकसद को पूरा करनें को आया हो..? नियति रचनें को आया हो.. आज़ तीन ज़िन्दगीयाँ एक अज़ीब से मोड पे हैं.. कुछ कहना अखबारी हो जाऐगा.. खामोशी.. इस हालत के पक्ष में हैं। अज़ीब दास्तां हैं आखिर क्यूं होता हैं ऐसा..? आईयें देखतें हैं हम..
# हमारी अधूरी कहानी #
..मिले जैसे-तैसे किसी मोड पे..
..करनें लगे बातें हम खुलके जोर से..
..शरम हमें अब किस बात का..
..जुडनें लगे जब हम दिल की डोर से..
..बातें ना बनाओं..
..आँखें ना दिखाओ..
..हैं जो ये कहानी तुम्हारी..
..तो कहके सुनाओ..
..कहनें को आएं जब कहानी हम..
..हिस्सों-हिस्सों में बाँट गएं कहानी हम..
..दिल के दरमयां इक बात बची हैं..
..अधूरें हम और रह गई अधूरी ये ज़ुबानी..
..कहनें को आएं जब हम..
..हमारी अधूरी कहानी..!
..नितेश वर्मा..
No comments:
Post a Comment