Tuesday, 22 July 2014

..था राख हर जगह अब दिखाना क्या था..

..मैं गरीब था इसमें इतना समझाना क्या था..
..हालत देखी थीं उसनें मेरी अब बताना क्या था..

..घर जल गया था मैं जिंदा लाश बचा..
..था राख हर जगह अब दिखाना क्या था..

..मस्जिद गया जो खुदा को बतानें सब..
..लाखों रो रहें थें दुख दिल को अब समझाना क्या था..

..सबनें देखा जो चाँद सनम आया था नजर..
..मेरें आखों में थीं जो गरीबी सर उपर उठाना कहां था..

..जलतें गए हर दर्द के मरहम मैं खामोश जो था..
..कैसे कहूँ लूटी मेरी सत्ता निर्दोष जो मैं था..

..मेरी मासूमियत पे ना जाओ तुम वर्मा..
..मैं अकेला ही था क्या गरीब अब कहलवाना क्या था..!

..नितेश वर्मा..

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