Wednesday, 16 July 2014

.. मिलता नहीं सुख उन्हें, उड के वो आसमानी हो गई..

..सुबह से शाम हो गई, थीं जो बात सरेआम हो गई..
..मिलता हैं भगवान मन्दिरों में, लिखी बात शर्मसार हो गई..

..खून-पसीनें की कमाई, सब राख हो गई..
..मिलता था प्यासें को पानी में जो सुकूं, खाख हो गई..

..चिडियों के साँसें भी, इस तपन से जल के झुलस गई..
.. मिलता नहीं सुख उन्हें, उड के वो आसमानी हो गई..

..किसी की मोहब्बत में, आसं लगा के वो गुजर गई..
..खुली हैं आँखें आज़ भी, इन्तजार की हद हो गई..

..समुन्दर से सारी लहरें, किनारें हो गई..
.. मैनें फेंका जो पत्थर पानी में, शामें अब शराबी हो गई..

..ले सकती थीं ज़िन्दगी जो साँसें, वो ले गई..
..मौत का इख्तियार हैं मुझपे, कैसे वो बची रह गई..!

..नितेश वर्मा..

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