..ले चला हैं दिल से मेरे मेरे कहानी को..
..दिल नादां हैं..
..निकल बैठा हैं जो सब समझानें को..
..कभी कहता हैं तो कभी रूक जाता हैं..
..हैं बहोत उल्झन ये जुबानी सुनानें को..
..इन हैंरत से यूं ना देखो तुम..
..वक्त लग जाता हैं..
..मुहब्बत गर दिल में..
..हो तो दिखानें को..
..बातें बनानें वाली कोई बात नहीं..
..इज़हार-ए-इश्क हैं..
..शर्मानें की कोई बात नहीं..
..हर आरजू बिन तेरे अधूरी रह जाती हैं..
..कैसे कहूँ तुम-बिन..
..अब तो साँसे भी रूक जाती हैं..
..खामोशियों ने घर कर ली हैं मुझमें..
..खुद में लिपटा बैठा हूँ..
..खुद को समझानें को..
..इश्क को दिखानें को..
..दिल निकल बैठा हैं तुझे समझानें को..
..मेरी ना सही इसकी तो सुनों..
..लगा रहता हैं हर-वक्त तुझमें..
..कुछ इसकी तो बुनों..
..मेरे होंठों पे तुम्हारा नाम आ जाता हैं..
..कैसे कहूँ बिन तेरे अब रहा ना जाता हैं..
..बातें तो बस इक बहाना हैं..
..मक्सद तो कुछ और ही जताना हैं..
..मेरें यादों मेरी बातों में जो तुम रहतें हो..
..दिल के हर कोनें से जो तुम कहतें हो..
..मेरी मानों तो अब हाँ ही कर दो..
..उल-जुलूल की बातें अब रहनें दो..
..अब बचा ही क्या हैं समझानें को..
..यें यूं ही निकल बैठा हैं..
..ना जानें क्या सुनानें को..!
..नितेश वर्मा..
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