Tuesday, 8 July 2014

..लगता हैं नाराज़ हैं..

..सुनता नहीं वो बातें मेरी..
..लगता हैं नाराज़ हैं..

..माथें पे हैं शिकन-बूंदे..
..लगता हैं परेशान हैं..

..ऐडियाँ-घीस धूप सहता आया हैं..
..फटे-हाल हैं खडे..
..मुसाफ़िर लगता हैं नादान हैं..

..भीड से भाप लेता था..
..जो हरकतें मेरी..
..आँखें हैं मुझपे ठहरी..
..लगता हैं इल्ज़ाम हैं..

..बिकता नहीं वो भी किसी बाजारों में..
..ठहरा जो घर तेरे..
..लगता हैं हराम हैं..

..खुद से नीचा समझता हैं मुझे..
..देखा जो मुझे आज़..
..लगता हैं शर्म-सार हैं..

..मेरे मरनें पे देवदूत ना आएं लेने मुझे..
..आँखें हैं बंद मेरी..
..पर वो लगता हैं कूसूर-वार हैं..

..सुनता नहीं वो बातें मेरी..
..लगता हैं नाराज़ हैं..!

..नितेश वर्मा..

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