Tuesday, 4 July 2017

इस कहानी में मैं नहीं हूँ

इस कहानी में मैं नहीं हूँ
आग-पानी में मैं नहीं हूँ।

उम्र थोड़ा ज़्यादा हुआ है
सावधानी में मैं नहीं हूँ।

ज़िक्र मेरा हो या पराया
बदज़ुबानी में मैं नहीं हूँ।

मांगते थे वो मोहलत जो
उन बयानी में मैं नहीं हूँ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

किसी ग़रीबख़ाने में ही मिलेंगे हम तुम्हें वर्मा

किसी ग़रीबख़ाने में ही मिलेंगे हम तुम्हें वर्मा
सुबूत भी वहीं से लेना.. हमारी बेगुनाही का।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

तमाम शख़्स शहर के यूं मुसाफ़िर हो गये मेरे

तमाम शख़्स शहर के यूं मुसाफ़िर हो गये मेरे
भटकते सब रहे.. पर नज़र माहिर हो गये मेरे।

चलो जाने दिया जाये कि उनका ज़िक्र छूटे भी
कई अफ़साने फ़साने देख ज़ाहिर हो गये मेरे।

सुब्ह की धूप में पानी बने फ़िरते थे हुक़्मराँ वो
मग़र जो दिन ढ़ली साहब मुहाज़िर हो गये मेरे।

शिकायत भी नहीं करता ज़बानी आख़री तेरा
तिरे ज़ानिब.. ख़ुदाया नैन क़ाफ़िर हो गये मेरे।

हज़ारों बार उसने ही कहा था आज़माने को
कहीं जो टूटके बिखरे कि साहिर हो गये मेरे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

शर्म-ओ-हया उस शख़्स को इंसान करता था

शर्म-ओ-हया उस शख़्स को इंसान करता था
ग़ज़ब बा-किरदारी जहाने बेज़ुबान करता था।

उसे कम क़ीमते अदायगी पर रोना आता रहा
वही ख़ाकसार था जो मुझे परेशान करता था।

उम्र उम्मीदवारी में गुज़ार दी हमने भी तमाम
मिल्कियत पर अक़सर जो गुमान करता था।

शायरी मेरे अंदर अब ख़ाक होने लगी है वर्मा
वो कुछ और अफ़्सूँ थें जो मैं बयान करता था।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

याक़िस्मत दो पल भी ना ठहरी वो तो आख़िर बार भी

याक़िस्मत दो पल भी ना ठहरी वो तो आख़िर बार भी
फ़िर बेवफ़ाई की फ़ेहरिस्त समेटकर लौट आये हम।

बेरूख़ सी वो शाम के पाक़िज़गी बेहूदगी करती रही
इतने झल्ला उठे के उसको चपेड़कर लौट आये हम।

वो अंज़ामे-वफ़ा की बातों में मशगूल रहने लगी वर्मा
ख़ंज़र ख़ूनी तमाम सीने में लपेटकर लौट आये हम।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा - कौन सी मुहब्बत?

क्या हुआ ज़ल्दी वापस आ गए?
-आसमान गिर पड़ा बीच रास्ते में मुझपर..
अरे साफ़ बात करो।
-उसने आज तलाक़ ही माँग ली..
और तुम दे भी आये?
-नहीं.. दिया तो नहीं है बस टाल आया हूँ.. उसने रिहाई मांगी, मैं मुँह छिपाकर भाग आया।
इसे तुम रिहाई कहते हो? फ़िर उसका क्या जो तुमने उससे मुहब्बत की थी?
-कौन सी मुहब्बत? वो किसी मुहब्बत को नहीं मानती.. मैंने मुहब्बत की बात की और याद दिलाया तो कहने लगी- वो कोई मुहब्बत नहीं थी.. ज़्यादा ज़ोर दिया तो कानों की बूंदें निकाल कर मुँह पर दे मारी।
एकदम से.. सीधा मुँह पे?
-नहीं वैसे नहीं।
तो फ़िर कैसे?
-Technically.. बातों से। मैंने बताया कि मैंने जब वो बूंदें उसे तोहफ़े में दिये थे तब उसने I love you कहा था.. सुनकर गुस्से में आ गई और लौटाने लगी..
फ़िर..?
-बूंदें देते हुए कहने लगी- ये लो.. वैसे भी तलाक़ में सारे सामान एक-दूसरे को वापस करने होते हैं।
और तुम वो उठाकर ले आये?
-अरे नहीं.. उसकी तरफ़ से वो मुहब्बत नहीं थी लेकिन मेरे तरफ़ से तो था.. मैंने साफ़ कह दिया तलाक़ में दिये हुए चीजों को लौटाते होंगे, मुहब्बत में दिये हुये चीजों को वापस नहीं करते.. उन्हें तो अमानत के तौर पर संभालकर रखते हैं.. तो तुम भी इन्हें रख लो, बाद में दिल करें तो कभी-कभी पहन लेना या चाहो तो ये सोचकर फ़ेंक देना कि.. तुम्हारे मुहब्बत में मरता हुआ कोई लड़का ख़रीद लाया था।
तलाक़ क्यूं मांग रही है वो?
-ज़ाहिर है.. कोई और पसंद आ गया होगा। मेरी अम्मी कहा करती थीं.. औरतें किसी दूसरे मर्द के भरोसे ही पहले मर्द को छोड़कर जाया करती हैं। वक़ार नाम है शायद उस लड़के का.. पता नहीं।
वो सच कहती है ये मुहब्बत नहीं थी जिसमें पहले वादा किया.. हाँ! तुमसे प्यार है निकाह भी कर ली और जब शादी का वक़्त हुआ तो मुकर गई और कहने लगी- तुमसे मुहब्बत नहीं करती। ये तो ठीक वैसा ही हुआ कि कोई पार्टी इलेक्शन से पहले कहते फ़िरे.. हमें वोट दो अग़र हमारी सरकार बनी तो हम आपकी ग़ुरबत मिटा देंगे और जब सरकार बन गई तो ये कहने लगे- कौन सी ग़ुरबत..? वादा करके मुकरने वाले मुहब्बत नहीं करते, सौदे करते हैं और यक़ीन मानो मियां मुहब्बत सौदों से नहीं वफ़ा से निभाई जाती है।
-अब वफ़ा की बात क्या करें..
तुम तो कोई बात ना करो.. मेरी बात पर तो अम्ल किया भी नहीं होगा.. शक़ होता है मुझे तुमपर.. तुम मर्द के बच्चे नहीं हो।
-अरे नहीं.. थप्पड़ मार आया हूँ उसे, मग़र हाथ से नहीं मारी..
फ़िर..?
-Technically मारी है..
वो ज़ख़्म दे रही थी, मैं ज़ख़्म खा रहा था
वो तलाक़ मांग रही थी, मैं मुस्कुराँ रहा था।
याद रखो.. अग़र तुम्हें तलाक़ होने का ग़म है तो ख़ुशी का यक़ीन कम है। औरत जब हाथ छुड़ाएँ ना तो ये मत समझो कि वो जाना चाहती है, समझ लो कि वो जा चुकी है।
-मैं नहीं समझ पाया हूँ कुछ भी.. लेकिन उसने ही आज एक बात सर पर हथौड़ी मारकर समझा दी है- कि ये दुनिया हम अच्छे मर्दों की वज़ह से नहीं चलती.. अच्छी औरतों की वज़ह से चलती है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #DialogueWriting #QissaEMoashara #Storytelling

ज़रायम-पेशा तमाम उम्र सुलगती रही मुझमें

ज़रायम-पेशा तमाम उम्र सुलगती रही मुझमें
गुनहगारों में थे तेरे तो क़ैदे-बा-मुशक्कत हुई।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

इक पारदर्शिता थी उसकी स्याह आँखों में

इक पारदर्शिता थी उसकी स्याह आँखों में
जब पहली बार उसने वो बात कही थी
जब पहली बार उसने वो व्यक्त किया था
मटमैले हाथों से जब उसने थामा था मुझे
जब कलेजे से लगाकर भींच लिया था मुझे
मेरे अवाक्पन को इक स्थिरता दी थी
जब पहली बार
मेरे पिता ने मुझे उससे यूं मिलावाया था
उसने पहली और अंतिम बार ये कहा था
बेटा! माँये सौतेली नहीं हुआ करती कभी..
माँये तो बस माँ हुआ करती हैं
औरतों की नियत उन्हें सौतेली बनाती है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

एक ही शोर में मशगूल है ज़मानेवाले

एक ही शोर में मशगूल है ज़मानेवाले
इश्क़ करनेवाले, इश्क़ आज़मानेवाले।

अब टूटकर कुछ यूं बिख़र जाओ तुम
के रो पड़े ये सारे तुमपे मुस्कुरानेवाले।

हद अनहद हो तो सफ़र चलता ही है
टूट जाये जो बिछड़े साथ निभानेवाले।

गुरूर से हासिल न होगी वो तुझे वर्मा
जिसे दुआओं में माँगते हो चाहनेवाले।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

अश्क़ आँखों में भरकर वो बहा देता है

अश्क़ आँखों में भरकर वो बहा देता है
जब भी पूछा है हश्र-ए-मुहब्बत क्या है?

दिल की बातों से वो दर्द बयाँ करता है
ज़ुबानी बोले कुछ उसकी ज़ुर्रत क्या है?

इश्क़ से इश्क़ की रुदाद ना पूछे कोई
भ्रम रख ले इश्क़ और नफ़रत क्या है?

हर तरफ़ तमाशा है दिल टूटने भर का
यही हैं चोंचले फ़िर ये मरम्मत क्या है?

यही उसूल है मुहब्बत में आशिक़ों का
दूजा मना लेगा फ़िर हिकायत क्या है?

वो याद आती है इतना भूल जाता हूँ मैं
जिस्म में उसके सिवा हरकत क्या है?

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

इश्क़ कभी हमने ज़ाहिर नहीं किया

इश्क़ कभी हमने ज़ाहिर नहीं किया
दिलों जाँ से चाहा बाहिर नहीं किया।

इंसानों को परख़ा फरिश्तों को पूजा
पर ख़ुदको कभी माहिर नहीं किया।

वो रहमों-करम मुझपर जताता रहा
हाले-बयां कभी ज़ाकिर नहीं किया।

एक उम्र गुजार के मिले हैं वो दोनों
दिल मिला फिर ज़ाजिर नहीं किया।

मैं मयकदे से लौटकर आया हूँ वर्मा
जामों ने मुझको साहिर नहीं किया।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

आसमां से एक बूंद चेहरे पर गिरा


आसमां से एक बूंद चेहरे पर गिरा
आँसू को मेरे फिर क़तार मिल गई।

AasmaaN se ek buNd chehre par gira
AaNsu ko mere phir qataar mil gayi.

नितेश वर्मा

इस सफ़र में मैं अकेला रहा

इस सफ़र में मैं अकेला रहा
जिसमें मंज़िल कहाँ थी
पता नहीं!
जाना था कहाँ, ठहरना कहाँ?
पाना था क्या, छोड़ना क्या?
भूख लगती थी.. फ़िर मर जाती थी
हर गली में ग़रीबी फ़िर करना क्या?
रात रस्तों के चादर पर गुजारी मैंने
मकाँ में चाँद की झीनी रोशनी ढ़ले
कमरे में क़ैद होकर आसमां देखना क्या?
पत्थर के इमारत पर मंज़िल का पता था
ख़नकते सिक्कों संग मेरा बदलना क्या?
ख़्वाहिशों में कई रात थी बीती मेरी
दिन के उजालों में.. फ़िर डरना क्या?
मैं टूट चुका था इतना के बयान ना हुआ
इतिहास में बेवज़ह फ़िर सिमटना क्या?

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

कमरे में इक चीख़ उठी फ़िर ख़ामोश हो गई

कमरे में इक चीख़ उठी फ़िर ख़ामोश हो गई
मरहम उनके हाथों की आँखें मदहोश हो गई।

कल तक ही घबराता था इन ज़फ़ा हादसों से
कदम बढ़ा दी है जो ज़ज्बे सरफ़रोश हो गई।

उस क़िताब के हरेक हर्फ़ पर नाम हैं उसका
मुहब्बत अज़ीब रातों की बातें बेहोश हो गई।

छिपाएँ तमाम ख़तों को निकालकर फ़ेंक दो
उन पर बिछे इतनी लाशे ज़मीं लोश हो गई।

इक रात फ़िर चाँद में ढूंढेंगे में हम तुम्हें वर्मा
इस ज़िक्र पर ही आके दिल खरगोश हो गई।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

दिल की धड़कनों पर पाँव रखकर गया था वो

दिल की धड़कनों पर पाँव रखकर गया था वो
साँस पर अब भी उधड़े से है इंतज़ार में उसके।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

किसी चाँद रात तिमंज़िले मकान की खुली छत पर

किसी चाँद रात तिमंज़िले मकान की खुली छत पर
बहती ठंडी हवा के झोके के साथ यकायक
किसी ज़िक्र पर जब पूछ बैठेगी मेरी 22 पार होती बेटी मुझसे
कि आपके तमाम ख़याल में मुझे या मेरी माँ को
वो मुहब्बत नज़र क्यूं नहीं आती
जिसकी अक़ीदत वो बरसों से निभाती आयी हैं
जब पूछ बैठेगी वो मेरी हाथों में
अपनी नर्म उंगलियों को आहिस्तगी से रखकर
जब मेरी आँखों में झांककर ख़ंगालेगी दिल मेरा
ढ़ूंढ़कर जब वो छोड़ देगी तुम्हें
और मेरे उस सख़्त हाथों से उंगलियां अपनी
जब मुस्कुराकर वो पोंछ लेगी अपनी बहती आँसुओं को
मैं बढ़कर थाम लूंगा उसे अपनी बाहों में
और वो बेतहाशा देखेगी ख़ामोश मुझको
मैं चूम लूंगा सीने से लगाकर माथा उसका
और जब उससे मुँह मोड़कर चुप हो जाऊँगा
वो जब मुझे रोककर पूछेगी-
कौन नज़र आता है मुझमें पापा?
मैं क्या कहूँगा?
हैं कोई जवाब जो सार्थक कर दे मेरा उसका माथा चूमना
ये कहते हुए इसमें तेरी माँ की रक़ीब का साया है
वो फ़िर ये सुनकर जब वो तोड़ लेगी मुँह अपना फ़िर रात-भर छत पर बैठकर मैं उन्हें जोड़ता रहूँगा.. बेतहाशा।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #ProsePoetry #YuHiEkKhyaalSa

मुझे प्यार हो गया है यार!

मुझे प्यार हो गया है यार!
-किससे भई? मग़र तू तो..
उसी से प्यार हुआ है यार! और इस तरह हुआ है कि लगता है अग़र वो ना मिली तो इस दुनिया को जला कर राख कर दूँगा।
-अरे यार! इतना गुस्सा? किस बात पर बिगड़ा हुआ है ये तो बता?
वही तो पता ही नहीं चल पा रहा है.. क्या करूँ? उसे उसके घरवालों के नाक के नीचे से भगा ले जाऊँ?
-एक तरफ़ तो तुम कहते हो तुम्हें उससे मुहब्बत है और दूसरी तरफ़ उसे उसके घरवालों के नाक के नीचे से भगा कर ले जाने की बात करते हो.. जब तुम्हें उसके इज्जत की फ़िक्र ही नहीं तो कौन यक़ीन करेगा कि तुम्हें उससे मुहब्बत है?
हाय! ये इश्क़ ने कैसा मारा है मुझे?
-इश्क़ ऐसे ही जान लेता है मेरे यार! इश्क़ कर.. सौदे ना कर। 😊

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #DialogueWriting #QissaEMoashara

इक छत की दीवार से लगकर खड़ा हूँ मैं

इक छत की दीवार से लगकर खड़ा हूँ मैं
तोड़ दूंगा किसी रोज़ ज़िद पर अड़ा हूँ मैं।

उस फ़रेबसाज़ मोआशरे का हिस्सा हूँ मैं
के हर चोर कहता हैं यहाँ बस बड़ा हूँ मैं।

इतनी नाइंसाफ़ी परवेल करती है के बस
जब भी देखूँ ख़ुदको लगे के बिगड़ा हूँ मैं।

इक लश्कर आये और डूबा ले जाये हमें
कौन कहे खुलकर यहाँ के कचड़ा हूँ मैं।

इक मेरी ही जात का रोना ना रोए वर्मा
वो सोना हूँ जो मिट्टी में कबसे गड़ा हूँ मैं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #WorldPoetryDay

यूं ही एक ख़याल सा -

- तो तुमने उसे झंझोड़कर क्यूं नहीं कहा कि तुम उसकी मुहब्बत हो.. वो अग़र कहीं और देखेगी तो फ़िर तुम्हारा क्या होगा, उसने ये नहीं सोचा।
मुझे ऐसी मुहब्बत नहीं चाहिए जो अपना जिस्म तो लेकर मेरे साथ चल पड़े पर उसका दिल मेरे रक़ीब के पहलू में क़ैद रहे।
- वो मर्द कोई मर्द नहीं जो अपनी अना के ख़ातिर अपनी ख़ातून के सर से अपना हाथ हटा ले।
वक़्त फ़िर पलटता है मेरे महबूब! जब वक़्त का एक फ़ेरा पूरा हो जाता है ना तो वो फ़िर घूम के हमारे सामने ठीक वैसे ही आकर खड़ा हो जाता है जैसे हमने उसे पहले छोड़ दिया होता है। किसी वक़्त से हम तो मुँह मोड़ सकते है लेकिन वक़्त कभी किसी का मुँह देखकर चुप नहीं बैठता।
- वक़्त लौटता तो है लेकिन वो कभी बेवफ़ाओं के हिस्से में लौटकर नहीं आता.. या आ भी जाएँ तो उससे कुछ हासिल नहीं होता क्योंकि उसकी बेवफ़ाई से एक शख़्स कबका मर के ख़ाक हो चुका होता है, जिसकी बद्दुआ बदलते वक़्त के साथ और जवान होती जाती है और असरदार होकर तैनात रहती है।
पूछोगे नहीं क्या करके आया हूँ आज?
- अब क्या करके आये हो भई?
बेवफ़ाई करके आया हूँ उससे। पहले जब कभी कोई सीरियल देखता था तो सोचता था कि ये बेवफ़ाई करने वाले बेवफ़ाई करके हौले-हौले मुस्कुराते क्यों है? अब समझ गया हूँ।
- क्या समझ गये हो.. ख़ाक? अरे! इतने समझदार होते तो आज वो तुम्हारे साथ होती और ये तुम बेवफ़ाई और रक़ीब का रोना ना रोते।
मेरी समझदारी मेरा रोना नहीं रोक सकती, मैं इसलिए दो आँसू बहा देता हूँ कि आगे देखने वाला ये ना समझें के मुझे अपनी मुहब्बत से जुदाई का ग़म भी रुला नहीं पाती। मर्द को तमाम सबूत देने पड़ते हैं.. कभी पौरुष की तो कभी उसकी नेकदिली की.. कभी मर्यादा की तो कभी साफ़गोई की। मर्द भी इम्तिहान देता है लेकिन बिलकुल ख़ामोश उस टीचर की तरह जो घंटों बारिश में साइकिल चलाकर स्कूल जाता है और बच्चों को मौजूद ना पाकर पागलों की तरह घर लौटता है और बीबी को पीट-पीटकर अधमरा कर देता है, फ़िर उसी ख़ामोशी से वो शाम में साइकिल निकालता है और कोचिंग बच्चों को पढ़ाने चला जाता है।
- तुम हार चुके हो और हारा हुआ शख़्स इतना बुज़दिल हो जाता है ये पहली बार देख रहा हूँ।
मैं बुज़दिल नहीं हूँ.. मैं चाहूँ तो आवाज़ उठा भी सकता हूँ, सबसे लड़ भी सकता हूँ लेकिन तुम बताओ इसका कोई फ़ायदा होगा?
- इश्क़ में फ़ायदे नहीं होते ज़नाब। इश्क़ का दूसरा नाम ही नुकसान और बदनामी है।
उस इश्क़ का कोई फ़ायदा नहीं जिसमें महबूब हर रोज़ ये दावा देकर यक़ीन दिलाये कि वो उसके इश्क़ में इक आग का दरिया पार करके आया है और वो भी सारी कश्तियों को डूबोकर.. और सुनने वाला उससे ये कह दे कि- "I'm So sorry! आप जिस साहिल पर भटकते हुएँ आ पहुंचे है वहाँ पहले से ही आकर किसी ने अपना नाम लिख दिया है।"

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #QissaEMoashara #DialogueWriting
#SoSorry

अभी आधे रस्ते में हूँ मैं

अभी आधे रस्ते में हूँ मैं
आँधियों-धूल के बीच
मंज़िल तक जो जाना था मुझे
पैदल चलना ज़रूरी था
उस मोड़ पर ठहरकर
इक आग जलानी थी
रोशनी देनी थी उस अंधेरे को
वो कमरा जो उदास था
जिसमें कई शख़्स अधमरे थे
दीवार तोड़नी थी वो खोखली
खिड़कियों से चादर हटानी थी
सर्द रातों में जो निकलना था
पैदल चलना ज़रूरी था
बिगड़ती ज़ुल्फ़ों को समेटकर
दुपट्टे में क़ैद करना था
बोझ सर पर रखकर मुझे
मीलों दूर बेसबब दौड़ना था
पढ़ना था उस मुश्किल ख़त को
जो दराज़ में अरसों से बंद था
ज़वाब देनी थी मुझे तमाम
बारिशों पर बहुत बिगड़ना था
पैदल चलना ज़रूरी था।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

अप्रैल की उस गुलाबी भरी हसीं धूप में

अप्रैल की उस गुलाबी भरी हसीं धूप में
लल्लन चचा के टी-स्टाल से यकायक
जब तुम्हारी स्कूल बस गुजर जाती थी
समोसे हवा और मुँह के बीच रह जाते थे
साइकिल सवार मनचला यौवन मन
जब वायु-वेग से तुम्हारे पीछे हो पड़ता
उस कड़कड़ाती पसीने भरी धूप में
हल्की सहमती बारिश बरस पड़ती थी
जब भीगे जुल्फों के संग तुम बस से उतरती
कई दिल एक साथ पंचर होते थे
दीपावली के पटाख़े की आवाज़ करते हुए
तुम मुस्कुराकर गुजर जाती जो अपनी गली
हम तुम्हारे पांव की मिट्टी चूमकर
अघोरी जोगी बन जाते और नाचते रहते
अब वो सबकुछ बीत चुका है
अब कुछ पहले जैसा नहीं रहा
ना तुम, ना मैं, ना ये बस, ना वो टी-स्टाल
और ना ही वो गुलाबी मौसम कहीं
अब अप्रैल ठंडी हवा के दरम्याँ गुजरती है।

नितेश वर्मा

पाँच सिक्कों का मोहताज़

पाँच सिक्कों का मोहताज़
हर रोज़ धूप में कढ़ता है
बदन लिबास से लपेटकर
बारिश से जब वो लड़ता है
शाख़ दरख़्त से टूटकर यूं
रिश्तों से जब वो छूटता है

जब धूल उसके पैर से लग
उसके पसीने से मिलता है
इस फ़साद में ख़ुदग़र्ज़ वो
ख़ुदसे ही बहुत झगड़ता है
चाँद जब ठंडी रोटी होकर
उतरती है उसके थाली में
क़िताबें भी बोल पड़ती हैं
वो उनको इतना पढ़ता है

जो सुब्ह स्याह सी होती है
वो रात से गिला करता है
पाँच सिक्कों का मोहताज़
हर रोज़ धूप में कढ़ता है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

अंग्रेजी के इश्क़ की हाय! हूँ मैं

अंग्रेजी के इश्क़ की हाय! हूँ मैं
जवाबी मुख़्तसर बाय! हो तुम।

एक उदास हर्फ़ में लिखी हूँ मैं
हज़ारों मानी में समाय हो तुम।

दफ़्तर से लौटी थककर जो मैं
सुकूँ से मिले, वो चाय हो तुम।

तेरे दिल-ए-क़िताब पर थी मैं
सुनके कितना घबराय हो तुम।

ज़ख़्मी! मुझमें बारहां हुयी मैं
मरहम तो नाम बराय हो तुम।

उस शहर का पुराना मकाँ मैं
तमाम बस्ती के सराय हो तुम।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

इक अदद ज़िक्र उसका

इक अदद ज़िक्र उसका
सौ बहाने मेरे
दिल ये कहना ना माने
हाय! हुए दीवाने तेरे
उठता है धुआं सीने से
शाम जलते ही
होते कई अफ़साने मेरे
लिपटा उसके ख़्वाब से
जिस्म तन्हाइयों का ये
नींद मेरी.. तराने तेरे
खो चुका हूँ मैं उसको
जान गई मेरी जनाजे तेरे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

वो मेरे घर का बेहद पुराना कमरा

वो मेरे घर का बेहद पुराना कमरा
जिसकी बेजान सी उदास खिड़की
जो तुम्हारे छत के सामने खुलती थी
वहीं तो धड़कते थे दो बेज़ुबाँ दिल
जब शाम के अज़ान के धुन पर
तुम किसी सज़दे में बैठ जाती थी
किसी शिवालय की बजती घंटियाँ
जब मुझे उस नमाज़ में शामिल कर देती
ठीक उसी वक़्त एक ज़माना
ख़ंज़र उठाता था.. नृशंसतापूर्वक
छत और खिड़की को मिटाने के लिए
आज ज़माने की हालत बहुत बुरी है
मेरी खिड़की और तुम्हारे छत से भी
ज्यादा.. या शायद! बहुत ज्यादा।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

इक उदास हर्फ़ मैं बाक़ी हसीन कहानी वो

इक उदास हर्फ़ मैं बाक़ी हसीन कहानी वो
इक क़िताब हुआ मैं उसमें, मेरी ज़ुबानी वो।

दिल बदला फ़िर उस बरसात की रात क्यों
शह्र से जो मैं भागा हो गयी बड़ी वीरानी वो।

अब्र ख़ामोश देखता रहा ज़ुल्म सारी रात यूं
जैसे तस्वीर में मैं क़ैद लगी रिहा पुरानी वो।

अफ़सोस बारहां हुआ उनको देखकर मुझे
इक आवारा मैं, और मुझमें दबी हैरानी वो।

मुहब्बत मुद्दतों आज़माती रही मुझे ऐ वर्मा
ज़माने की बख़्शीश मैं ख़ुदा मेहरबानी वो।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा.. - उसके बारे में

एक रोज़ जब किसी धुन पर बैठ जाऊँगी ना तो लिखने लगूंगी उसके बारें में।
एक लड़का था सबसे प्यारा, बस उसे मैं प्यारी नहीं लगीं। एक मुहल्ला था, जहाँ वो हर रोज़ मैचों पर ज़ुआ लगाता फ़िरता था, नियत से बुरा नहीं था.. बस उसने हालात बुरे बना लिये थे। देखने में हैंडसम था कमीना बड़ा, बस जब कभी गुस्से से आँख बाहर निकालकर देखता तो एक नम्बर का छटा हुआ गुंडा लगता था। थोड़ा मुँहफ़ट था, लड़कियों को भी टका सा जवाब देकर चुप करा दिया करता था। बदमाश नहीं था बस बदमिजाजी हो जाता था कभी-कभी। चाल-चलन अच्छी थी.. सीधी नज़र वाला था, बस नज़र ग़लत जगह लड़ा बैठा था।
अगले पन्ने पर ये भी लिखूंगी.. मुहल्ले की उस आख़री मोड़ पर एक और लड़की थीं.. उसे उससे मुहब्बत तो थी लेकिन उसे इस बात पर कभी यक़ीन नहीं हुआ। अग़र उसे किसी रोज़ उसके मुहब्बत पर यक़ीन हो जाता तो ये कहानी मैं नहीं वो लिखा करते एक-दूसरे के दिल के कोरे से काग़ज पर।
साथ में ये भी लिखूंगी अंडरलाइन करके.. उसके मुहब्बत में सारा शहर ज़ख़्मी हो गया था.. शहर भर में आग लग गई थी.. सारा शहर झुलस रहा था.. बस उसे ख़रोच नहीं आयी थी, वो पत्थर हो चुका था.. वो बस सबको जान से मारने के नये-नये बहाने ढ़ूंढ़ता था.. अब उसकी बारी थी, छटा हुआ तो वो पहले से ही था.. अब, बस सबको चुन-चुन कर बदला ले रहा था।
आख़िर में फ़िर.. और कुछ नहीं लिखूंगी, ना ही इस कहानी को ख़त्म करूँगी। कहानियाँ ऐसे ख़त्म नहीं होती, बस डायरी का एक और पन्ना पलटूंगी और पेन की पांइट तोड़कर उसे सज़ा-ए-मौत सुना दूंगी.. आख़री फ़ैसला कहानी के किरदार नहीं कहानी लिखने वाला करता है, तो उसका भी फ़ैसला वही करेगा जो सबकी कहानियाँ लिखा करता है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #QissaEMoashara #DialogueWriting

उसका लिखना उतना ही जायज़ है

उसका लिखना उतना ही जायज़ है
जितना किसान का पुराने झाड़ को उखाड़कर नये बीज लगाना
एक माली का पेड़ से उसके डाली को काटकर उसके पत्तों को हटा देना
तपती दोपहर से बच्चे को डपटकर माँ का उसे घर में बंद कर देना
ज़ख़्म को सहकर कराहते रहना बुज़दिली है
उसने अपनी चीख़ की जगह कलम उठाईं है
उसका लिखना उतना ही जायज़ है
जितना आपका किसान, माली और माँ बन जाना
ताकि आप ये समझ सके कि उसकी ज़ुबान उससे कुछ ग़लत नहीं लिखवा रही।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

एक पश्चिमी प्रदेश

एक पश्चिमी प्रदेश से निकला हुआ लड़का.. ज़माने की हक़ीकत से मीलों दूर बैठा हुआ..
एक ग़रीब का बेटा, जिसने कुछ सपने देखें.. एक ज़ाहिल आशिक़ जो उसके चले जाने के बाद भी उसकी क़ैद से रिहा नहीं हो पाया.. एक नाउम्मीद शख़्स वो, जो किसी के उम्मीद से बंधा था.. एक जुनूनी लेखक जो ख़ुद इक रोज़ ख़ुदको मार आया था.. एक वो दिसंबर का महीना जो बिन बताएँ रात को ठंडी सड़क पर ओस भरकर उतर आये थे.. एक इंसान जिसपर ज़माने ने कई धोखे मले.. एक हसीन सा चेहरा जिसपर किसी ने कभी कीचड़ फ़ेंका तो किसी ने पत्थर दे मारी.. वो ग़रीब असहाय जिसपर कई ज़ख़्म उभरे लेकिन सफ़र उसने कायम रखी, क्योंकि इक मंजिल उसके इंतज़ार में सदियों से बेक़रार थी.. उसे सारी हदों को तोड़कर वहाँ जाना ही था.. कहानी बुनने का किरदार निभाना हो, तो इक इतिहास तो लिखना ही पड़ता है.. ख़ासकर कलम,पेट और क़िस्मत को बीच में लेकर चलने वाले लेखकों के लिए।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

यूं ही एक ख़याल सा..

एक मेहरबानी करो उस पर, उसकी ज़िंदगी ना बर्बाद करो।
-नहीं-नहीं! ऐसी नियत नहीं है मेरी.. मैंने तो ऐसा ख़्वाब में भी कभी नहीं सोचा था कि मैं उसकी ज़िंदगी बर्बाद करूँगा। मैं तो हमेशा से यही चाहता था कि वो ख़ुश रहे, आबाद रहे।
तुम्हारी नियत का सुनकर अच्छा लगा। एक काम करो अपना ट्रांस्फ़र करवाओ और दिल्ली छोड़ दो। कसम ख़ाओ की दुबारा ना कभी उसकी ज़िंदगी में झाकोगे और ना ही कभी दिल्ली की तरफ़ रूख़ करोगे।
-नहीं! ऐसा हरगिज नहीं कर सकता मैं। उसे कभी-कभार देख लूं, किसी रास्ते पर नज़र उससे टकरा जाएं बस.. इससे ज्यादा मुझे ना तो उससे कुछ चाहिए और ना ही दिल्ली से। भले, इसके जवाब में वो मुझसे कुछ भी ज़ाहिर ना करे, मैं इसपर कोई बात नहीं उठाऊँगा कभी।
अच्छा तो कुछ ऐसे इरादे हैं?
-इसमें कुछ ग़लत है क्या?
ग़लत तो ख़ैर कुछ भी नहीं मग़र इससे तुम्हारी नियत साफ़ नहीं दिखती। लड़कियों के दिल को तुमने कभी पढ़ा है? पहले तो वो नज़र मिलाने में कोई यक़ीन नहीं रखती और जब नज़र किसी से मिल बैठे तो उसे अपने क़रीब देखने लगती है, उसकी ख़्वाहिश जताती है.. सारी रात आँसू बहाती हैं, मग़र उसका तसव्वुर करना नहीं छोड़ती।
-हो सकता है लड़कियों की ऐसी ख़ूबी हो.. मग़र शायद तुम्हें याद नहीं रहा हो तो बता दूँ वो एक तलाक़शुदा बीबी है कोई सोलवहाँ गुजारती नादान लड़की नहीं.. अब वो मुझे नहीं मिलेगी बस इसका ही यक़ीन है।
और तुम इस उम्मीद में रहते हो कि काश! किसी रोज़ कोई आकर तुम्हारा ये यक़ीन तोड़ दे।
- मैंने तुमसे कुछ छिपाया नहीं है, मग़र मेरा यक़ीन करो उसके साथ दुबारा जीने की मेरी कोई ख़्वाहिश नहीं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #QissaEMoashara #DialogueWriting

वो हुस्न-ए-बा-ऐब वो पर्दागरी हमसे ना पूछिये

वो हुस्न-ए-बा-ऐब वो पर्दागरी हमसे ना पूछिये
ये तो ख़ुदा ने की है कारीगरी हमसे ना पूछिये।

सर्द रात ये ख़याल चाँद पर ढ़लने लगा है मेरा
स्याह ज़ुल्फ़ो तले वो दोपहरी हमसे ना पूछिये।

ये कैसा हुआ है हाल उनकी सोहबत में आके
ज़ुबाँ अखरोट, दिल गिलहरी हमसे ना पूछिये।

ज़ब्त कई मानी में हुए किरदार कहानी के यूं
प्रागैतिहासिक युग, जादूगरी हमसे ना पूछिये।

एक शख़्स छिपा है दरम्यान यूं दोनों के वर्मा
वो कोई आवाज़ थी सुनहरी हमसे ना पूछिये।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

जब ठहर जाती है पांव किसी धूल की मानिंद

जब ठहर जाती है पांव किसी धूल की मानिंद
जम जाती है आईने पर इक परत कालिख की
चेहरें कुरदते हाथ जब कांटों से भर जाते हैं
मरहम जब ज़ख़्मों को यूं नासूर करते जाते हैं
कोई बेचरहगी उभरती है जो इक चेहरे से
मातम तमाम मुल्क की ज़ेहन झेलती है ताउम्र
उग़ताया हुआ मन जब हावी रहता है ख़ुदपर
आँसुओं से आफ़तों की समुंदर बरसती है
इंसान उस वक़्त पर आकर
अग़र लौट आये उस मंजिल से तो ठीक है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा - युसूफ़ बिन ज़ुलेख़ा

अब, आसमान से गिरूँगी तो खज़ूर में अटका देंगी क्या?
जो आसमान से गिरते है ना वो खज़ूर से दूर नहीं भागते.. अग़र खज़ूर से दूर भागोगी ना.. तो सीधे आसमान से ज़मीन पर पटक दी जाओगी।
अग़र इक तरफ़ कुआँ और दूसरी तरफ़ ख़ाई हो तो कुएं को पसंद करके कूद लेने को कह रही है आप?
-बीबी, हमारे अब्बा कहा करते थे -मौत और बीमारी में से किसी एक को चुनना हो.. तो चाराग़र की बात मानकर हमें बीमारी को हँसते-हँसते सीने से लगा लेना चाहिए।
बीमारी भी तो आपको मौत तक ही ले जायेगी आख़िर में.. तो फ़िर मौत क्यूं नहीं? क्यूं हर रोज़ तिल-तिल करके मरना, घुटन में जीना फ़िर एक दिन सारे झंझटों से बड़ी ख़ामोशी से दूर चले जाना?
-बीबी! ज़िंदगी अग़र बेकार हो जाये ना तो उसे संवारने की कोशिश करते है.. अग़र ज़िंदगी के दामन से हाथ झटकोगी, तो मौत भी तुमसे बेवफ़ा हो जायेगी। ज़िंदगी अग़र दर्द लेकर आये तो भी ज़िंदा रहते है पता ना कब ख़ुदा की मर्ज़ी चले और ज़िंदगी बागों-बहार ले आये।
तो आप चाहती है कि, मैं आपका कहा मानकर कुएँ में कूद जाऊँ, वो भी तमाम उम्र उस शख़्स के साथ जिसे बात तक करने की सलाहियत नहीं है।
-अपने बाप का भ्रम रख ले आवारा लड़की.. जो तुम्हारे ज़ुबान को अपना समझकर उनको रिश्ता दे आये है।
हरगिज नहीं! मैं कोई कुर्बानी की ख़ाल नहीं जो जिसे जी में आया चोरी-चुपके से लगा भेजा। अम्मी, मैं भी नूर मुहम्मद की बेटी हूँ.. वो भी सोलह आने उन्हीं की तरह ढ़ीठ.. अग़र वो ज़िद पर उतरे ना तो मैं भी आसमान से सीधे ज़मीन पर गिर जाऊँगी, हड्डियां तुड़वा लूंगी मग़र कुएं में गिरकर ख़ुदकुशी नहीं करूँगी.. कभी नहीं!
-हाहा हाहा! तुम आसमान से ज़मीन पर गिरने का मतलब ये समझती हो? तो लानत है मुझपर जो मैं तुम्हें ये भी बता ना सकीं कि आसमान से सीधे ज़मीन पर पटक देने का क्या मतलब होता है। एक रात बड़े देर से तेरे अब्बा घर आए, मैंने पूछा- सब ठीक, इतनी देर कहाँ लगा दी।
तो कहने लगे- हाज़रा, जब लड़कियाँ बिग़ड जाती है ना तो उसे एक अधेड़ उम्र के मर्द से बांध दिया करते है.. वहीं देखकर आ रहा हूँ।
-इस मामले से मेरा क्या मतलब? मैं कौन सा बिगड़ी जा रही हूँ.. मैंने सीधी बात कही है, हाँ थोड़ी कड़वी ज़रूर है.. मग़र कुछ छिपाया तो नहीं ना। ना कोई शर्मों-हया के पर्दे दिखाएँ, ना कोई चेहरे पर झूठा लिबास ओढ़ा.. सफ़ेद चोग़ा नहीं ड़ाला, जो भी बात कही ख़री कही, कोई पाखंड नहीं रखा और अम्मा दिल से साफ़-साफ़ कही हुई बातें उसे आसमान से ना तो ख़जूर में अटकाते हैं और ना ही ज़मीन पर पटकते है कभी।
-बीबी! तज़ुर्बा तुमसे कई ज्यादा रखती हूँ, इसलिए एक बात रख देती हूँ तुम्हारे सामने.. तुम्हारी ही तरह बिलकुल खोलकर, बिना किसी शर्मो-हया-लिहाज़ के.. शादी तो तुम्हारी वाहिद अहमद से ही होगी। बीबी नाम ज़ुलेखा हो जाने भर से तुम ये ख़्वाब मत देखो की किसी रोज़ युसूफ़ भी तुम्हारे ज़िंदगी में आकर तुम्हें इन सब अज़ाबों से बचा ले जायेगा। भूलना मत यहाँ मौलवी नूर मुहम्मद का राज़ चलता है।
आप बताएँ ना अब्बा को की आपने उसकी शादी अग़र वाहिद अहमद से करने की कोशिश की तो निक़ाह-ए-इक़बाल में ज़ुलेख़ा नहीं उसकी लाश बैठेगी।
-अरे जाओ! उन्हें तो ये भी कबसे मंज़ूर है.. बल्कि बात ये है कि उन्होंने ख़ुद कहा था कि अग़र राज़ी हुई तो ठीक वर्ना उसकी लाश ही बैठेगी 15 फ़रवरी को। एक बार कह दिया.. तो बस कह दिया।
अम्मा! आप तो बड़े पर्देदारी-हयादारी की बातें किया करती थी.. घर के ख़्वातीनों की इज्जत उनके चारदीवारी में ही महफ़ूज रहती है.. चारदीवारी उनकी क़ैद के लिए नहीं उनकी आज़ादी के लिये होती है, यहाँ उन्हें किसी से ड़रने की कोई ज़रूरत नहीं होती, वो अपनी बात, अपनी आवाज़ उस चारदीवारी में बग़ैर किसी पर्दे के उठा सकती है और आज आप कह रही है कि अग़र मैं नहीं मानी तो मेरे लाश को निक़ाहनामें में शामिल करवा देंगी।
-अच्छा, चल! मैं लड़ जाऊँगी तेरे अब्बा से। तू बता.. दो थप्पड़ों में हार तो नहीं मान लेगी ना.. बाप के इमोश्नल अत्याचार पर तरस तो नहीं खायेगी ना या वो मुझे बालों से घसीट कर बेडरूम में लताड़ते हुए ले जाये तो मुझपर कोई तरस नहीं खायेगी ना? बता अग़र मंज़ूर है तो मैं तुझे इज़ाजत देती हूँ.. जा जी ले अपनी ज़िंदगी अपने युसूफ़ के साथ।
रोना तो इसी बात का है अम्मा, इस ज़ुलेख़ा के नसीब में कोई युसूफ़ है ही नहीं।
-क्या?
हाँ! अब कहाँ तलाशू युसूफ़ को.. आप कोई सेकैंड आप्सन नहीं ला सकती?
-हाय! दिमाग फ़िर गया है तेरा लड़की.. शादी में कोई सेकैंड आप्सन नहीं होता जब सवाल के ज़वाब आते हैं ना तो बच्चे MCQ नहीं खेला करते। ज़ुलेख़ा ज़वाब ढूंढ, आप्सन अपने बाप पर छोड़ दे।
वो तो मेरी जान ही निकाल लेंगे।
-अरे! ड़र मत.. नूर मुहम्मद ने अभी तक हाज़रा बेग़म की ख़िदमते और लाचारी देखीं है, दूसरा रूप नहीं देखा। अच्छा! ये बता जब निक़ाह की बात हो रही थी तो तू चाय रखकर क्यूं शर्मा के भाग गयी थी?
हाय! अम्मा, उसे आप शर्मा के भागना कहती है.. मैं तो कुढ़-कुढ़ के आधी हो रही थी तो उठ के भाग आयी। कितने ज़ाहिल इंसान है, रिश्ता पक्का कर दिया ये समझकर।
-ज़ुलेख़ा! ख़बरदार.. जो मेरे तरबियत पर अब कोई उंगली उठाईं, मैं ये हरगिज बर्दाश्त नहीं करूँगी।
अम्मा मेरा वो मतलब बिलकुल नहीं था।
-अच्छा-अच्छा! ठीक है।
अम्मा! एक बात बताऊँ आप अब्बा को ये बता देंगी?
-अब कौन सी नयी बात है जो तेरे अब्बा को नहीं पता?
है अम्मा.. एक बात है।
-उगलो.. डकार दूंगी जाकर, कुछ रौब तो झडेगा उनके आस्तीन से।
अम्मा थोड़ी ढिठाई से बताना.. ताक़ी मुझे अपने शौहर को अपनी बेटी ब्याहते समय ना बताना पड़े कि- आज की लड़कियाँ शादी का सुनकर शर्मा के नहीं भागा करती और वो भी ख़ामोशी से झुंझलाते हुए निकलकर भागे तो इसका मतलब ये निकालना चाहिए कि लड़की ने लड़के पर इंकार जताया है.. तब उसके अब्बा को उनसे रिश्ता बढ़ाने की नहीं उनके सामने माज़रत जता के उन्हें रूख़सती करने की होती है।
-अरे शाबाश! ये हुई ना बात। अब लग रही है तू हाज़रा बेग़म की औलाद.. जब बेटी का टका सा ज़वाब सुनेंगे ना तो जो आँखें गुरेरकर मेरे बाल घसीटकर मुझे थप्पड़ मारेंगे तो यक़ीन मानो ज़ुलेख़ा तब तुम्हारे अब्बा की बेबसी को देखकर बड़ा सुकून मिलेगा दिल को.. अग़र मुँह उनके मार से ना फ़ूटा हुआ होगा तो उन्हें हँसकर कहूंगी- मौलवी साहब! बेटी ने पल्ला झाड़ दिया है, अब तसबी उठाये और निकल पड़े वाहिद अहमद के घर पढ़ते हुए.. कमबख़्त! जान छूटे उस बला के पहाड़ से।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #QissaEMoashara #DialogueWriting

जब बात उसकी ज़ुबाँ से उतरती है

जब बात उसकी ज़ुबाँ से उतरती है
ख़्यालों में इक रात ढ़ल जाती है
ज़ेहन में उतरते हैं कई चेहरे एक संग
बात जिनमें अक्सर ठहर जाती है
हैंरत उसके माथे पर बूंदें बनाती है
मुझे देख मुझसे जब वो निगाहें चुराती है
फूल से गुलाबी लब यूं ख़ामोश होकर
मेरे ही नाम पर हल्के बुदबुदाते है
उसकी पायल जब कंगन सुनाते है
रात आसमां पे हसीन होने लगती है
जब तारे इक नाम पे इक नाम चढ़ाते है
सुबह जब दस्तक यकायक देती है
वो शर्मा कर यूं ख़ुदको सामने लाती है
इश्क़ बरस जाती है इक समुन्दर की
हवा जब देख उसको यूं इठलाती है
इक दास्ताँ उसके हाथों से उकरती है
जब बात उसकी ज़ुबाँ से उतरती है।

नितेश वर्मा
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चंद चमकते तारे आसमां से उधार लेके

चंद चमकते तारे आसमां से उधार लेके
ज़ेब में कुछ ख़नकती रोशनी भर ली है
उंगलियों की ताकत को मुट्ठी में भर के
एक क़िस्से की दास्ताँ हमने भी कही है
एक शनिवार की रात तन्हा गुजार कर
इतवार का बेसब्र इंतज़ार भी तो की है
इस सफ़र पर कइयों ज़ख़्म चीख़े मेरे
मंज़िल दर मंज़िल हमने ज़हरों सही है
चंद चमकते तारे आसमां से उधार लेके।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

हथेलियों में भरकर तेरे चेहरे को मैं यूँ

हथेलियों में भरकर तेरे चेहरे को मैं यूँ
गुलाल की गुलाबी रंग तुझपे बिखेर दूँ।

तेरी ज़ुल्फ़ों में इक घनी छांव है जाना!
उसकी चाँदनी में मैं ख़ुदको धुंध कहूँ।

आसमान में इक रात तारे सरहाने ले
इक दास्तान सा मैं तेरे जिसम में बहूँ।

अग़र कहते हैं इश्क़ में इम्तिहान हो
इश्क़ मुकम्मल हो तो.. सारे दर्द सहूँ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

इस तरह उदास दिल की कोई ख़्याल है नहीं

इस तरह उदास दिल की कोई ख़्याल है नहीं
क़ाबिल हुआ मैं, मगर के कोई सवाल है नहीं
हर्फ़ बेज़ुबान से उतरते हैं मेरे बयानबाजी के
उग़ता के रहूँ सबसे पागल ये भी हाल है नहीं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

तेरी गुस्ताख़ियों में ये सफ़ेद चाँद भरकर

ख़ास मुहब्बत के दिन.. मुहब्बत करने वालों के लिए..

तेरी गुस्ताख़ियों में ये सफ़ेद चाँद भरकर
तेरे चेहरे को ख़्वाबों की श्रृंगार से सजाऊँ
तेरे हाथों की कंगन कहेंगी बातें जो सारी
तेरी कानों में मैं अपने वो गीत भर आऊँ
तुझपे मैं रख दूँ ये खिलती धूप हसीं सारी
तेरे ज़ुल्फ़ों में कहीं मैं ये दिल छोड़ जाऊँ
हर साँस जब लेंगी करवटें मेरे दरमियान
बहकी उन गर्मियों में मैं ख़ुदको जलाऊँ
होगा दिल-ए-हाल भी क्या, कैसे बताऊँ
यारा मैं इतनी दूर से अब क्या समझाऊँ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #Valentine'sDay 😍

जो ग़म की बारिश हो यूं मेरे आँगन कभी

जो ग़म की बारिश हो यूं मेरे आँगन कभी
किसी पन्ने की कश्ती में तेरा चेहरा ना हो।

हो लाख़ बद्दुआ ज़ुबान पर मेरे हम-नवा
मग़र गर्दे या से लिपटा तेरा सेहरा ना हो।

चाहत इस तरह बयान होती है ईश्क की
बिन तेरे तसव्वुर इस धूप में पेहरा ना हो।

बहुत सोचकर समझा था जिसे अपना वो
इस तरह छोड़ेगा के ज़ख़्म गहरा ना हो।

मुझपर मेरा यकीन ज़ालिम रहता है वर्मा
ना सुने मुझे कोई, पर कोई बहरा ना हो।

नितेश वर्मा
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यूं ही एक ख़याल सा..

कभी मरते हुए शख़्स को देखा है तुमने? जब वो बिलकुल अपनी आख़िरी साँसें ले रहा हो तब?
नहीं.. कभी नहीं.. या शायद कभी.. ग़ौर ही नहीं किया कभी इनपर।
मरता हुआ शख़्स कभी झूठ नहीं बोलता।
ऐसा भी नहीं है बोलता भी होगा।
तुम्हें बहुत पता है? मरता हुआ आदमी कभी झूठ नहीं बोलता क्योंकि वैसे भी वो अपना सब कुछ छोड़ कर जा रहा होता है.. उसे किसी बात का मोह नहीं होता इसलिए मरता हुआ आदमी कभी झूठ नहीं बोलता।
और वो मरते-मरते अपनी इंसानियत दिखा जाता है.. कुछ ऐसा कहना चाहते हो तुम?
हरगिज नहीं!
मतलब कुछ ऐसा ही निकलता है।
मतलबी मत बनो.. मरते हुए आदमी पर तरस खाओ।
ख़ुद से तमाम तकलीफ़ों को झेल चुका इंसान कभी किसी पर कोई तरस नहीं खाता.. वो तो बहुत पहले ही मर चुका होता है, मुझसे इस तरह की बंधी उम्मीद तो तुम तोड़ ही दो।
फ़िर क्या सोचा है तुमने?
बदला और क्या?
तुम बदला लोगे?
जाहिरी बात है! इस हालात में यहीं करना बेहतर होगा।
तुम मर क्यों नहीं जाते?
मैं तो कब का मर चुका हूँ इसलिए किसी को सुन भी नहीं पाता.. तुम फ़िर से कभी चीख़ कर देखना मैं तुम्हें फ़िर ख़ामोश ही मिलूंगा।
ख़ामोशी तोड़ो और कुछ बोलकर देख लो.. यकीनन तुम्हें कुछ पल को सुकून जरूर आयेगा।
इस फ़रेब से निकलो और मेरी ख़ामोशी को ज़बान देने पर कोई ध्यान मत दो और ना ही इसकी कोई कोशिश करो। ख़ुद से मरा हुआ शख़्स कभी दुबारा ज़िंदा नहीं होता।
तुमसे बहस में कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
फ़िर कभी दुबारा मुकाबला करने मत आना अब से.. बाय! करवट फेरो और अब सो जाओ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

कितनी आग लगी है ज़माने में

कितनी आग लगी है ज़माने में
उम्र गुजर गई है यही बताने में।

मैं फ़िर अपने घर को जाऊँगा
रातें तन्हा रही सहर दिखाने में।

हुआ नहीं जो मेरे दिले-कायल
दर्द-ए-बेज़ुबाँ गुम है सताने में।

कुछ मिला जिनको वो क्या है
हम अधूरे है इस अफ़साने में।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

लाख़ों कोशिशें की थी मैंने, बस इक चाहत में

लाख़ों कोशिशें की थी मैंने, बस इक चाहत में
उसे पा ना सके कभी, ख़ुदाया ये और बात है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

सब कुछ यहाँ अधूरा सा है

सब कुछ यहाँ अधूरा सा है
इम्तिहान के सवालों में ज़वाब जैसा
ग़ज़ल में दो काफ़िये की तरह
बेबह्र नज़्म में रदीफ़ का होना
प्रेम में शिर्क का ज़िक्र होना
दिल टूटने पर दिलजोई करना
मुहब्बत की सौ बातें करना
और भूख से मरके चुप सोना
ख़्वाब आसमान में छोड़ना
आँखों से कइयों बातें करना
मलाल कई लेकर सो जाना
ख़त अधूरा समेटकर लौट जाना
आख़िर अधूरा-अधूरा रह जाना
शायद पूर्णतया यहाँ कोई नहीं
इसलिए भटक रहे हैं क्योंकि..
सब कुछ यहाँ अधूरा सा है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

फ़िर वहीं सब कुछ

फ़िर वहीं सब कुछ
वहीं ज़िक्र
वहीं परेशान मन
वहीं आदत
वहीं ख़लती चुभन
कितना कुछ नहीं बदला ना
ना तुम.. ना मैं
ना ये शह्र.. ना ये लोग
बदला था तो बस इक वक़्त
और वक़्त के जरिये
बदल गई तो बस ये आदतें।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

मुझपर कई ज़ुल्म हुए थे मैंने देखा इक रात

मुझपर कई ज़ुल्म हुए थे मैंने देखा इक रात
उधेड़ कर ज़ख़्मों को मरहम मला कई बार
भीचकर आँखों को.. ख़्वाबों को नोंच डाला
रिहा कर ख़ुदको चल पड़ा पगडंडी सहारे
हमदर्दी से या माँग कर पेट भरी कई पहरे
लानत बरसते आसमान से बरसी थी मुझपे
दुनिया जब सारे ग़म मेरे हिस्से में रख गयी
जब आदम ये शरीर बोझ से दुहरा हो गया
जब आँसुओं से मेरा घर-आँगन भर गया
कुछ नहीं कहना बना था जो इसके सिवाय
मौहलत मिली तो फ़िर लौटकर पूछूँगा ये
आख़िर क्यों हुआ था ये सब कुछ मेरे साथ
मुझपर कई ज़ुल्म हुए थे मैंने देखा इक रात
उधेड़ कर ज़ख़्मों को मरहम मला कई बार।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

क्यूं ज़िन्दगी से कोई खुशी मिली नहीं

क्यूं ज़िन्दगी से कोई खुशी मिली नहीं
किसी मौसम ने मुझपे धूप मली नहीं।

मैं भीगने गया था सर्दियों में ओस तले
कंपकंपाती लब, ज़ुबाँ पर हिली नहीं।

चौराहे पर कई क़ातिल परेशान से हैं
मुहब्बत ही कोई इक संगदिली नहीं।

पत्थर कई बेसब्री हाथों में पड़े हुए है
जान इक बाज़ी है, कोई पहेली नहीं।

सुनके ये क्या हाल होगा उनका वर्मा
मुझमें लगी कई आग पर जली नहीं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

कमबख़्त वो कितने अच्छे दिन थे

कमबख़्त वो कितने अच्छे दिन थे
जब प्रेम ख़तों के ज़रिये होता था
जब तुम सिमट आती थी मेरी बाहों में
बिन नज़ाकत के बिगड़ैल होकर
जुल्फों को जब खोलकर लेट जाती
मेरे कांधे पर रखकर सर अपना
उंगलियां जब उंगलियों की गिरफ़्त में होती
ख़्वाब जब आसमान में चादर बुनते थे
तुम्हारे छत पर जब चाँद आ रूकता था
मुश्किल होता था मेरा दिल-ए-हाल वो
जब तुम मुस्कुराती मुझे देखकर चुपके से
मैं मर जाता था तुम पर अक्सर वहीं
तुम मुझमें धूप होकर बिखर जाती थी
अब याद अक्सर वो आँसू बनकर आते हैं
कमबख़्त वो कितने अच्छे दिन थे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

31 जनवरी

31 जनवरी की सुबह आँखें खोलते ही
जब पता चला अब तुम मेरी नहीं रही
वो विवाह आमंत्रण-पत्र मेरे सिरहाने पड़ा था
जिसके हर्फ़-हर्फ़ में आँसू क़ैद थी
दिल जब तकिये तले टूटकर बैठ चुका था
आँसू जब मेरी फैल चुकी थी बिस्तर पर
दादी ने अचानक रेडियो मिला दिया
महेन्द्र कपूर गा रहे थे-
"जाने वो कैसे लोग थे जिनके..
प्यार को प्यार मिला.."
माँ ने मिर्च के फोरन से जब दाल छौंका
सब खाँसते हुए रो पड़े थे आँगन में
पापा जब तुम्हारे घर से आएं मिठाई को खाकर बोले
मिश्रा जी की बेटी का रिश्ता पक्का हो गया
बहन ने लानत भेजते हुए जब अचानक से बुदबुदाया
"मर जाए वो कमबख़्त कहीं जाकर"
माँ ने हौले से मुझे देखा
दादी ने रेडियो बंद कर दिया
मैं कमरे से निकलकर उसके गलियारों में गुम हो गया
सदियों तक मुझे धूप की निगाहें भी ना ढूंढ पायी
शहर में फ़िर अचानक कई नृशंस हत्याएं हुई
ज़ुर्म मेरे नाम पर कोई दर्ज़ नहीं हुआ फ़िर भी
मैं इश्क़ का मारा था.. उसके इश्क़ का।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

ख़ामोश होकर ज़हर हुआ हूँ कई बार मैं

ख़ामोश होकर ज़हर हुआ हूँ कई बार मैं
ख़ुदसे ही माज़े लहर हुआ हूँ कई बार मैं।

बेताबियों को सीने में क़ैद मैंने रखा नहीं
कुछ इस तरह सहर हुआ हूँ कई बार मैं।

वो ग़ज़ल की इक दीवान सी लगती रही
उसे देखकर बेबहर हुआ हूँ कई बार मैं।

इक चिंगारी जिस्म से चिपककर मेरे ही
मुझमें ही तो क़हर हुआ हूँ कई बार मैं।

किस्मत यकीनन साथ नहीं थी मेरी वर्मा
पाग़ल होकर शहर हुआ हूँ कई बार मैं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

वो कविता थी मेरी उदास सी

वो कविता थी मेरी उदास सी
जिनपर हर्फ़ बेज़ुबान रहते
जिसपर ख़ामोशी तामीर होती
और लड़खड़ाती चल फिरती
जब आँसू क़तार ढ़ूंढ़ते थे
नमीं जब आसमान में होती
दिल भटक जाता था कहीं
चाय की चुस्कियाँ जब
बेमन हलक से उतर जाती
ज़ेहन में उसकी वो
मासूम सी शक्ल फ़िर ढ़ल जाती।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

इस बंज़ारे-दायरे में नजाने कौन आता रहा

इस बंज़ारे-दायरे में नजाने कौन आता रहा
कभी तन्हा, तो कभी बज़्म में उग़ताता रहा।

उसके ज़िस्म को कुरेदते रहें सारी रात हम
सुब्ह फिर खाली हाथ परिंदा पछताता रहा।

ज़ेहनियत बिगड़ चुकी थी दिमाग़ पागल था
इल्मे-याफ़्ता था, एक हद तक शर्माता रहा।

सोचा था सबकुछ वक़्त के मुताबिक़ होगा
फिर हर घड़ी, नजाने क्यूं जी घबराता रहा।

इक घाव ज़िस्म से उतरकर, दिल में फैला
कभी रोया तो कभी थाम के सहलाता रहा।

सुकून क़ैद है कहीं मेरे ही सीने में छिपके
इक डर में मैं ही था, जिसे मैं फैलाता रहा।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

खूँ मेरे ज़िस्म से चिपकती गई सड़ने के बाद

खूँ मेरे ज़िस्म से चिपकती गई सड़ने के बाद
इक दाग़ फिर रह गया घाव उखड़ने के बाद।

कहते हैं सब के अब वो गुमशुदा सी रहती है
मुहब्बत में मुझे दग़ा देकर बिछड़ने के बाद।

मेरे भीतर भी मैं ही चीख़ता रहता हूँ देर तक
अकसर ज़माने से बे-इंतहा बिगड़ने के बाद।

पागल हो जाना चाहता था.. मैं भी आख़िर में
पत्थर उसके हाथों से सर पर पड़ने के बाद।

मेरे मरने पर ये किसको जीना आया था वर्मा
बेवज़ह इतने लाशों से लाश रगड़ने के बाद।

नितेश वर्मा

जब ख़ामोशी ज़ुबाँ क़ैद कर लेती है

जब ख़ामोशी ज़ुबाँ क़ैद कर लेती है
और सुबह का उगता हुआ सितारा
जिस्म पर कई चोटें करता हैं
ज़बान जब लड़खड़ाकर चीख़ती है
और ख़ंज़र जब आसमां से
बारिश के बूंदों के साथ बरसते हैं
नज़ाकत भरी जब कोई फूल यहाँ
मातम के दामन से लिपटती है
तो उस ख़ामोशी का टूट जाना ही
वाज़िब होता है
जो एक साथ तमाम चीख़ों को
किसी सन्नाटे तक ले जाती है और
तब ढ़लता हुआ सूरज बदन पर
मरहम सहलाता हुआ चला जाता है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

हर शख़्स एक उम्र में आकर परेशान हो जाता है.. उसे तमाम ख़ौफ़ एक साथ सताती हैं, एक साया या हज़ारों अक़्स उसका पीछा करती हैं.. बात-बात पर वो अपनी यकायक सर झटक देता है, कोई ख़याल ज़ेहन में उतरती है तो वो झुंझला जाता है। बनती तस्वीर को बिगाड़ देता है.. हालात, वक़्त, क़िस्मत को कोसता है.. ऊपरवाले से नाराज़गी जताता है या फ़िर सबसे हारकर.. उदास होकर ख़ामोश बैठ जाता है।
लेकिन वो शख़्स अपने किसी बुरे हालात में किसी के सामने मिन्नतें नहीं करता.. हाथ नहीं फ़ैलाता.. किसी की जी-हुजूरी नहीं करता, फ़िर यकीन मानिये वहीं एक शख़्स इतिहास लिखता है.. बाक़ी सारे क़िस्सों-कहानियों में सिमट जाते हैं।
अपने हालातों से ही जीतकर कोई कामयाब होता है, किसी मंजिल को पाता है.. नाम कमाता है, इतिहास लिखता है या फ़िर मिट्टी में राख़ होकर सिमट जाता है। दफ़्न होता है लेकिन उफ्फ़ नहीं करता.. आँखें फ़िर ज़माने भर की कराहती हैं, वो ऊपर से ख़ामोश सब देखता रहता है लेकिन वहाँ भी कोई मिन्नत नहीं करता.. या शायद वो पत्थर हो जाता है।
P.S.- अब ख़िड़की से बाहर ना देखिये आसमां नहीं पिघल रहा कोई। 😉

तमाम दर्द सीने के खुलकर ज़मीं पे बिखर गए
हमने सोचा ही ना फ़िर हम ख़ुदाया किधर गए।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

उस सर्दियों की शाम में जब उदासी

उस सर्दियों की शाम में जब उदासी
मेरे कमरे के दहलीज़ पर आयी थी
लिहाफ़ में अकड़ता हुआ बदन
जब आलस्य को समेटे हुए गुम था
यौवन सौलहवाँ का ढ़लकर
जब चेहरे पर बिखरी पड़ी हुई थी
इक कंपकंपाती आवाज़ गर्माहट भरे
कानों में घुल गई थी यकायक
बस ख़यालों में तेरे दस्तक देने पर।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

उसका चिड़चिड़ापन उसकी बेबसी की निशानी है

उसका चिड़चिड़ापन उसकी बेबसी की निशानी है
वो बिगड़ैल किरदार से भरी एक उदास कहानी है।

वो कमरा जो तहख़ाने के अन्दर बनवाया था उसने
उससे ही ये बात खुली की दयारे-तस्वीर पुरानी है।

मेरे लब्ज़ ख़ामोश होके करवटें लेते रहे तमाम उम्र
किताबी किस्से की तरह ही ये भी एक बेईमानी है।

दिल मुंतज़िर था बरसों से एक उसके आ जाने को
पत्थर पिघल गये आँसू से वो दर्द सारी बेज़ुबानी है।

अब जो जल चुका हूँ, तो राख़ देखने बैठ गये वर्मा
जो ज़िंदा था तो कुरेदते थे अब छोड़ो ये नादानी है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

The way

The way.. they refuses me
Once in a way they uses me
But it's okay!
It's happen in everyone's life
Everyone take lessons from their life
Everyone charged through their life
Good or bad, hopes or sadness
Everything comes in their life
Thought will be meaningful by the
Action of damn human behaviour
Full of disappointment after the failure
It's a not a big issue
But the way,
by which you take this failure is issue
The way.. they refuses me
Once in a way they uses me.

#Niteshvermapoetry #TheWay

यूं ही एक ख़याल सा- हर ड़ोर जोड़ा है तुमसे

अंगन का दाख़िला मेडिकल कॉलेज में हो चुका था। आज पहला दिन था उसका कॉलेज में.. सुबह से वो कई बार अपने कपड़ों को लेकर जद्दोजहद में उलझी थी कि आज वो कौन सा सूट पहनकर कॉलेज जाये। हर बार वो सूट पहनती और सुभी को व्हाटस-अप करके पूछती- ये कैसा लग रहा है?
सुभी कहती अच्छी लग रही हो.. तो फ़िर वो ख़ुद बात काट कर कहती नहीं यार सूट कलर मुझसे मैच नहीं कर रहा, तो कभी कहती बालों की पकड़ उलझ रही है.. ऐसे ही कभी कुछ.. तो कभी कुछ।
अंगन जब ख़ुद की आफ़तों से परेशान हो गई तो अपने पापा का दिया सूट निकाला और पहनकर कहा- पापा! आप तो मेरा पीछा छोड़ते ही नहीं.. आज भी.. और मुस्कुराते हुए कॅालेज निकल गई।
अंगन कॅालेज पहुँच चुकी थी, मगर सुभी को आने में अभी कुछ देर थी। अंगन ने सोचा सुभी से फ़ोन पर बात करके सर ख़पाने से अच्छा है कि वो यहीं उसका इंतज़ार कर ले और वो वहीं बाहर कॅालेज के कारेडोर में उसका इंतज़ार करने लगी। कभी कुछ कदम चलती तो कभी थक कर वहीं बैठ जाती।
थोड़ी देर बाद सुभी आ गयी.. इंतज़ार का लम्हा ख़त्म हुआ और दोनों कॅालेज के अंदर चली गयी।
दोनों पीछे जाकर एक बैंच पर बैठे ही थे कि एक लड़का दौड़ता हुआ आकर धड़ाम से अंगन के पास बैठ गया। अंगन घबराई लेकिन फेक्लटी को अंदर आता हुआ देखकर कुछ कहा नहीं बस आँखें गुरेरी और फ़िर सर किताब में लगा लिया। लड़के ने बड़े संजीदगी से कहा- आई एम सॅारी।
अंगन चुप रही.. सुभी ने हल्के से मुस्कुरा दिया।
लड़के ने फ़िर कहा- आपसे कह रहा हूँ?
अंगन ने सर उठाकर देखा और फ़िर उलझकर कहा- इट्स ओके! फ़िर नज़रे झुकाकर किताब में कुछ ढ़ूंढ़ने लगी।
लड़के ने फ़िर उससे कहा- एक्सक्यूज़ मी!
अंगन ने किताब देखते हुए कहा- कहो!
आप अपनी किताब मुझे देंगी?-लड़के ने पूछा।
नहीं.. मुझे ख़ुद पढ़ना है। ये कहते हुए अंगन सुभी के पास थोड़ा और ख़िसक गयी।
लड़के ने ये हरकत देखी तो कहा- अछूत नहीं हूँ मैं।
ये सुनकर दोनों खिलखिला पड़ी। सर ने नोटिस किया और उनको क्लास से बाहर भेज दिया और लड़के से कहा- यू आर ए ब्रिलियेन्ट स्टूडेंट इसलिए इस बार माफ़ कर रहा हूँ.. अगली बार से ये बर्दाश्त नहीं करूँगा मैं।
बड़ा आया ब्रिलियेन्ट बुक्स लेकर तो आया नहीं था और ऊपर से लेट भी था.. कमीने ने पहले दिन ही क्लास से बाहर करवा दिया।- अंगन ने सुभी की तरफ़ देखते हुए कहा।
अरे ऐसा नहीं है वो।- सुभी ने बात काटते हुए कहा।
तो फ़िर?- अंगन ने फ़िर सवाल किया।
वो बेचारा अपनी पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट-टाईम जॅाब भी करता है.. तो ये लेट और बुक्स का कुछ कर नहीं पाता।- सुभी ने कहा।
ख़ैर, कुछ भी हो.. सुबह-सुबह मूड ख़राब कर दिया।- अंगन ने बालों को सुलझाते हुए कहा।
चल, कुछ खाते है अगली लेक्चर में वापस चलेंगे। दोनों कैंटिन चले जाते हैं।
अगली लेक्चर में वो लड़का नहीं था.. अंगन ने नोटिस किया मग़र सुभी से कुछ कहा नहीं।
अगली सुबह फ़िर अंगन पहले आ चुकी थी और सुभी का इंतज़ार कर रही थी। वो कुछ गुस्से में थी कि तभी वहाँ वो लड़का आ गया। आकर कहा- सॅारी.. कल के लिए, मेरी ग़लती थी।
अंगन को सुभी की बात याद आयी और वो चुप रह गयी। लड़के ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया अंगन का मन ना होते हुए भी उसने उस बढ़ाएँ हुए दोस्ती का हाथ थाम लिया। दोनों की दोस्ती चल पड़ी.. अंगन अब कॅालेज आकर सुभी का नहीं उस लड़के का.. सॅारी लड़का यानी विकल्प का.. इंतज़ार करने लगी। दोस्ती उम्र में बढ़ने लगीं.. नजदीकियां बढ़ने लगीं.. क़िस्से भी फ़ैलने लगे.. आख़िर में आकर दोनों ने उस मुहब्बत को दिल ही दिल में कुबूल कर लिया।
एक रोज़ सुबह अंगन विकल्प का इंतज़ार कर रही थी कि तभी उसने सामने देखा कि विकल्प सुभी के साथ उसके गाड़ी में आ रहा था। अंगन को ये बात बहुत बुरी लगी उसने विकल्प को बहुत कड़वा सुनाया। विकल्प ख़ामोशी से सब सुनता रहा.. सुभी ने ये सब देखा तो रोते हुए वहाँ से भाग गयी। कई दिनों तक तीनों कॅालेज नहीं गए। अंगन अपनी गाँव चली गयी.. विकल्प ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और एक कम्पनी में फुल-टाईम जॅाब करने लगा। अंगन का दिल गाँव में लगा नहीं वो कुछ दिनों बाद वापस शहर लौट आयी। कॅालेज कई दिनों तक फ़िर भी नहीं गयी.. एक रोज़ वो बाज़ार से लौट रही थी तो उसने देखा विकल्प सामने से आ रहा था.. अंगन ने गुस्से में जाकर उसे एक थप्पड़ मारा और रोते हुए वहां से चली गयी। विकल्प उसके पीछे भागा, लेकिन अंगन ने उसे अपनी कसम दी और वो वहीं से वापस लौट गया।
विकल्प ने सुभी को सारा वाक़िया सुनाया और उससे मदद की बात कही। सुभी ने अगली सुबह अंगन से बात करनी चाहीं अंगन ने उसे मना कर दिया। सुभी नहीं मानी और बोलती चली गई- विकल्प तुझसे मुहब्बत करता है.. उस दिन भी वो तुझसे अपनी दिल की बात को ज़ाहिर करने आया था.. तुझसे शादी करना चाहता था वो। वो तेरे बग़ैर नहीं जी सकता है, उसने तेरे सिवा किसी और को नहीं चाहा है.. मगर तू किस्मत की मारी है.. तुझे ये अब समझ में नहीं आयेगा। विकल्प की शादी जबरदस्ती उसके चाचा ने कहीं तय कर दी है, वो पैसों पर उसका सौदा कर रहे हैं और तू उसपर अब भी शक़ करती है।
अंगन को होश हुआ वो दौड़कर विकल्प को ढ़ूंढ़ने भागी, मगर विकल्प मिला नहीं। वो हारकर रात में अपने हास्टल पहुँची.. वहाँ पहले से ही विकल्प खड़ा था। अंगन ने विकल्प को देखा और दौड़कर उससे गले जा लगीं और रोने लगी। उससे पूछा कहा चले गए थे तुम विकल्प?
विकल्प ने कहा मैं तो यहीं था तुम्हारे वापस लौटकर आने के इंतज़ार में। मैं और कहाँ जाऊँगा मैंने तो.. हर डोर जोड़ा है तुमसे।
अंगन ख़ामोशी से और गहरे होकर विकल्प के सीने से लग गई।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #QissaEMoashara #HarDorJoodaHaiTumse

यूं ही एक ख़याल सा..

यार मुझे ग़लत मत समझो!
और क्या समझूं मैं तुम्हें.. तुम्हीं बताओ उसे क्या समझना चाहिए जो किसी काम का ना हो?
दुनिया में सारी चीज़ें काम की नहीं होती फ़िर भी होती तो हैं ना.. किसी काम का नहीं होना इसका ये मतलब नहीं कि वो कोई अहमियत नहीं रखता है।
उलझाओ मत मुझे!
सीधी बात कही है मैंने।
हाँ! तुम्हारी हर सीधी बात मुझे उल्टी लगती हैं मुझमें ही कोई दोष है.. नहीं?
मैंने ऐसा कब कहा?
नहीं कहा.. तो अब कह दो! जी खोलकर कहो.. ख़ूब कहो और जल्दी कहो और कहकर दफ़ा हो जाओ!
बिना कुछ कहें रूठी हुई हो.. ज़बान खोलूंगा तो जान तक निकाल लोगी.. पता है मुझे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

मुहब्बत मेरी ज़िन्दगी से बहुत दूर रहीं

मुहब्बत मेरी ज़िन्दगी से बहुत दूर रहीं
जिस्म ग़रीबी से इस तरह मजबूर रहीं।

तकलीफ़ से पनपा हुआ एक मजरूह
हर रात ख़्याले-निगाह चकनाचूर रहीं।

इस हक़ के आवाज़ को जायज़ किया
बात बढ़ायी, तो उनकी जी हुज़ूर रहीं।

अलमियाँ ये है मैं मर गया था कहीं पे
करवट बदल दी थी यहीं फ़ितूर रहीं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

गरीबी चीख़-चीख़के सताई जा रही हैं

गरीबी चीख़-चीख़के सताई जा रही हैं
आम लोगों की बातें बताई जा रही हैं।

दो वक़्त का राशन भी नहीं हो पाता है
मंहगी-मंहगी बर्तनें दिखाई जा रही हैं।

माँ-बाप आसरे ढूंढते जमीं पर सो गए
हालांकि रोज़ मकाने बनाई जा रही हैं।

मेरा तो सब लूट गया, मैं बर्बाद हूँ अब
दो गली दूर ये दावतें मनाई जा रही हैं।

दिल भर गया इश्क़ से, अब दर्द हूँ मैं
ये कौन सा गम है जो खाईं जा रही हैं।

मेरे किस्से भी बड़े मजेदार के हैं वर्मा
मेरे मरने के बाद भी सुनाई जा रही हैं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

विषय-चर्चा : कहानी कैसे लिखते है?

अक्सर कहानियाँ स्थितियों पर लिखी जाती हैं। कहानी या तो प्रोत्साहन या हतोत्साहन के लिए लिखीं जाती है। आज के ज़माने में कहानी काफ़ी अलग तरीक़े से लिखीं जा रही है लेकिन आज भी मूलभूत आधारों का ख़ासा ध्यान रखा जाता है। किसी भी कहानी को लिखने के लिए तीन चीज़ों की जरुरत होती है - पात्र, विषय और परिणाम। बदलती स्थितियों पर कहानियों को बदला जा सकता हैं या अक्सर ऐसा होता भी है। उदाहरण के तौर पर देखिये-
एक माँ की बच्ची बहुत बीमार थी। वो उसे लेकर दौड़ती हुई अस्पताल पहुँचीं। डॅाक्टर ने बताया कि कोई ख़ास बात नहीं है बस थोड़ा-सा बुख़ार है, ये इंजेक्शन ले आइये.. मैं लगा दूँगा तो कल तक ठीक हो जायेगी। माँ बच्ची को वहीं डॅाक्टर के पास छोड़कर दवाखाने की ओर भागी। दुकानदार ने इंजेक्शन की क़ीमत 120₹ बताईं। माँ ने अपनी मजबूरी बताईं और दुकानदार से 20₹ उधार कर लेने को कहा। दुकानदार ने माँ की हाथों से इंजेक्शन छीना और फिर उसे दुकान से भगा दिया। माँ अपनी क़िस्मत पर रोते हुए वापस अस्पताल जाने लगी। इंजेक्शन के ना लगने की वज़ह से बच्ची की मौत हो गईं।
या फिर ऐसा हो सकता है कि उस माँ को ऐसी हालत में एक पत्रकार ने देख लिया हो और उसने 20₹ की मदद कर दी हो। बच्ची बच गई हो। माँ अपनी बच्ची को खुशी-खुशी घर लेकर चली गई हो और पत्रकार ने उसे अपने कैमरे में क़ैद कर लिया हो.. जो अग़ले रोज़ की सुबह की मसालेदार ख़बर साबित हुई हो।
या स्थिति थोड़ी और बदलते है। माँ दुकानदार की बातों का बुरा ना मनाते हुए दूसरे दुकान की तरफ़ भागी। दूसरे दुकानदार ने 95₹ में इंजेक्शन दे दी। माँ पिछले वाले दुकानदार को गाली देती हुई डॅाक्टर के पास पहुँची। डॅाक्टर ने इंजेक्शन देखा और उसे लगाने से मना कर दिया। कुछ दिनों बाद पता चला- डॅाक्टर और दुकानदार के बीच हर परचेसिंग पर कमीशन बंधी हुई थी।
या हो सकता है माँ ने जो इंजेक्शन दूसरी दुकान से ख़रीदी हो वो अनलाइसेंस्ड हो इसलिए थोड़े से कम दामों पर बेचे जा रही हो जिसके कई ख़तरनाक साइड-इफेक्टस हो। डॅाक्टर माँ के साथ मिलकर उस दुकान को सील करवाता है। उसकी ऐवज़ में बच्ची का इलाज मुफ़्त होता है और माँ को उसकी बहादुरी के लिए विधायक जी से सम्मान में एक गोल्ड मैडल प्राप्त होता है।
अगर थोड़ा ड्रामा बढ़ाएँ.. जिसके घर में बच्ची की इलाज के लिए ढंग से पैसे भी नहीं हो.. तो ऐसा हो सकता है कि बच्ची का पिता आवारा क़िस्म का हो और माँ जब गोल्ड मैडल लेकर घर पहुँची हो तो पिता ने माँ को मार-पीटकर उससे जबरदस्ती मैडल छीन लिया हो। मैडल लेकर वो दारू और जुएँ खेलने निकल गया हो और माँ लहूलुहान घर के कोने में बिलखती रही हो।
अग़र थोड़ा और बदलाव किया जाए तो। माँ अपनी बच्ची के लिए बेहाल सड़को पर पैसों के लिए दौड़ती-भागती.. लेकिन पैसे को पकड़ नहीं पाती। अचानक एक रइसज़ादे की गाड़ी आकर रुकती है.. माँ अपनी बच्ची की जान की भीख माँगती है। माँ की खूबसूरती पर फ़िदा रईस उसे गाड़ी में बैठने को कहता है।माँ हालात से हारकर उसके साथ चली जाती है। जब देर रात वो वापस अपने साथ एक पैसों से भरा सूटकेस लेकर अस्पताल पहुँचती है तो पता चलता है कि बच्ची मर चुकी है।
या सबसे हटकर हैप्पी इंडिंग की तरफ़ आते है। वज़ह बदलते है.. माँ दवाखाने के पास गाड़ी से उतरती है, दुकानदार 20₹ उधार को चुपचाप मान लेता है। दफ़्तर से बच्ची का पिता अपने काम छोड़कर अस्पताल भागा आता है। पिता के ऊँचे व्यक्तित्व एवं पहचान के कारण डॅाक्टर इंजेक्शन के आने से पहले चेकअप में लग जाता है। माँ इंजेक्शन लेकर आती है तो देखती है कि बच्ची अपने पिता के साथ हँसकर बात कर रही है और डॅाक्टर बच्ची और पिता के बग़ल में खड़ा होकर बोलें जा रहा है - अरे! आपकी बच्ची है.. फ़ोन कर दिया होता बस। मैं कुछ थोड़े ही ना होने देता। माँ दूर से खड़ी ये सब देखकर अपनी आँसुओं को पोंछने लगती हैं।
या एक वज़ह हैप्पी इंडिंग की ये भी हो सकती है कि माँ और पिता में एक-दूसरे को लेकर कई दिनों से अनबन बनी हो और आज इस छोटी सी बच्ची ने बीमार होकर उन दोनों को फिर से एक-दूसरे के क़रीब ला दिया हो।
बदलती स्थितियों पर कहानियाँ बदलती हैं। सामाज़ और वक़्त के बदलाव के साथ-साथ बहुत कुछ बदला है और इन बदलाव में कहानी-लेखन भी बदलीं है। भाषा की सहज़ता और साहित्यिक रूझानों के लिए कहानियों को आज की बोलचाल की भाषाओं में लिखने का प्रचलन चल गया है।
P.S. - इसका थोड़ा भी यह मतलब नहीं है कि आजकल के लेखकों में साहित्यिक भाषा और ज्ञान की कमी है। विषय-वस्तु की भाषा आम से आम पढ़े-लिखे पढ़नेवालों के सहूलियत से लिखी जाती है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #StoryWriting

जब आसमान में तारें समुंदर बनाते हैं

जब आसमान में तारें समुंदर बनाते हैं
कई दिल ज़मी पर बेधड़क धड़कते हैं
चाँद जब उनके बीच आकर थमता है
एक कश्ती सा दिखता है सबकुछ
जब मध्यम-मध्यम हवा टहलती है
जब तारें झिलमिलाकर ठहर जाते हैं
चाँद जब खुलता है स्याह बादलों में
भंवर जब आँखों में बन जाती है मेरी
एक उसका नाम दुहराता है लब
फ़िर ख़ामोश हो जाती है बहकती रात।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

बेइंतहा होने लगी जब बारिशें मुझमें

Beintaha hone lagi jab barishein mujhme
Bhatak gayi fir saari khwahisein mujhme!

बेइंतहा होने लगी जब बारिशें मुझमें
भटक गई फ़िर सारी ख़्वाहिशें मुझमें।

Main raat bhar jaagta raha un sardiyo me
Subah sang le aayi kaiy dilasein mujhme!

मैं रात भर जागता रहा उन सर्दियों में
सुबह संग ले आई कई दिलासें मुझमें।

Khud jab nazar nahi aayi rastoein pe din
Andhero ne dhundhi fir libasein mujhme!

ख़ुद जब नज़र नहीं आई रस्तों पे दिन
अँधेरों ने ढ़ूंढ़ी फ़िर लिबासें मुझमें।

Hai haal aaj bhi wahi Ki udaas hoon main
tere jaane ke baad qiad sansein mujhme!

है हाल आज भी वही कि उदास हूँ मैं
तेरे जाने के बाद क़ैद साँसें मुझमें।

Bhatakta Hua main aakhir khudse ja Mila
Is tarah aakhir riha hui laashein mujhme!

भटकता हुआ मैं आख़िर ख़ुदसे जा मिला
इस तरह आख़िर रिहा हुईं लाशें मुझमें।

Wo Jo khoon jism se chipaka nahi verma
Wahi simta hai leke kai bahaein mujhme!

वो जो ख़ून जिस्म से चिपका नहीं वर्मा
वही सिमटा है लेके कई बहानें मुझमें।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry

हमने ही फ़ैलाई थी आग बस्ती में

हमने ही फ़ैलाई थी आग बस्ती में
चिंगारी यूंही नहीं है इस मस्ती में।

तमाम क़िस्से किताबों में क़ैद रहे
ये बाज़ार में मिलेंगे सब सस्ती में।

कुछ अज़ीब ही है लोग मुसाफ़िर
ख़ुदा ही ढ़ूंढ़े है जो ख़ुदपरस्ती में।

वाकई ये इल्जाम सर पर आयेगा
ज़ुर्म की दास्तान है इस हस्ती में।

रिहा हो जाएं क़ैद मुहाज़िरें वर्मा
बात क्या करे इस जबरदस्ती में।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry

जब ख़्वाब आँखों से बिछड़ जाते हैं

जब ख़्वाब आँखों से बिछड़ जाते हैं
मुझमें ही कई शख़्स बिगड़ जाते हैं।

मैं रोता रहता हूँ ख़ुदमें फ़साने लेके
जब बारिशें, बादलों से लड़ जाते हैं।

क्यूं दिल सुबकता है, उसे सोचकर
बातें अक्सर, जबाँ से झड़ जाते हैं।

अग़र वो मुझे मिलता तो क्या होता
जीतके, जिस्म तो घर पड़ जाते हैं।

फ़िर से कोशिशें करेंगे.. अब वर्मा
हारने से नब्ज़, कहाँ सड़ जाते हैं।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry

कुलसूम

ऐसे चोरी-छिप्पे ना तू मुझसे मिलने ना आया कर। सबकी नज़रें रहती हैं मुझपर। अब मुँह मत लटका ऐसे। सुन! मेरी तरफ देख.. ख़ुदा ना ख़ास्ता अग़र किसी ने ख़्वाब में भी एक बार हम दोनों को ऐसी हालत में देख लिया ना तो बात का बतंगड़ बना देंगे।
अरे यार! तू डरती कितना है? कुछ नहीं होगा हम दोनों को.. ख़ासकर तुझे। मैं सबसे लड जाऊँगा तेरी ख़ातिर। तू मुहब्बत में यकीन तो रखती है ना?
भला ये कैसा सवाल है? रखती ना होती तो तुझसे मुहब्बत थोड़ी ही ना कर बैठती।
फ़िर ऐसी उल-जुलूल की बातें करना अब छोड़ दे। देख! मुहब्बत बहुत हसीन सी चीज़ है इसे समझने की कोशिश कर। ज़माने का क्या है ये तो हमेशा से हमपर थूकती आ रही है और हमेशा थूकती भी रहेगी।
ये कुछ ग़लत तो नहीं? फ़िर भी लोग इसपर थूकते हैं? मैंने तो सुना था कि मुहब्बत अल्लाह के मरज़ी से होता है और वो भी लाखों में से कोई एक इस मुहब्बत को निभाने के क़ाबिल होता है। ये तो अल्लाह की देन है.. और नफ़रत के बजाय अग़र मुहब्बत कर बैठो तो इसमें थूकने वाली कौन सी बात है? मुझे तो समझ नहीं आता।
देख अब तू नाराज़ मत हो। मैं तेरे ख़ातिर इतनी रात छर्दवाली पार करके आया हूँ। अब अपना मूड अच्छा कर और मुझे मुस्कुरा के दिखा।
मैं नहीं मुस्कुराती इतनी बे-फिज़ूलियत के बातों के बाद। तू ही दिखा दे अपनी बत्तीसी और खुश हो जा।
अच्छा अब मान भी जा। आज से सारी बकवासें बंद.. बस तेरे ख़ातिर कसम से।
हुम्म्म्म! अब आया ना लाईन पर।
लाईन?
अरे जा ये सब ना तेरे समझ से बाहर की बात है। लाईन समझता नहीं और इश्क़ निभाने चला है.. बड़ा आया। हुम्म्म्म!
अच्छा ना! अब छोड़ भी तू.. कहाँ अटका के रख दिया है तूने मुझे। ये देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ?
क्या है ये?
ख़ुद खोल के देख।
नहीं.. मैं नहीं देखती पिछली बार की तरह इस बार भी इसमें कोई पप्पी हुआ तो.. ना बाबा मुझसे नहीं संभलते ये कुत्ते के बच्चे। तू ही रखा कर अपने पास तेरे ही बिरादरी के है ये सब.. मुझे तो थोड़े भी पसंद नहीं। चल अब जा! देख कितनी रात हो गई है।
नहीं! मैं नहीं जाता जबतक तू इसे खोल के नहीं देखती मैं तो यहाँ से हिलने वाला भी नहीं।
देख तू जा अभी, मैं बाद में देख लूंगी कोई ऊपर आ रहा है।
Promise?
पक्का वाला Promise, अब तू भाग जल्दी।
देख लेना हअ।
हाँ! बाबा.. जा अब।
एक बात बता ये कुलसूम का अर्थ पता है तुझे?
नहीं।
अपने नाम का अर्थ नहीं पता? पता कर.. और सुन उसमें कुछ कुलसूम जैसा ही है। यकीन मान ले तेरी कसम।
चल जा! बहाने ना बना। देख लूंगी मैं इस कुलसूम को।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

तप रहा है ये जिस्म पसीने से

तप रहा है ये जिस्म पसीने से
नाराज़ी है बस तेरे ना होने से
घायल हुआ हूँ मैं तब से यहाँ
कोई भूला हुआ मेरे खोने से।

नितेश वर्मा

कुछ क़िस्सों में नहीं हूँ मैं

कुछ क़िस्सों में नहीं हूँ मैं
स्याह हिस्सों में नहीं हूँ मैं।

पागल दुनिया है सारी तो
प्यार नफ़्सों में नहीं हूँ मैं।

बदलती रात सारी वो थी
दिले लफ़्ज़ों में नहीं हूँ मैं।

कैसा था ये पता ना वर्मा
तेरी कब्ज़ों में नहीं हूँ मैं।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry

Sunday, 1 January 2017

यूं ही एक ख़याल सा.. - 31 दिसम्बर 2016

इस साल से उतनी ही मुहब्बत है जितनी इस साल के जल्दी-जल्दी बीत जाने से शिकायत। कुछ ख़याल अभी ज़ेहन से उतरकर लबों पर ठहरें ही थे कि यह सितगमर अलविदा कहकर जाने को उतारूँ हो गया। ख़ैर ख़्याली पुलाव है, पकती रहेगी और पक कर ख़ैराती भी बटेगी। जो अपना हो नहीं पाया, जो ख़ुद में ठहर नहीं पाया, जो हर वक़्त नज़रों में चुभता रहा, जो मुझे समझ नहीं पाया, जो मुझे समझ नहीं आया, सब एक जलती टीस बनकर मुझमें बरकरार रहेगी, जाने कब तलक! पता नहीं। 2016 खुशनुमाँ भी रही तो कहीं बदनुमाँ भी रही। सफ़र बेहतरीन रहा.. कुछ से दुश्मनी हुई तो बहुतों से दोस्ती, किसी की यादों में रात गुजारी तो किसी की आँखों में किताब बनकर ठहर गये, जानलेवा सरप्राईज भी मिलीं, कहीं दौड़ते-भागते साँसें भी ठहर गयी। सब कुछ हुआ फिर भी बाकी बहुत कुछ रह गया इस उम्मीद में 2017 भी जीना है किसी उम्मीद में।
अब जो कसक उठी है तो तुमपर ही आकर ठहरेगी एक बार फिर से कोशिश होगी तुम्हें खुद में चुरा लेने की आखिर ये 31 दिसम्बर की रात कुछ हसीन हो तो यह दिल जाकर 2016 से मुतमईन हो। बस इंतजार है तुम्हारा, और रहेगा जाने कब तलक, पता नहीं। 2016 के बीत जाने से, 2017 के आने से यकीनन बदलेगा ये जिस्म मगर रूह वहीं रहेगी तुमसे एक हो जाने की जिद में।
मिलन की आस में.. हाय! ये दिसम्बर भी गुजर गयी प्यास में।
ये 31 दिसम्बर की रात आज फिर गुजर जायेगी
कहते है कि 2017 आके खुशियों से भर जायेगी।

नितेश वर्मा और 2017

तमाम बोझ सीने पर रखते हुए सोचा ना था

तमाम बोझ सीने पर रखते हुए सोचा ना था
मर जायेंगे जहां में भटकते हुए सोचा ना था।
फूल बाग़ के मुरझाने लगेंगे इस धूप में ऐसे
घटाओ ने हमपे ये बरसते हुए सोचा ना था।
जो कुछ भी था हमारे मौजूद होने से ही था
कि हम मरे आख़िर मरते हुए सोचा ना था।
वो ख़त किताब में तब्दील होने लगी तमाम
बदलेंगे इतना कब, पढ़ते हुए सोचा ना था।
ये गुजरते साल भी ख़्वाहिशें लेके गई वर्मा
बदलते साल में, चमकते हुए सोचा ना था।
नितेश वर्मा

एक ख़त लिख रहा हूँ तुम्हें

प्यारी माहीन!

एक ख़त लिख रहा हूँ तुम्हें.. ख़त क्या? समझो अपना दिल निकालकर इस कोरे से काग़ज पर रखकर भेज रहा हूँ। इक दरख़्वास्त है बस, इसे आधा पढ़कर फाड़कर मत फ़ेंक देना। पूरा पढ़ना और बार-बार पढ़ना.. और तबतक पढ़ते रहना जबतक तुम्हें इस ख़त के लिखे हुए एक-एक हर्फ़ पर यक़ीन ना हो जाएं। मैंने जहाँ तक सुना है उसके हिसाब से एक बात बताता हूँ तुम्हें.. अग़र इश्क़ में यक़ीन ना हो तो मुहब्बत कभी मुकम्मल नहीं होती। तुमपर यक़ीन रखना ही मेरी मुहब्बत का सुबूत है.. बदले में कुछ ख़्वाहिश जताना वो मेरा निज़ी स्वार्थ है। एक बात और बताऊँ इस ज़माने में कुछ नहीं बदलता ना ही वक़्त बदलता है और ना ही इंसान.. ना भगवान कभी बदलकर सामने आते है और ना ही दानव। जो है.. जैसा है बिलकुल सबकुछ वैसा ही रहता है अग़र इन सबके बीच कुछ बदलता है तो वो है बस एक नज़रियाँ। सब नज़रों का ही दोष है वो चाहे इश्क़ का होना हो या किसी चौराहे पर किसी ख़ून का होना। ख़ैर, ख़ून का होना ये अलग मसला भी हो सकता है मगर इश्क़.. इश्क़ तो बस नज़रों का ही खेल है। अज़ीब बाज़ियाँ होती हैं इसमें हारना-जीतना तो कभी तय ही नहीं हो पाता है। इश्क़ में भटकना क्या होता है जानती हो तुम?
चलो छोड़े इतना ज्ञान बघारना अच्छा नहीं। कभी मिलो.. जहाँ तुम कहो! फ़िर तमाम बातें तफ़सील से करेंगे। तुम बस सुनना उस दिन.. उस दिन सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं कहूँगा। तुम बस मेरी आँखों में देखना चाहो तो सर भी कांधे पर रख लेना इसकी पूरी इजाज़त है तुम्हें। अपनी ख़त में या इसके जवाब में बस एक तारीख़ लिखकर भेज देना।

तुम्हारे ख़त इंतज़ार में-
तुम्हारा बशर
नितेश वर्मा

इस तरह ज़माने में कुछ और हुआ नहीं

इस तरह ज़माने में कुछ और हुआ नहीं
मैं ठहरा रहा.. किसी को गौर हुआ नहीं।
इश्क़ भी किया, काम भी करता रहा मैं
मगर ज़ाहिर करुँ शउरे तौर हुआ नहीं।
वो बदकिस्मत कंकड़ों से घर बनाता है
शहर जिसका कभी लाहौर हुआ नहीं।
इश्क़ में सौ दफ़े मात खाकर बैठा रहा
दिल में जिसके ज़ख़्म बतौर हुआ नहीं।
यूं बारिश उस हर्फ़ को पढ़ता था वर्मा
किताबों से जो कभी बग़ौर हुआ नहीं।
नितेश वर्मा

बेसबब कई पत्थर जिस्म पर गिरे

बेसबब कई पत्थर जिस्म पर गिरे
जाँ ये घायल हुआ ख़ुदमें क्यूं ना?
वो आवारा गली.. जिनमें क़ैद थे
छीटें बारिश पड़ी उनमें क्यूं ना?
मेरे घर में अभी कुछ आँखें खुली
वज़हे-आलम हुआ हममें क्यूं ना?
नितेश वर्मा

घर भी हुआ मेरा तो बस सराय नाम

घर भी हुआ मेरा तो बस सराय नाम
बेकरारी जिस्म की है तो बराय नाम।
हम पागल है, जो इश्क़ में जाँ देते है
ये दिल तो बस है, एक किराय नाम।
मुहब्बत अज़ीज नहीं है उसको मेरी
वो दौलतमिज़ाजी लब दुहराय नाम।
इस कदर महफ़िल में चुप रहे वर्मा
जैसे सारे लगे थे, अपने पराय नाम।
नितेश वर्मा

घर भी हुआ मेरा तो बस सराय नाम

घर भी हुआ मेरा तो बस सराय नाम
बेकरारी जिस्म की है तो बराय नाम।
हम पागल है, जो इश्क़ में जाँ देते है
ये दिल तो बस है, एक किराय नाम।
मुहब्बत अज़ीज नहीं है उसको मेरी
वो दौलतमिज़ाजी लब दुहराय नाम।
इस कदर महफ़िल में चुप रहे वर्मा
जैसे सारे लगे थे, अपने पराय नाम।
नितेश वर्मा

उसके अंदाज़-ए-गुफ़्तगू में बात ही थी ऐसी..

उसके अंदाज़-ए-गुफ़्तगू में बात ही थी ऐसी..
कि दिल जो ना देते, तो जान ही चली जाती।
नितेश वर्मा

दिल जो है खुली भरी बाज़ार में

दिल जो है खुली भरी बाज़ार में
आँखें हैं हैरान इस प्यार में
है कुसूर क्या, इनका कुसूर क्या
दिल ही है जो लगी है इंकार में
दिल जो है खुली भरी बाज़ार में..
तय ना हुआ नाम जिनका कभी
इश्क़-ए-बेनाम में है क़ैद वही
जो तीर इस पार हुआ था उनका
मुहब्बत जी उठीं थी वही कहीं
दिल भी अज़ीब है ये सुनने लगा
है कुछ भी नहीं अब इख़्तियार में
दिल जो है खुली भरी बाज़ार में..
दाम लगने लगे बज़्म जमने लगी
गिला करे कोई शख़्स कभी
कहीं अश्क बेक़दर सी बहने लगी
घायल हुए कहीं अफ़साने कई
कहीं मरहम घावों पर लगने लगी
रात सूरत में उनकी पिघलने लगी
दिल जो दीदार को मचलने लगी
बात क्या करें कल की अख़बार में
दिल जो है खुली भरी बाज़ार में..
नितेश वर्मा

उसके ग़म कहने का अंदाज़ कुछ ऐसा है..

उसके ग़म कहने का अंदाज़ कुछ ऐसा है..
वो शख़्स मुस्कुराकर सारे आँसू रो देता है।
नितेश वर्मा

प्राप्त प्राचीन सांस्कृतिक सभ्यताओं से

प्राप्त प्राचीन सांस्कृतिक सभ्यताओं से
मौलिकताओं के हनन का वर्णन
या उनका उद्भवलेखन नहीं हुआ कभी
वैधानिक एवं संवैधानिक अधिकारों का
अनुरूपण या स्थगित व्यवस्थाओं पर
किसी त्रुटिवश विवेचन नहीं हुआ कभी
मानवाधिकार या उनपर समग्र टिप्पणी
जातिगत या परंपरागत शैली में
परिवर्तन का प्रयोजन नहीं हुआ कभी
हुआ है कुछ तो मात्र इस पृष्ठभूमि पर
अन्याय के सिवाय कुछ और नहीं
जिसका प्रस्तुतीकरण नहीं हुआ कभी।
नितेश वर्मा

हर वज़ह में ये इंतज़ार बेवज़ह है

हर वज़ह में ये इंतज़ार बेवज़ह है
वो शक्ल, वो दीवार हर जगह है।
यूं हम मातम लाख़ मना ले, मग़र
ये जिस्म एक कश्ती की तरह है।
जो धूप आसमां पर खुला नहीं ये
बारिश में लिये बैठा वो जिरह है।
पगडंडी जो हमारे घर तक गयी
वही आज छूटते ज़िक्रे-विरह है।
दास्तान हमारी आँखों में है वर्मा
पढ़िये कि हम भी इक सुबह है।
नितेश वर्मा

मेरे लिखे हुए हर ख़त का जवाब देना है तुझे

मेरे लिखे हुए हर ख़त का जवाब देना है तुझे
इनके हर इक क़तरों का हिसाब देना है तुझे
मैं तेरे इश्क़ में क्या से क्या हो गया, ख़बर है?
मेरे बिखरें हर हसीं रात का ख़ाब देना है तुझे
मेरे हिस्से की धूप जब तुझपे बन जाती थी
जब ख़्वाहिश भरी रात तुझमें रह जाती थी
कोई सर्दी जब बे-मुलाक़ात गुजर जाती थी
जब एहसास इंतज़ामों में सिमट जाती थी
दरम्यान जब दिल बे-ज़ुबान रह जाती थी
वो नमाज़ों में जब दुआएँ सहम जाती थी
मेरी हर उदासियों का किताब देना है तुझे
मेरे लिखे हुए हर ख़त का जवाब देना है तुझे
मुमकिन नहीं था जब हमारा मिलना कभी
बारिशों में बारहां जिस्मों का पिघलना कभी
ज़ुल्म जब बढ़ती जाती थी किसी गर्मियों में
हुस्न का राख़ होके पत्थरों में ढ़लना कभी
जब याद बे-सबब सताती थी स्याह रातों में
किसी सुब्ह सा ढ़लकर तेरा निकलना कभी
मेरी घुटन आवाज़ को इंक़लाब देना है तुझे
मेरे लिखे हुए हर ख़त का जवाब देना है तुझे।
नितेश वर्मा