तुम बदल गये हो बिलकुल उतने
जितने की
बेवफाओं के किताबों में
बेवफा का
ज़िक्र हुआ करता हैं
दिल फिर भी हमदर्द रहता है
कड़िया जिन्दगी की मजबूर है
साँसें बुनती रहती हैं
मगर
अब मुझको कोई फिक्र नहीं
तेरे चले जाने के बाद
मुझे भी अपनी परवाह नहीं
मगर जब भी शाम ढलती हैं
मैं शहर के एक तरफ की शोर में
पागल हो जाता हूँ
और जाने तुम खामोश कहाँ रहती हो
तुम कहाँ रहती हो।
नितेश वर्मा और तुम।
जितने की
बेवफाओं के किताबों में
बेवफा का
ज़िक्र हुआ करता हैं
दिल फिर भी हमदर्द रहता है
कड़िया जिन्दगी की मजबूर है
साँसें बुनती रहती हैं
मगर
अब मुझको कोई फिक्र नहीं
तेरे चले जाने के बाद
मुझे भी अपनी परवाह नहीं
मगर जब भी शाम ढलती हैं
मैं शहर के एक तरफ की शोर में
पागल हो जाता हूँ
और जाने तुम खामोश कहाँ रहती हो
तुम कहाँ रहती हो।
नितेश वर्मा और तुम।
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