Sunday, 4 October 2015

तुम बदल गये हो बिलकुल उतने

तुम बदल गये हो बिलकुल उतने
जितने की
बेवफाओं के किताबों में
बेवफा का
ज़िक्र हुआ करता हैं
दिल फिर भी हमदर्द रहता है
कड़िया जिन्दगी की मजबूर है
साँसें बुनती रहती हैं
मगर
अब मुझको कोई फिक्र नहीं
तेरे चले जाने के बाद
मुझे भी अपनी परवाह नहीं
मगर जब भी शाम ढलती हैं
मैं शहर के एक तरफ की शोर में
पागल हो जाता हूँ
और जाने तुम खामोश कहाँ रहती हो
तुम कहाँ रहती हो।

नितेश वर्मा और तुम।

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