मुझको तो वो बदलनें के लिये
पास आये हैं वो चलनें के लिये।
आहट से ही जो घबरा जाते हैं
शोर करते हैं मचलने के लिये।
मुहब्बत बस आँखों की देखिये
ज़िस्म तो हैं ये ढलने के लिये।
यूं तो गुनाहगार मैं भी हूँ तेरा
शहर से तेरे निकलने के लिये।
शराब के नशे से जब रिहा हुए
फिक्र थीं बस संभलने के लिये।
नितेश वर्मा
पास आये हैं वो चलनें के लिये।
आहट से ही जो घबरा जाते हैं
शोर करते हैं मचलने के लिये।
मुहब्बत बस आँखों की देखिये
ज़िस्म तो हैं ये ढलने के लिये।
यूं तो गुनाहगार मैं भी हूँ तेरा
शहर से तेरे निकलने के लिये।
शराब के नशे से जब रिहा हुए
फिक्र थीं बस संभलने के लिये।
नितेश वर्मा
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