Thursday, 29 October 2015

मुझको तो वो बदलनें के लिये

मुझको तो वो बदलनें के लिये
पास आये हैं वो चलनें के लिये।

आहट से ही जो घबरा जाते हैं
शोर करते हैं मचलने के लिये।

मुहब्बत बस आँखों की देखिये
ज़िस्म तो हैं ये ढलने के लिये।

यूं तो गुनाहगार मैं भी हूँ तेरा
शहर से तेरे निकलने के लिये।

शराब के नशे से जब रिहा हुए
फिक्र थीं बस संभलने के लिये।

नितेश वर्मा

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