Saturday, 17 October 2015

ये दिन ऐसे ही ढल जायेगा

ये दिन ऐसे ही ढल जायेगा
हँसते ही यूं निकल जायेगा।

प्यास को जो यूं वजह मिले
पत्थर भी वो पिघल जायेगा।

छुयें जो वो मुझको होंठों से
दिल मेरा भी मचल जायेगा।

झूठ चिल्लाकर आग लगाईं
दो घर अब तो जल जायेगा।

परिंदे को फिक्र भूख की थी
क्यूं नभ कुछ निगल जायेगा।

जो मर गयीं वो मेरी थीं वर्मा
बात अब सब बदल जायेगा।

नितेश वर्मा

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