ये दिन ऐसे ही ढल जायेगा
हँसते ही यूं निकल जायेगा।
प्यास को जो यूं वजह मिले
पत्थर भी वो पिघल जायेगा।
छुयें जो वो मुझको होंठों से
दिल मेरा भी मचल जायेगा।
झूठ चिल्लाकर आग लगाईं
दो घर अब तो जल जायेगा।
परिंदे को फिक्र भूख की थी
क्यूं नभ कुछ निगल जायेगा।
जो मर गयीं वो मेरी थीं वर्मा
बात अब सब बदल जायेगा।
नितेश वर्मा
हँसते ही यूं निकल जायेगा।
प्यास को जो यूं वजह मिले
पत्थर भी वो पिघल जायेगा।
छुयें जो वो मुझको होंठों से
दिल मेरा भी मचल जायेगा।
झूठ चिल्लाकर आग लगाईं
दो घर अब तो जल जायेगा।
परिंदे को फिक्र भूख की थी
क्यूं नभ कुछ निगल जायेगा।
जो मर गयीं वो मेरी थीं वर्मा
बात अब सब बदल जायेगा।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment