Wednesday, 14 October 2015

मेरी जिन्दगी की सबसे तेज़ धूप में

मेरी जिन्दगी की सबसे तेज़ धूप में
तुम्हारा मेरे साथ चलते रहना
बिन कुछ बोलें यूं खामोश होकर
सर पर पड़ती शिकन की बूंदें
जब भी तुम अपने दुपट्टे से पोंछती
मैं एक पल में तुमको जीं भरके देखता
फिर अचानक तुम रूक जाती
मैं भी शर्मां कर नज़रें फेर लेता
तुम्हें प्यास सताती और मैं
एक अलग अंदाज में तुमसे पूछता
क्या हुआ थक गयी हो
और फिर तुम चुपचाप नजरें झुकाकर
मासूमियत से हाँ में सर हिला देती
मैं तुम्हारे और करीब हो जाता
तुम घबरा कर मुझे देखती रहती
मैं तुम्हारी कोमल सी हाथों को
अपनी गिरफ्त में कर लेता
तुम सवालिया होकर मुझसे कहती
क्या कर रहे हो कोई देख लेगा
मेरा कहना होता तुम्हें सँभाल रहा हूँ
और
तुम मेरे सीने पे अपना सर रख देती।

नितेश वर्मा और तुम।

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