दिल पुकारता रहा एक आवाज़ क्यूं
शख्स वो नादान परेशां हैं आज क्यूं।
महफ़िल में रूसवाई आकर बैठीं है
सनम फिर दीवार पे गिरीं गाज क्यूं।
जब तक जीने की तमन्ना थी जी मैंने
फिर बेहिस रहे मौत से ये दाज क्यूं।
घुट घुट के जब चेहरा मरने लगा था
कसक उठीं परिंदों की परवाज क्यूं।
मौन रहे दो पल फिर चल दिए वर्मा
या रब ऐसी ही है अपनी समाज क्यूं।
नितेश वर्मा और क्यूं।
शख्स वो नादान परेशां हैं आज क्यूं।
महफ़िल में रूसवाई आकर बैठीं है
सनम फिर दीवार पे गिरीं गाज क्यूं।
जब तक जीने की तमन्ना थी जी मैंने
फिर बेहिस रहे मौत से ये दाज क्यूं।
घुट घुट के जब चेहरा मरने लगा था
कसक उठीं परिंदों की परवाज क्यूं।
मौन रहे दो पल फिर चल दिए वर्मा
या रब ऐसी ही है अपनी समाज क्यूं।
नितेश वर्मा और क्यूं।
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