Saturday, 24 October 2015

और उलझती सी एक उदास शाम

और उलझती सी एक उदास शाम
और भी नाराज लगती हैं
जब कभी तुम मिलने नहीं आती
जब कोई वाक्या नहीं होता
हम एक-दूसरे के दरम्यान
साँसें रूक जाती हैं धड़कने पर
हर बार होता हैं ऐसा ही
जब कभी मैं तुम्हें सोचता हूँ
लगती हैं..
जैसे बात ये कल की ही हैं।

नितेश वर्मा

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