और उलझती सी एक उदास शाम
और भी नाराज लगती हैं
जब कभी तुम मिलने नहीं आती
जब कोई वाक्या नहीं होता
हम एक-दूसरे के दरम्यान
साँसें रूक जाती हैं धड़कने पर
हर बार होता हैं ऐसा ही
जब कभी मैं तुम्हें सोचता हूँ
लगती हैं..
जैसे बात ये कल की ही हैं।
नितेश वर्मा
और भी नाराज लगती हैं
जब कभी तुम मिलने नहीं आती
जब कोई वाक्या नहीं होता
हम एक-दूसरे के दरम्यान
साँसें रूक जाती हैं धड़कने पर
हर बार होता हैं ऐसा ही
जब कभी मैं तुम्हें सोचता हूँ
लगती हैं..
जैसे बात ये कल की ही हैं।
नितेश वर्मा
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