Thursday, 29 October 2015

यूं ही एक ख्याल सा

वक्त अब भी गुजर रहा है जब तुम नहीं हो.. आड़ी-तिरछी शक्लों में बीत रही हैं जिन्दगी मगर कोई शिकायत नहीं हैं.. बस एक कसक तुम्हारे जाने को लेकर है। तुम्हारे आने और फिर चले जाने को लेकर मैं परेशान हूँ, मगर फिर भी तुमसे कोई शिकायत नहीं हैं। अब तो यादाश्त और भी बारिक हो गयी हैं.. जब से तुम गयी हो हर बार तुम्हारे स्वादानुसार पाँच चम्मच चीनी को चाय के कप में उड़ेल के पी जाता हूँ, वो भी बिना किसी शिकायत के। अक्सर तुम्हारे जाने के बाद मैं ऐसे ही किया करता हूँ.. मैंने तुम्हारे ख्यालों-जिक्र से सोहबत कर ली है, और अब चाय भी तुम्हारी शर्तों पर पीता हूँ.. इस ख्याल से हर बार उसे फूँक कर.. की इस बार कोई जलन ना हो.. ना इस ओर.. और.. ना ही उस ओर।

नितेश वर्मा और चाय 🍵।

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