Friday, 16 October 2015

जुबां अब गीत के गुनगुनाऐंगे तेरे भी

जुबां अब गीत के गुनगुनाऐंगे तेरे भी
एक रात तारें ख्वाब सजाऐंगे तेरे भी
वो भीनी धूप बारिश के बाद होगी ही
हसीं मौसम कभी ऐसे आऐंगे तेरे भी
टहनियाँ पत्तों से बोझिल होके रहेंगी
बात कुछेक जंगलों में बरसेंगे तेरे भी
लौह से रिहा हो ख्वाब उड़ेंगे तेरे भी
जुबां अब गीत के गुनगुनाऐंगे तेरे भी

मचलती ख्वाहिशें परें तलाशेंगी यूंही
कुछ साज यूंही बेमर्जी बजेंगे तेरे भी
चेहरों के ये उतरते रंग भरेंगे तेरे भी
पुराने वो सलवटें मुस्कुराऐंगे तेरे भी
हुक्म उँगलियाँ यूं फरमाऐंगे तेरे भी
नवाबी सर पे किसीके छाऐंगे तेरे भी
आसमान पे देखना नाम होंगे तेरे भी
जुबां अब गीत के गुनगुनाऐंगे तेरे भी

नितेश वर्मा और तेरे भी।

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