Saturday, 24 October 2015

जब कभी सुकून तुममें बढ़ जाने लगे

जब कभी सुकून तुममें बढ़ जाने लगे
पल-दो-पल हँसीं से गुजर जाने लगे
आँखें भी जब बेखौफ मुस्कुराने लगे
बात थमीं हुई फिर से आगे बढ़ जाने लगे
चेहरे भी पर्दों के आगे ग़र आ जाने लगे
कितनी सुंदर हैं बात
ग़र बात कोई दिल को बहलाने लगे
बारिशें भी बेधड़क मुझपे बरस जाने लगे
नैय्या ख्वाबों को पार करकें ले जाने लगे
डूबता सूरज चाँद को कुछ समझाने लगे
पते मंज़िल को जब तुमसे मिलवाने लगे
फिर सोचना तुम.. वक्त बदल रहा है..
लोग बदल रहे हैं.. देश भी ये बदलेगा
आखिर बचा रहेगा क्या मुझमें कुछ
लोग यही बात अब मुझे समझाने लगे
जब कभी सुकून तुममें बढ़ जाने लगे
पल-दो-पल हँसीं से गुजर जाने लगे।

नितेश वर्मा

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