जो दर्द दिखता नहीं वो दर्द क्या चुभता नहीं
मुहब्बत के बाद दिल क्या कोई टूटता नहीं।
बात बरसों की बेवजह याद आई इस कदर
शक्ल वो आईने सा मगर अब दिखता नहीं।
फिसल गये रेत सारे हूँ मैं अब खाली-खाली
समुन्दर से अक्सर कोई वजह पूछता नहीं।
ये रिश्ते-नाते सब तोड़कर शहर आ गये हैं
फिर क्यूं कहते हैं लोग अपना छूटता नहीं।
अक्सर होता ही ऐसा है वो मुड़ जाते है वर्मा
क्या ऐसे मोड़ पे आकर अक्ल रूकता नहीं।
नितेश वर्मा
मुहब्बत के बाद दिल क्या कोई टूटता नहीं।
बात बरसों की बेवजह याद आई इस कदर
शक्ल वो आईने सा मगर अब दिखता नहीं।
फिसल गये रेत सारे हूँ मैं अब खाली-खाली
समुन्दर से अक्सर कोई वजह पूछता नहीं।
ये रिश्ते-नाते सब तोड़कर शहर आ गये हैं
फिर क्यूं कहते हैं लोग अपना छूटता नहीं।
अक्सर होता ही ऐसा है वो मुड़ जाते है वर्मा
क्या ऐसे मोड़ पे आकर अक्ल रूकता नहीं।
नितेश वर्मा
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