Nitesh Verma Poetry
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Saturday, 3 October 2015
जब भी मैं फुरसत में होता हूँ
जब भी मैं फुरसत में होता हूँ
और
वक्त हमारे आड़े नहीं आती
छत से
चाँदनी और करीब लगती हैं
जब तुम अँधेरे रातों में
अपनी जुल्फों को चाँद की
रोशनी में नहलाती हो
बस मैं तुम्हें घूरता हूँ.. बस तुम्हें।
नितेश वर्मा
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