ये बहोत ही बहानेबाजी वाली बात लगती हैं
के अब मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ की गूंज
और
तुम बार-बार आकर मुझसे बोलती
मैं हर दफा वहीं जुमले सुना देता
तुम खामोश सुन लेती.. इस उम्मीद में
शायद मैं बदल जाऊँ
लेकिन मैं तो ठहरा वक्त था शायद
और तुम बहती हवा
तुम और हम साथ कभी चल सकते नहीं।
नितेश वर्मा
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