ये तन्हाई सताती है बस मुझको शामों में
देखता हूँ जब उसको अपने ही जामों में।
अब तो सही में लगता हैं सब बदल गया
कहाँ कोई चीज़ मिली हैं मेरे ही दामों में।
शक्लें नोंचता हैं वो यूं हर रोज़ खुरचकर
वो नहीं चाहता भरे जख्म यूं गुमनामों में।
मुझको ये उलझनें छोड़तीं ही नहीं वर्मा
वो भी यूं मसरूफ़ हैं अपने ही कामों में।
नितेश वर्मा
देखता हूँ जब उसको अपने ही जामों में।
अब तो सही में लगता हैं सब बदल गया
कहाँ कोई चीज़ मिली हैं मेरे ही दामों में।
शक्लें नोंचता हैं वो यूं हर रोज़ खुरचकर
वो नहीं चाहता भरे जख्म यूं गुमनामों में।
मुझको ये उलझनें छोड़तीं ही नहीं वर्मा
वो भी यूं मसरूफ़ हैं अपने ही कामों में।
नितेश वर्मा
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