Saturday, 3 October 2015

नितेश वर्मा और इंतजार

यूंही एक ख्याल सा..

मैं खामोश बैठीं रही और वो हवा का झोंका बार-बार मुझे परेशान करता रहा। मैं यादों में डूबी बस तुम्हें याद कर रही थीं और नजानें क्यूं हर बार हवाएँ मेरी जुल्फों को परेशान कर रही थीं। वो बेबाकी से मेरी जुल्फों को खुद की रफ्तार में कर लेती और मैं बार बार उन्हें सुलझा कर कानों के पीछे ले जाकर समेट लेती इस ख्याल से की अगर तुम आए और मेरी बेफिक्री से नाराज हो गये तो क्या होगा। मैं हर बात से सहमी तुम्हारा इंतजार आज तलक शामों में करती रहती हूँ कि कभी तो तुम लौट कर आओगे और मेरी इस ठहरी सी जिंदगी को फिर से जीने की एक वजह दे देगो।

नितेश वर्मा और इंतजार।

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